कई सदियों से ...
बंद पलकों में
ठिठके पड़े हैं कुछ आंसू के मोती
लरजते लबों पर ..
थरथरा रही है
कोई बात अनकही...
अपनी कांपती उँगलियों पर
महसूस कर रही हूँ
तेरे उँगलियों की गर्माहट
एक हलकी सी जुम्बिश
तेरे लबों की
जो आ कर थमी है
गर्दन के कोने पर ..
लगता है आज ....
कई सदियों से एक हिम नदी
जिसमें जमे हुए थे
कुछ पुराने लम्हों के अवशेष
वो तेरे इस कद्र करीब होने से
अपनी बात तुझ तक रिस कर
अपनी मंजिल पा ही जायेंगे
और सागर जैसे तेरे दिल में
समां जायेंगे ...........
बंद पलकों में
ठिठके पड़े हैं कुछ आंसू के मोती
लरजते लबों पर ..
थरथरा रही है
कोई बात अनकही...
अपनी कांपती उँगलियों पर
महसूस कर रही हूँ
तेरे उँगलियों की गर्माहट
एक हलकी सी जुम्बिश
तेरे लबों की
जो आ कर थमी है
गर्दन के कोने पर ..
लगता है आज ....
कई सदियों से एक हिम नदी
जिसमें जमे हुए थे
कुछ पुराने लम्हों के अवशेष
वो तेरे इस कद्र करीब होने से
अपनी बात तुझ तक रिस कर
अपनी मंजिल पा ही जायेंगे
और सागर जैसे तेरे दिल में
समां जायेंगे ...........
31 comments:
कई सदियों से एक हिम नदी
जिसमें जमे हुए थे
कुछ पुराने लम्हों के अवशेष
वो तेरे इस कद्र करीब होने से
अपनी बात तुझ तक रिस कर
अपनी मंजिल पा ही जायेंगे
खूबसूरती से लिखे एहसास ..
कुछ पुराने लम्हों के अवशेष
वो तेरे इस कद्र करीब होने से
अपनी बात तुझ तक रिस कर
अपनी मंजिल पा ही जायेंगे
वाह ....बहुत खूब कहा है ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
कई सदियों से एक हिम नदी
जिसमें जमे हुए थे
कुछ पुराने लम्हों के अवशेष
वो तेरे इस कद्र करीब होने से
अपनी बात तुझ तक रिस कर
अपनी मंजिल पा ही जायेंगे
और सागर जैसे तेरे दिल में
समां जायेंगे ...........
....बहुत कोमल अहसास...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..
एहसासों की खूबसूरत बयानगी..
बस सब कुछ होने सा है।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 3 - 11 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज ...
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति!!
बेहतरीन!
सादर
पुराने लम्हों के एहसासों की खूबसूरत बयानगी !
बर्फ़ को पिघलना होगा सागर मे समाने को।
बहुत अच्छी कविता !
खुबसूरत एहसास....
सादर...
बहुत खुबसूरत अभिवयक्ति.....
बेहतरीन पोस्ट,आभार.
again a beautiful composition...!!!
बेहद सुंदर रंजू जी । भावों की पुरानी हिमनदी का स्पर्श की गरमाहट पाकर पिघलना और सागर में मिलना वाह ।
bahut sundar...
मन में छिपे जज़्बात की
बहुत शानदार तर्जुमानी
अच्छी और असरदार नज़्म ... !
रंजना जी मजा आ गया ..कोमल रचना प्यार के सुनहरे पल ...बधाई
भ्रमर ५
अपनी कांपती उँगलियों पर
महसूस कर रही हूँ
तेरे उँगलियों की गर्माहट
एक हलकी सी जुम्बिश
तेरे लबों की
जो आ कर थमी है
गर्दन के कोने पर ..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
कोमल अहसास!
bahut marmsparshi rachnaye .aapko hardik dhanyavaad,bahut sunder blog,badhiya likhti hai aap.
dr.bhoopendra
rewas
mp
bahut marmsparshi rachnaye .aapko hardik dhanyavaad,bahut sunder blog,badhiya likhti hai aap.
dr.bhoopendra
rewas
mp
किसी के प्यार की तपिश हिम खंड को पिघला सकती है ... भावनाओं को दिशा दे सकती है ... लाजवाब रचना ...
aisa lagta hai ki safed sangmarmar ki koi moorti saamne khadi hai aur ve bhangimayen badal kar bataa rahi hai, jo aap kavita men kah rahin hain. achchha laga.
बहुत खूबसूरत जज्बात.
आभार !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..
कई सदियों से एक हिम नदी
जिसमें जमे हुए थे
कुछ पुराने लम्हों के अवशेष
बहुत सुन्दर बहुत खुबसूरत एहसास....
एक गहरा अहसास और उसके प्रति ईमानदार लगाव की कवितामय प्रस्तुति !
पढते वक्त अपने इर्द गिर्द एक अजीब सा अहसास कराती कविता |
बहुत सुन्दर .
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