Saturday, November 10, 2012

खुद की तलाश

खुद की तलाश  (कविता-संग्रह)
कवियत्री रश्मि प्रभा
मूल्य- रु 150

प्रकाशक- हिंद युग्म,
1, जिया सराय,
हौज़ खास, नई दिल्ली-110016
(मोबाइल: 9873734046)

"मैं "के बंधन से मुक्ति ही खुद की तलाश है ...ऐसा परिभाषित करती और मुक्तसर शब्दों में बात कहती यह पंक्तियाँ है रश्मि प्रभा जी के संग्रह खुद की तलाश में लिखे अपने व्यक्तव की खुद रश्मि प्रभा जी के ही शब्दों में ...खुद की तलाश हर किसी को होती है |बचपन में हम झांकते हैं कुएँ में ,जोर से बोलते हैं ,पानी से झांकता चेहरा बोली की प्रतिध्वनी पर मुस्कराना खुद को पाने जैसा प्रयास और सकून हैं ...रश्मि जी के लिखे यह शब्द अपने लिखे का परिचय और खुद उनका परिचय देते हैं |उनके संग्रह के बारे में कुछ लिखने से पहले रश्मिजी के बारे में जान लेना जरुरी है ..
यह तलाश क्या है ,क्यों है
और इसकी अवधि क्या है
क्या इसका आंरम्भ स्रष्टि के आरम्भ से है
या सिर्फ यह वर्तमान है
या आगत के स्रोत इस से जुड़े हैं .....
...ऐसे ही कितने प्रश्न है जो हम खुद से ही कितनी बार करते हैं और अपनी खोज में लगे रहते हैं [और तलाश नहीं पाते खुद को खुद में ही ..खुद से लगातार बाते करना ही इस खोज को कुछ सरल जरुर कर देता है और यही कोशिश  रश्मि जी के लिखे इस संग्रह में दिखी है ...उनके ब्लॉग पर लिखे शब्द भी उनकी इसी तलाश का परिचय देते हैं

शब्दों की यात्रा में, शब्दों के अनगिनत यात्री मिलते हैं, शब्दों के आदान प्रदान से भावनाओं का अनजाना रिश्ता बनता है - गर शब्दों के असली मोती भावनाओं की आँच से तपे हैं तो यकीनन गुलमर्ग यहीं है...सिहरते मन को शब्दों से तुम सजाओ, हम भी सजाएँ, यात्रा को सार्थक करें....कवि पन्त के दिए नाम रश्मि से मैं भावों की प्रकृति से जुड़ी . बड़ी सहजता से कवि पन्त ने मुझे सूर्य से जोड़ दिया और अपने आशीर्वचनों की पाण्डुलिपि मुझे दी - जिसके हर पृष्ठ मेरे लिए द्वार खोलते गए . रश्मि - यानि सूर्य की किरणें एक जगह नहीं होतीं और निःसंदेह उसकी प्रखरता तब जानी जाती है , जब वह धरती से जुड़ती है . मैंने धरती से ऊपर अपने पाँव कभी नहीं किये ..... और प्रकृति के हर कणों से दोस्ती की . मेरे शब्द भावों ने मुझे रक्त से परे कई रिश्ते दिए , और यह मेरी कलम का सम्मान ही नहीं , मेरी माँ , मेरे पापा .... मेरे बच्चों का भी सम्मान है और मेरा सौभाग्य कि मैं यह सम्मान दे सकी . नाम लिखने लगूँ तो ........ फिर शब्द भावों के लिए कुछ शेष नहीं रह जायेगा .." यह तलाश के उस पडाव राह है जहाँ रश्मि जी के लिखे से पहले पहल मुलाक़ात हुई और फिर उनके साथ उनके लिखे के साथ खुद की तलाश और इस के बाद उनके लिखे के बारे में जान पहचान के बाद उनके लिखे को और गहरे में पढने की उत्सुकता जाग जाती है ..
खुद की तलाश हिन्द युग्म द्वारा प्रकाशित हैं और उनका यह  काव्य संग्रह पंद्रह तलाश पत्री में लिखा हुआ है हर भाग अपनी तलाश में खुद पढने वाले को भी तलाश की राह दिखाता जाता  है |और अपना सफ़र तय करता जाता है पढने वाले को संग लिए हुए |एक लड़की की ज़िन्दगी अधिकतर चिड़िया सी होती है इस बात को कवियत्री ने बहुत सुन्दर शब्दों में कहा है
चिड़िया देखती है अपने चिडों को
उत्साह से भरती है  .ख्वाब सजाती है चहचहाती हैं
कुछ उड़ानें और भरनी है
यह कुछ अपना बल है
फिर तो
हम जाल ले कर उड़ ही जायेंगे ...यह उड़ान सिर्फ शब्दों की ही नहीं ,कवियत्री मन की भी है ,जो उड़ना चाहती है सुदूर नीले गगन में ..बिना किसी रुकावट के .
....इसी खंड में उनकी एक और रचना
जब मासूम ज़िन्दगी अपने हाथो में
अपनी ही शक्ल में मुस्कारती है

तो जीवन के मायने बदल जाते हैं ...सीख देना ,बड़ी बातें कहना बहुत आसान लगता है ,जब तक हम खुद उस मुश्किल हालत से नहीं गुजरते और जब ज़िन्दगी अपनी गोद से उतर कर चलना सीखती है तो ज़िन्दगी को एक नए नजरिये से देखने लगती है
यही तलाश फिर दूसरे भाग में रिश्तों की तलाश में शामिल हो जाती है |जिस में सबसे प्रमुख है माँ का रिश्ता जो पास न हो कर भी हर वक़्त पास होती है ...,
मैंने तुम्हारी आँखों से
उन हर सपनों को देखा है
जिसके आगे ,मेरी दुआओं से कहीं आगे
तुम्हारी इच्छा शक्ति खड़ी रही ...
..माँ ऐसी ही तो होती है ..वह जो विश्वास दिल में भरती है उस से चूकना सहज है ही कहाँ ?हर रिश्ता कोई न कोई अर्थ लिए होता है और जो बीत गया वह भूल नहीं पाता दिल ..आज की ख़ुशी में भी बीते वक़्त की परछाई मौजूद रहती है ...
बातें खत्म नहीं होती
खुदाई यादों की चलती ही रहती है ..सच है यह ज़िन्दगी का ...साथ साथ चलते लम्हे आज़ाद नहीं है बीते हुए वक़्त की क़ैद से ..इस संग्रह में लिखा हर खंड अपनी बात अपनी तरह से कहता है ...ज़िन्दगी के सवाल जवाब जो रहस्यमयी भी है ,उतर भी देते हैं वही अनुत्तरित भी हैं ..ज़िन्दगी में क्या खोया क्या पाया यह हिसाब किताब साथ साथ चलते रहते हैं ..कर्ण से हम प्रभवित जरुर होते हैं पर लक्ष्य अर्जुन का होता है ..और जब नीति की बातें होती है वही जीवन की मूलमंत्र कहलाती है
नीति की बातें
संस्कार की बातें
जीवन का मूलमंत्र होती है
पर यदि वह फांसी का फंदा बन जाए
तो उस से बाहर निकलना
समय की मांग होती है ....
सच है ...वक़्त के साथ साथ चलना ही समझदारी है | रश्मि जी के खुद की तलाश में कई पडाव हैं ज़िन्दगी के ..रिश्ते ,माता पिता से जुड़े हुए ..ईश्वर पर विश्वास ,ख्याल आदि बहुत खूबसूरती से जुड़े हैं और बंधे हैं लफ़्ज़ों में ..
मैं ख्यालों की एक बूंद
सूरज की बाहों में क़ैद
आकाश तक जाती हूँ
ईश्वर का मन्त्र बन जाती हूँ ,मैं ख्यालों की एक बूंद हूँ ....
..और इन्ही पंक्तियों के साथ वह आसानी से कह भी देतीं है की मैं जानती हूँ की तुम मुझे कुछ कदम चल कर भूल जाओगे ..ख्यालों की एक बूंद ही तो है मिटटी में मिल जायेगी या सूरज फिर तेज गर्मी से उसको वापस ले लेगा ..और वह फिर से बरसेगी इस लिए जब भी याद आऊं तो मुझे तलाशना .
शाम की लालिमा को चेहरे पर ओढ़ लो
रात रानी की खुशबु अपने भीतर भर लो
पतवार को पानी में चलाओ
बढती नाव में ज़िन्दगी देखो
पाल की दिशा देखो
जो उत्तर मिले मैं वो हूँ ............
.खुद की तलाश में लिखने वाला मन ..सिर्फ अपने को कैनवस पर नहीं उतारता वह उस में जीता भी है और पढने वाला मन भी वही सकून पाता है जहाँ वह खुद को उस लिखे में पाता है ..
सत्य झूठ के कपड़ों से न ढंका हो
तो उस से बढ़ कर कुरूप कुछ नहीं
आवरण हटते न संस्कार
न अध्यात्म न मोह
सब कुछ प्रयोजनयुक्त .....
सब कुछ एक दूजे से जुड़ा है बंधा है | रश्मि जी के लिखे में उतरने के लिए गहरे तक उतरना पढता है पढने के लिए सरसरी तौर पर उनकी लिखी रचनाओं को नहीं समझा जा सकता है ...खुद की तलाश ज़िन्दगी के हर पहलु में डूब कर ही लफ़्ज़ों में ढली है इस तलाश में मौन भी है जीवन का सत्य का सच भी जो माँ के गर्भ से ले कर मृत्यु के साथ तक चलता है | हर खंड में लिखी रचना के साथ बहुत ही गहराई से अपनी बात कहती पंक्तियाँ है जो स्वयम से बात चीत करवाती है ..जैसे मौन के विषय में रश्मि जी का कहना है क्षितिज एक रहस्य है और रहस्य मौन होता है तो यदि तुमने मौन से दोस्ती कर ली तो रहस्य से परदे स्वतः ही हट जायेंगे ...इन लिखी पंक्तियों से कविता को समझना और खुद में उतरना सरल हो जाता है | संग्रह जैसे खुद में ही गीता के रहस्य समेटे हुए है ..पर वह रहस्य तभी समझे जा सकते हैं जब इन लिखी रचनाओं में डूब कर पढ़ के समझा जाए इन्हें ..और इस विषय में सबकी रूचि हो यह संभव नहीं है ..कहीं कही बोझिल लग सकता है यह अपनी बात कहता हुआ .विषय एक ही है पर बहुत अधिक बात कहना अपनी राह से भटका देता है ..एक अवरोध सा बन जाता है की क्या समझ पा रहे हैं आखिर हम इन इन्ही लिखी पंक्तियों से ...खुद में तलाश है या किसी और से जुडी कोई बात है इन रचनाओं में लिखी ... .पर जो इस विषय में रूचि रखते हैं ..यानि की अपनी ही खोज में लगे हुए हैं तो यह संग्रह उनके मन की बहुत सी गुत्थियों को सुलझा सकता है | खुद रश्मि जी शब्दों में जब तक जीवन है क्रम है |शेष विशेष तो चलता ही रहेगा |तलाश भी बनी रहती है ,पूर्ण होना यानी मुक्त होना और इस तलाश में अभी मुक्ति की चाह से प्रबल खुद की तलाश है ..
इस एहसास के दृशय पर टेक लगा लूँ
जिन पंछियों ने घोंसले बनाये हैं
उनके गीत सुन लूँ
आगे तो अनजाना विराम खड़ा है
जीवन की समाप्ति का बोर्ड लगा है
होगी अगर यात्रा
तो देखा जायेगा
मृत्यु के पार कोई आकाश होगा
तो फिर से खुद को खोजा जायेगा !!!

खुद की तलाश यूँ ही जारी रहेगी .............
हिंद युग्म से प्रकाशित यह  (संग्रह )इंफीबीम पर हिंदी की चुनिंदा बेहतरीन किताबों में शामिल हो गया  हैं।यह संग्रह वाकई बेहतरीन है और संजो के रखने लायक है _रश्मि जी की सभी पुस्तकें इंफीबीम  और फ्लिप्कार्ट पर उपलब्ध हैं ..और  इनके काव्य संग्रह का कॉम्बो आफर आप infibeem  के इस लिंक से ले सकते हैं

13 comments:

travel ufo said...

वाकई किताब बढिया होगी

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

खुद की तलाश, रश्मि प्रभा जी की (कविता-संग्रह) की लाजबाब सुंदर समीक्षा के लिए बधाई,,,,रंजना जी,,,

RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज 10- 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....

.... आज की वार्ता में ... खुद की तलाश .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक पुस्तक परिचय

vandana gupta said...

बहुत बढिया समीक्षा की है ………आप दोनो को बधाई।

Asha Joglekar said...

रश्मीप्रभा जी का परिचय उनके ब्लॉग से तो था ही आपकी समीक्षा ने उसे और गहरा दिया । पढना होगा इसे ।

Anju (Anu) Chaudhary said...

प्रभावी समीक्षा .....बहुत खूब



दीवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

Anju (Anu) Chaudhary said...

रश्मि दीदी की कविताएँ अपने आप में अर्थ लिए हुए होती हैं .....

प्रतिभा सक्सेना said...

पुस्तक-परिचय पढ़ कर पूरी पढ़ने की उत्सुकता जाग गई है !

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वयं को ही ढूढ़ सकना, प्रश्न बस एक।

Darshan Darvesh said...

आप और आपके पूरे परिवार को मेरी तरफ से दिवाली मुबारक | पूरा साल खुशिओं की गोद में बसर हो और आपकी कलम और ज्यादा रचनाएँ प्रस्तुत करे.. .. !!!!!

rashmi ravija said...

बहुत ही खूबसूरती से समीक्षा की है। इतने सुन्दर तरीके से पुस्तक से परिचय करवाने का शुक्रिया
आप तो बिलकुल प्रोफेशनल समीक्षक बन गयी हैं..keep it up :)
शुभकामनाएं

ANULATA RAJ NAIR said...

रश्मि दी की रचनाओं से सीखने को मिलता है...
बहुत बढ़िया समीक्षा .....
वाकई लाजवाब..

अनु