Thursday, November 08, 2012

रहते थे वह परेशां मेरे बोलने के हुनर से

वेदना दिल की आंखो से बरस के रह गई
दिल की बात फ़िर लफ्जों में ही रह गई

टूटती नही न जाने क्यों रात की खामोशी
सहर की बात भी बदगुमां सी रह गई

बन के बेबसी ,हर साँस धड़कन बनी
तन्हा यह ज़िंदगी, तन्हा ही रह गई

रहते थे वह परेशां मेरे बोलने के हुनर से
खामोशी भी मेरी उन्हें चुभ के रह

सपनों की पांखर टूट गई आँख खुलते ही
हकीकत ज़िंदगी की ख्वाब बन के रह गई !!




12 comments:

सदा said...

वेदना दिल की आंखो से बरस के रह गई
दिल की बात फ़िर लफ्जों में ही रह गई
वाह ... बहुत खूब।

अरुन अनन्त said...

वाह क्या बात है बहुत खूब सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें
सपनों की पांखर टूट गई आँख खुलते ही
हकीकत ज़िंदगी की ख्वाब बन के रह गई !!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सपनों की पांखर टूट गई आँख खुलते ही
हकीकत ज़िंदगी की ख्वाब बन के रह गई !!

खूबशूरत गजल के लिये बहुत२ बधाई,,,,रंजना जी,,,
मै तो पहले से ही आपका फालोवर हूँ आपकी पोस्ट पर हमेशा आता हूँ आप भी फालो करे ,तो मुझे हादिक खुशी होगी,,,,,आभार,,,

RECENT POST:..........सागर

Anju (Anu) Chaudhary said...

ख्याब ......बने ही टूटने के लिए हैं ..

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह....
लाजवाब गज़ल...
देखा...अब ख़याल भागते नहीं...और मात्राएँ भी परफेक्ट :-)

सस्नेह
अनु

विभूति" said...

बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह बढ़ि‍या है जी

मेरा मन पंछी सा said...

भावों का कोमल अहसास कराती
अति उत्तम भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
सुन्दर....
:-)

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर रचना।

rashmi ravija said...

सपनों की पांखर टूट गई आँख खुलते ही
हकीकत ज़िंदगी की ख्वाब बन के रह गई !!

bahut khubsoorat

Arvind Mishra said...

कविता नहीं एक सजी संवरी सी आह है एक !
और आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक

वन्दना अवस्थी दुबे said...

रहते थे वह परेशां मेरे बोलने के हुनर से
खामोशी भी मेरी उन्हें चुभ के रह
क्या बात है...बहुत सटीक..