दूर कहीं पहाड़ी पर सूरज की रोशनी फैली और पास बैठी नदी पर उतर गयी ..हवा कुछ तीखी हो गयी और एक काया फिर से वही हवा के पास आ कर खड़ी हो गयी ...तुम ..फिर से हवा ने उस काया से पूछा .....हाँ रहा नहीं गया कहा था न कि तेरी ही छाया हूँ तुझसे अधिक दूर नहीं रह पाती ..तूने ही तो मुझे बताया था कि मेरा जन्म कैसे हुआ ...बस एक बिंदु था ..उसी में कम्पन हुआ और कम्पन की लकीर से मेरा जन्म और मेरा नाम रखा गया ज़िन्दगी ...जैसे तब तुमने मुझे उस काल की बेटियों से मिलवाया था ...मैं फिर से धरती पर जा कर अब इस काल की बेटियों से मिलना चाहती हूँ ..देखना चाहती हूँ कि कितना बदल गया है अब सब ..२० सदी में तो देख कर मैं घबरा गयी थी ...अब तो २१ वी सदी है अब कुछ तो परिवर्तन हुआ होगा न .....हवा ने ठंडी साँस भर कर कहा ..कि हुआ होगा ..पर मूल भूत ढाँचे कहाँ बदल पाते हैं ...अभी भी बहुत संघर्ष बाकी है ...........चलो तुम्हे उसकी एक झलक यही पास में आये हैं हम वहां दिखाती हूँ ..
तुम्हे तो अपने का पति का किया भुगतना हो पड़ेगा क्यों कि तुम उसकी पत्नी हो इस लिए इस परिवार से तुम्हारा बायकट किया जाता है तुम अब हमारे परिवार कि किसी ख़ुशी गमी में शामिल नहीं हो सकती ..क्यों कि तुम्हारा पति हमें भला बुरा कहता है.गालियाँ देता है तो क्या हुआ ..तुम ठीक हो , सुसंस्कृत हो तो क्या फर्क पड़ता है उस से बेशक हम ही तुम्हे इस घर कि बहू बना कर लाये थे ...पर हम सिर्फ उसको तुम्हारा पति समझते हैं ..अपना बेटा नहीं .....
ज़िन्दगी ने हैरानी से हवा की तरफ देखा .और कहा यह तो अभी वही दीवारे हैं परम्परा की दीवारे ,समाज की दीवारें ..अभी तक कुछ नहीं बदला ..क्या औरत खुद ही बदलना नहीं चाहती अब यह सब कुछ ..वाकई सदियाँ घर के बाहर से निकल जाती है ..........
तुम तो दूसरे घर से आई हो ..यहाँ तो घर भरा पूरा है ..तुम्हारे मायके में में तो इतना कुछ है नहीं ..इस लिए तुम हमारे घर से चोरी कर के कपडे अपने मायके में देती हो पर कुछ आवाज़ नहीं उठाना इस बारे में क्यों कि तुम बहू हो ..
..हमारी बेटी कि अभी शादी हुई ..बहुत गंदे है ससुराल वाले ...न ढंग से खाना देते हैं न सही से व्यवहार ..सोच रहे हैं उसको वापस यही बुला ले ...फूल सी हमारी बच्ची कैसे वहां रह पाएगी ...इल्जाम कुछ सोलिड होना चाहिए ..चलो ..पति पर ..इल्जाम लाग देते हैं .. ..और बेटी तो कमाती है सरकारी नौकरी है ..क्यों किसी की इतनी धौंस सहे ..बहू तो रह सकती है हमारा बेटा चाहे जैसा भी हो ..पर बेटी उसको तो हमने वापस लाना ही है ..बहू कहाँ खुद को बदलना चाहती है ...बदलना चाहती तो कुछ सख्त कदम उठाती ...कल की ही तो बात है .जब इसको कहा था हमने की
अरे !!तुम अपने दूर के भाई से क्यों इतना हंसती बोलती हो ..वो यहाँ क्यों आता जाता है ...? हमें तो तुम्हारा चरित्र ही ठीक नहीं लगता ....बुलाओ इसके माँ बाप को ...बताये इसकी यह सब रंग ढंग उन्हें ..कैसे संस्कार दिए हैं उन्होंने अपनी बेटी को ....न कोई ढंग की नौकरी करती है ..न ढंग से घर का काम ..मनहूस कहीं की जब से घर में आई है ..सब बिगड़ गया है ...बेटी घर वापस आ गयी है ...बेटे की नौकरी चली गयी है .पैरे पैरे लक्ष्मी .पैरे पैरे भाग्य ...पर इसने तो कोई रिएक्ट ही नहीं किया ...
ज़िन्दगी ने हवा से कहा .उफ़ यह तो वही का वही ढंग है वही राग है ....फिर से वही कहानी सुनाओ ..जिसको गुजरे न जाने कितने साल गुजर गए .पर यह स्त्री खुद को कब बदलना सीखेगी कब अपने हक के लिए लड़ना सीखेगी ....हवा कहने लगी न जाने कितने साल गुजर गए यह तब कि बात है पर वह परी वाली कहानी की परी नजाने कौन सी ग्रह दिशा में इस धरती को बदलने के लिए उतरी .और अपने पंख यही गुम कर बैठी .चुराए गए उन्ही पंखो में औरत के बदलने की इच्छा भी कहीं गुम हो कर रह गयी ...पर औरत की ख़ामोशी से ही जरुर एक दिन क्रांति की चेतना का जन्म होगा . और ज़िन्दगी का सही अर्थ समझ आएगा और हर अपशगुन तब शगुन में बदल जाएगा .....यह काम खुद औरत को अपने लिए करना होगा ...किसी से डर कर जीना छोड़ना होगा ...समाज की दुहाई परम्परा की दुहाई से हारना बंद करना होगा ..तभी फिर से स्त्रियों का नाम चेतना वंशी होगा ...
तुम तो दूसरे घर से आई हो ..यहाँ तो घर भरा पूरा है ..तुम्हारे मायके में में तो इतना कुछ है नहीं ..इस लिए तुम हमारे घर से चोरी कर के कपडे अपने मायके में देती हो पर कुछ आवाज़ नहीं उठाना इस बारे में क्यों कि तुम बहू हो ..
..हमारी बेटी कि अभी शादी हुई ..बहुत गंदे है ससुराल वाले ...न ढंग से खाना देते हैं न सही से व्यवहार ..सोच रहे हैं उसको वापस यही बुला ले ...फूल सी हमारी बच्ची कैसे वहां रह पाएगी ...इल्जाम कुछ सोलिड होना चाहिए ..चलो ..पति पर ..इल्जाम लाग देते हैं .. ..और बेटी तो कमाती है सरकारी नौकरी है ..क्यों किसी की इतनी धौंस सहे ..बहू तो रह सकती है हमारा बेटा चाहे जैसा भी हो ..पर बेटी उसको तो हमने वापस लाना ही है ..बहू कहाँ खुद को बदलना चाहती है ...बदलना चाहती तो कुछ सख्त कदम उठाती ...कल की ही तो बात है .जब इसको कहा था हमने की
अरे !!तुम अपने दूर के भाई से क्यों इतना हंसती बोलती हो ..वो यहाँ क्यों आता जाता है ...? हमें तो तुम्हारा चरित्र ही ठीक नहीं लगता ....बुलाओ इसके माँ बाप को ...बताये इसकी यह सब रंग ढंग उन्हें ..कैसे संस्कार दिए हैं उन्होंने अपनी बेटी को ....न कोई ढंग की नौकरी करती है ..न ढंग से घर का काम ..मनहूस कहीं की जब से घर में आई है ..सब बिगड़ गया है ...बेटी घर वापस आ गयी है ...बेटे की नौकरी चली गयी है .पैरे पैरे लक्ष्मी .पैरे पैरे भाग्य ...पर इसने तो कोई रिएक्ट ही नहीं किया ...
सोच रहे हैं की बेटी अब तलाक ले कर आ गयी है ..अब ज़िन्दगी का कुछ तो सहारा चाहिए ...आगे इसकी भी एक बेटी है ...मकान का एक हिस्सा इसके नाम कर देते हैं ..घर तो बना रहेगा ..दूसरी को भी देना होगा ..बेटे कि आगे दो बेटियाँ है .??सोचना होगा ..क्या सोचूं ..पर बेटा बहुत जिद्दी है जरुर लड़ाई करेगा कुछ अखड बुद्धि का है ..बहू भी अधिक बोलती नहीं ..पर समझती सब कुछ है ...चलो अभी एक के नाम तो करूँ ..बाकी देखा जाएगा ...आगे क्या होता है ..और लड़ते मरते तो वैसे ही रहते हैं सब ...मेरे बाद क्या करेंगे मैं कौन सा देखने आ रहा हूँ ..बने न बने सब में .मुझे क्या ...
ज़िन्दगी ने हवा से कहा .उफ़ यह तो वही का वही ढंग है वही राग है ....फिर से वही कहानी सुनाओ ..जिसको गुजरे न जाने कितने साल गुजर गए .पर यह स्त्री खुद को कब बदलना सीखेगी कब अपने हक के लिए लड़ना सीखेगी ....हवा कहने लगी न जाने कितने साल गुजर गए यह तब कि बात है पर वह परी वाली कहानी की परी नजाने कौन सी ग्रह दिशा में इस धरती को बदलने के लिए उतरी .और अपने पंख यही गुम कर बैठी .चुराए गए उन्ही पंखो में औरत के बदलने की इच्छा भी कहीं गुम हो कर रह गयी ...पर औरत की ख़ामोशी से ही जरुर एक दिन क्रांति की चेतना का जन्म होगा . और ज़िन्दगी का सही अर्थ समझ आएगा और हर अपशगुन तब शगुन में बदल जाएगा .....यह काम खुद औरत को अपने लिए करना होगा ...किसी से डर कर जीना छोड़ना होगा ...समाज की दुहाई परम्परा की दुहाई से हारना बंद करना होगा ..तभी फिर से स्त्रियों का नाम चेतना वंशी होगा ...
अमृता के लिखे उपन्यास उनके हस्ताक्षर से प्रेरित अपने आस पास देखे कुछ वाक्यात ..........जो न जाने कब बदलेंगे खुद को ....और सोचेंगे की ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा ......
22 comments:
वाकई क्या बदला है कुछ भी नहीं..
vicharo ka khubsurat pravah...
हाँ ,सच में अब भी कुछ नहीं बदला है ......
सही कहा आपने....
बिल्कुल सही कहा है आपने ... हम जहां थे हमारी सोच के दायरे आज भी वहीं हैं ... बेहतरीन लेखन ।
मार्मिक .... बहुत कडुवा पर सत्य ... सदियों से यही झेलना पड़ रहा है नारी को और ... ये भी सत्य है की इसमें बदलाव नारियो ही ला सकती है ... प्रयास तो करना होगा ...
नित ही ये शब्द गहराते जाते हैं।
सही कहा आपने....मार्मिक, कटू सत्य रचना ....
Bilkul sahi kahti hain aap.. aapko padhne ka ek alag hi anand hai.. Bas ek shikayat..aapko padhne ke liye bahut wait karna padta hai.. Aabhar..
अच्छी प्रस्तुति ...
वही हवा वही जिंदगी और वही इन्सान और वही उसकी फितरत ।
जो न जाने कब बदलेंगे खुद को ....और सोचेंगे की ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा ......शायद इस जन्म में तो न बदलें...बहुत उम्दा...
sach kaha aapane......
-अभी स्थिति बदलने के लिए बहुत संघर्ष करना बाकी है ..
बहुत ही बेहतरीन.
good post..
ummeend nahin chhodni chahiye vah subah kabhi to aayegi ......
सच है कि यह ज़िन्दगी फिर न मिलेगी..इसलिए किसी को लम्हा जीते देख उसकी खुशी में खुश हो लो..अपने लम्हे को भी खुशहाल कर लो... यह भाव आ जाए तो ज़िन्दगी यादग़ार बन जाए...
विसंगतियों को बखूबी रेखांकित किया आपने...
समय कितना भी बदल जाए,बिना आदमी की सोच बदले परिस्थितियां कैसे और कितना बदल सकती हैं...
वही कहानी सुनाओ जिसके गुजरे न जाने कितने साल हो गए। अमृता प्रीतम पर खुशवंत सिंह की टिप्पणी पढ़ी थी। उन्होंने लिखा था कि अमृता बेहद सामान्य लेखक थी। उन पर कृष्णा सोबती की कहानी जिंदगीनामा से प्रेरित होने का आरोप भी खुशवंत ने लगाया था। जिसका खुद कृष्णा सोबती ने प्ततिवाद किया था। मुझे बहुत अच्छा लगा कि आप अमृता की पाठक हैं और खुद भी इतना अच्छा लिखती हैं। ज्ञानोदय में एक लेख छपा था अमृता प्रीतम की मृत्यु के बाद दिलीप कौर तिवाणा का संस्मरण। इसके बाद मैं अमृता की शख्सियत को गहराई से जान पाया। उन्हें उनकी केंद्रीय भूमिका देने के लिए शुक्रिया
सही कहा आपने.... अच्छी प्रस्तुति ...
आपने सही कहा कुछ नहीं बदला है बेहतरीन लेखन
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