शब्दों की तलाश में (कविता-संग्रह)
कवि- मुकेश कुमार तिवारी मूल्य- रु 250 प्रकाशक- हिंद युग्म, 1, जिया सराय, हौज़ खास, नई दिल्ली-110016 (मोबाइल: 9873734046) फ्लिकार्ट पर खरीदने का लिंक |
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जब इंसान ने बोलना सीखा होगा तो कैसे क्या हुआ होगा ..? उस वक़्त उसको उस भाषा को बोलने के लिए शब्दों की जरुरत हुई होगी .और उन शब्दों को फिर अपनी भावनाओं के अनुसार बोलना सीखा होगा ...शब्दों की तलाश में इंसान ने कितनी मशकत की होगी न ? शब्दों का आदान प्रदान हुआ होगा ..या एक भाषा से वह दूसरी भाषा में पहुँच कर अपना रूप आकार बदलते गए होंगे .और अब हम दिल से महसूस करें तो शब्दों की तलाश अपने दिल में गहराई तक जाने की तलाश है ..अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अनूठा जरिया ...और जब यही "शब्दों की तलाश में "काव्य संग्रह'" मुकेश तिवारी " द्वारा लिखित मेरे हाथ में आया तो ..यह प्रश्न उत्तर जैसे इस शीर्षक के साथ मेरे अन्दर सवाल जवाब करने लगे |
मुकेश जी को मैं उनके ब्लॉग कवितायन द्वारा जानती हूँ ..जहाँ उनकी लिखी कविताओं ने विशेषकर स्त्री मन पर जो उन्होंने लिखा ,मुझे बहुत प्रभावित किया और उस के बाद से मेरी कोशिश रही उनकी सब कवितायें पढ़ती रहूँ ...और अब उनके यह शब्दों की तलाश में काव्य संग्रह के रूप में मेरे सामने हैं ..अपनी तलाश की कहानी खुद ब्यान करता हुआ ...इस तलाश में शामिल कवितायें हमारे रोजमर्रा के लम्हों की तलाश है जो बहुत ही अधिक हमारे अंतर्मन से जुड़े हुए विषय हैं जहाँ रोज़ ही बदलने वाले वक़्त को ब्यान किया है हालंकि इनको लिखते हुए खुद मुकेश जी भी हैरान हैं कि जो शब्द उनके शब्दकोश से अपरिचित हैं वह उनकी इस कविता में ढल कर कैसे ब्यान हो जाते हैं और यह हैरानी ही उन्हें और आगे बढ़ने की प्रेरणा बनने लगती है |
उनका यह काव्य संग्रह उनके माता पिता को समप्रित है जिसका पूर्ण समपर्ण होने का सबूत हम उनकी लिखी रचनाओं में इस संग्रह में पाते हैं |
मुकेश जी के पिता "श्री रामप्रकाश तिवारी निर्मोही "साठ के दशक के हिंदी कहानी के सशक्त कहानीकार थे और वो खुद इस बात को मानते हैं कि आज वो जो भी हैं अपने पिता की वजह से हैं |जबकि वह अपनी एक रचना में लिखा है कि "पापा नहीं चाहते थे कि मैं कविता लिख कर अपना समय नष्ट करूँ "इस लिए उस वक़्त उन्होंने अपना पूरा ध्यान इंजीनयर बनने में लगा दिया और फिर वक़्त मौका मिलते ही अपने इस शौक को भी पूरा करने की ठान ली ..मुकेश जी हर रचना के बारे में यहाँ लिखना बहुत ही कठिन कार्य होगा ..पर फिर भी पूरे काव्य संग्रह में बहुत सी ऐसी रचनाएँ हैं जिनका जिक्र किये बिना यह समीक्षा अधूरी लगेगी ..उनकी लिखी "माँ "पर रचनाये बहुत ही अधिक सुन्दर अभिव्यक्त हुई है ...माँ किसी भी तरह से अपने बच्चे से अलग नहीं है ...."अम्माँ..माँ केवल माँ भर नहीं होती "और टुकड़ों में बँटी हुई माँ .आदि जैसी रचनाएँ पढ़ते हुए आँखे नम कर देती है ....बूढी... होती अम्माँ जिसकी अब कोई नहीं लेता उस से बूढ़ा हो जाने की दुआएं कोई और दिन हो या कोई तीज त्योहार अब उनके लिए भेदभाव कर पाना मुश्किल है ...आज के वक़्त के बुढापे की और संकेत है ..जो ह्रदय में एक विवशता सी भर देता है ..माँ किसी भी उम्र में केवल माँ भर नहीं होती जबकि वो खुद को भी नहीं संभाल रही होती है तो तब भी विश्वास होती है आसरा होती है ....सच ही तो है ...माँ एक विश्वास है .एक सहारा ..पर जब टुकड़ों में बाँट जाती है अपने बच्चो की सुविधा के अनुसार और वह अंतिम समय में भी इन्तजार में है कंधो के ..यह कविता पढ़ते ही दिल आज की सच्चाई से रूबरू होता हुआ कराह उठता है | लाजवाब अभिव्यक्ति है इन रचनाओं में मुकेश जी की भावनाओं की ...|
भोपाल त्रासदी का सच अधिकतर हर कविता लिखने वाले के दिल से खूब बेजार हो कर निकला और मुकेश जी की कलम भी इस दर्द से अछूती नहीं रही रात को जो मौत कोहरा बन कर आई थी /पौ फटते ही छंटने लगी फिर वे आये नारे लगे /रपट मांगी ..फिर चल पड़ा काफिला मौत के शहर में ज़िन्दगी ढूढने ...माया नजरिया ज्ञान ...मुकेश जी की इस संग्रह में एक और बेहतरीन रचना है पैकिंग परिवर्तन का नाम और इसी का नाम माया ....जितना देख पाते हैं समेट लेते हैं इसी का नाम नजरिया और जितना जानते हैं उसी से दूसरों को सीख ज्ञान की परिभाषा है ..कितने सरल शब्दों में यह बात हम तक पहुँच गयी इस रचना के द्वारा ..और इस अगली रचना में समाज में जीने के ढंग को वह कहते नजर आते हैं सत्य बोले गत्य के ढंग से ..भूखे पेट को रोटी के सपने नजर आते हैं ख्यालों में ही सही जिन्दा रहने को यही ख्याल जरुरी हैं ...|मुझे हैरत होती है अपने आप पर/कि हमने कैसे काट ली जिन्दगी/एक ज़मीन के टुकड़े पर/एक ही टॉवेल में ....एक तौलिये वाले लोग ...में हर किसी को अपनी बात नजर आएगी जो इस तरह के हालात से गुजरे हुए हैं ।
इस संग्रह में दो रचनाएं अपनी तरह की अलग रचनाएं हैं ..जो औरत के उस दर्द को महसूस करवाती है कि मज़बूरी उसको कहाँ कहाँ ले जा कर पैसा कमाने के लिए मजबूर कर देती है और वह कह उठती है आदत धीरे धीरे पड़ ही जाती है अब कोई तकलीफ नहीं होती ..क्यों कि जिन साँसों की आंच को वह अब अपनी सिसकियों में महसूस करती है जिस में उसको घर में चूल्हा जलने की सरसराहट सुनाई देती है घर का बकाया किराया दिखाई देता है और वह तो वो काली सी लड़की है जो उतरती है बस से किसी को खोजती /किसी का इन्तजार करती या किसी के साथ गाडी में बैठ कर चली जाती है ...कोई सोचता कहाँ है उस के बारे में .बस कयास लगाए जाते हैं ..वो काली लड़की ..और साँसों में गरमाती आँच दो बेहतरीन रचनाएँ हैं इस संग्रह की ..अपनी बात अनोखे ढंग से कहती हुई ..
मैंने जैसे इस समीक्षा की शुरुआत में कहा था कि मुकेश जी कि सभी रचनाओं के बारे में यहाँ बात करना बहुत मुश्किल होगा ..बहुत सी इस में बात कर ली गयी है ..पर अभी भी बहुत सी बाकी हैं ...मैं मुकेश जी के ब्लॉग पर जिन रचनाओं से बहुत प्रभावित हुई थी वह स्त्री मन के सहज भाव पर लिखी हुई कविताएं थी ...और यदि उनकी यहाँ बात न की जाए तो लेखक के बारे में यह अधूरा कहना होगा मेरा ..हालंकि इस संग्रह में इस तरह की रचनाये हैं पर बहुत कम ...संग्रह में जो कविता पहली पढ़ी तो लगा ......वाह इस में तो बहुत कुछ पढने को मिलेगा ..रीते हुए मन में स्त्री मन की सहज बात मेटाफिजिक्स की तरह और तुम खोज लेती हो आँखों के माइक्रोस्कोप से उन में कोई न कोई वजह नाराज होने की ...या तुम कैसे बदल लेती हो आग को पानी में और जमा कर लेती हो आँखों में .....यह स्त्री मन के सहज भाव हैं .जो पुरुष ह्रदय की कलम से निकले हैं ..यही उनकी लिखने की कला ने मुझे उनके ब्लॉग पर पढ़ी एक रचनाओं ने बहुत प्रभावित किया था जिस में कुछ कि पंक्तियाँ .मैं,महसूस करता हूँ कि/वो सारे सवाल /जो नही कर पाये, जो जी में आया रात को बिखरने लगते हैं/तुम्हारे तकिये पर और तलाशते हैं वजूद अपना ...वो महसूस करने वाला जादू उनके इस काव्य संग्रह में नहीं दिखा ...जो पाठक उनको नियमित रूप से पढ़ते हैं .और यदि उन्होंने मुकेश जी कि लिखी "देह होने का भ्रम "..."सपनों का सैलाब "आदि जैसी रचनाओं को पढ़ कर उस जादू को महसूस किया है तो वह मायूस होंगे .इस तरह की रचनाये बहुत ही कम है उनके इस संग्रह में | आने वाला संग्रह वह इसी विषय पर निकालें यह मेरा उन से विशेष अनुरोध होगा |
कवि मन है जहाँ नयी जगह गया वहां नया रच भी डालेगा .यही उनकी मुंबई पर लिखी रचनाओं में ."यह है मुंबई मेरी जान "और "मुंबई की एक शाम "में नजर आएगा | कई रचनाये बिलकुल सपाट सी हैं ..असर अधिक नहीं नहीं छोड़ पाती है जैसे "सतही तौर पर .."और "नाक पर सवाल हुए प्रश्न ."आदि ..कविताएं बहुत उधेड़ बुन सी बुनावट में लिखी गयी है जो अपनी बात स्पष्ट नहीं कह पाती हैं ..पर इस तरह की रचनाओं की संख्या कम है | अधिकतर रचनाये अपनी छाप छोड़ने में सफल हुई है |"शब्दों की तलाश में "भटकता मन आगे और जाएगा अभी तो यह यात्रा की शुरुआत है ..आगाज इतना सुन्दर है तो अंजाम निश्चय रूप से बहुत ही हरियाला होगा ..अपने कवर पृष्ठ की तरह जिस पर बने पग चिन्ह और चेहरों के भाव वाकई यह आभास करवाते हैं कि तलाश..... तलाश और तलाश .शब्दों की ..........भावों की.... अभिव्यक्तियों की और खुद की इन शब्दों में ..इन में लिखी पंक्तियों में ...नहीं पढा है आपने यह काव्य संग्रह तो जरुर पढ़े .यह आपको अपने साथ "शब्दों की तलाश में :के अनूठे सफर में चलने के लिए बेबस कर देगा |
10 comments:
"शब्दों की तलाश में "भटकता मन आगे और जाएगा अभी तो यह यात्रा की शुरुआत है ..आगाज इतना सुन्दर है तो अंजाम निश्चय रूप से बहुत ही हरियाला होगा ..
बिल्कुल सच कहा .. आपकी कल़म से पढ़कर हमें तो यक़ीन हो गया है ... आपका यह प्रयास बेहद सराहनीय है ... आदरणीय मुकेश जी को बहुत-बहुत बधाई ...आपका आभार
शब्दों इ तलाश में .. एक प्रभावी समीक्षा जो लेखक और इसके लेखन का सजीव आंकलन करती हुयी है .. बधाई मुकेश जी ....
खूबसूरत समीक्षा …आप दोनो को बधाई
बहुत सुन्दर समीक्षा.....
मुकेश जी को पढ़ती हूँ नियमित रूप से....
आपकी समीक्षा ने पूरी तरह न्याय किया है उनकी रचनाओं के साथ.
ढेर सारी बधाई आप दोनों को.
आभार
अनु
मुकेश जी को प्रकाशित करके हिंद युग्म प्रकाशन भी खुद को धन्य समझता है।
शब्दों की तलाश की सुंदर समीक्षा । शब्द ही तो तलाशते रहते हैं हम सब ब्लॉगर भी । मुकेश जी को उनके इस काव्यसंग्रह के प्रकाशन पर बधाई ।
सुन्दर समीक्षा रंजू भाटिया जी
मुकेश जी को बहुत-बहुत बधाई !!!
मुकेश कुमार की शब्दों की तलाश को आपने एक मुकाम दे दिया -बहुत अच्छी समीक्षा !
आपको, लेखक और प्रकाशक को भी बधाई!
किसी पुस्तक के बारे में इतने ढंग से बता पाना कोई बड़ा कवि/कवियत्री ही ऐसा कर सकता है... जैसा मुझे लगता है...
पुरे पुस्तक के हर पंक्ति पर इतने ध्यान से पढ़ कर फिर समीक्षा में उसे पंक्तिबढ करना कोई आपसे सीखे
बहुत बेहतरीन पुस्तक की बेहतरीन समीक्षा....\
हमें भी शब्दों की तलाश के लिये इस पुस्तक की तलाश रहेगी।
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