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Thursday, September 15, 2011

ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा



दूर कहीं पहाड़ी पर सूरज की रोशनी फैली और पास बैठी नदी पर उतर गयी ..हवा कुछ तीखी हो गयी और एक काया फिर से वही हवा के पास आ कर खड़ी हो गयी ...तुम ..फिर से हवा ने उस काया से पूछा .....हाँ रहा नहीं गया कहा था न कि तेरी ही छाया हूँ तुझसे अधिक दूर नहीं रह पाती ..तूने ही तो मुझे बताया था कि मेरा जन्म कैसे हुआ ...बस एक बिंदु था ..उसी में कम्पन हुआ और कम्पन की लकीर से मेरा जन्म और मेरा नाम रखा गया ज़िन्दगी ...जैसे तब तुमने मुझे उस काल की बेटियों से मिलवाया था ...मैं फिर से धरती पर जा कर अब इस काल की बेटियों से मिलना चाहती हूँ ..देखना चाहती हूँ कि कितना बदल गया है अब सब ..२० सदी में तो देख कर मैं घबरा गयी थी ...अब तो २१ वी सदी है अब कुछ तो परिवर्तन हुआ होगा न .....हवा ने ठंडी साँस भर कर कहा ..कि हुआ होगा ..पर मूल भूत   ढाँचे कहाँ बदल पाते हैं ...अभी भी बहुत संघर्ष बाकी है ...........चलो तुम्हे उसकी एक झलक यही पास में आये हैं हम वहां दिखाती हूँ ..


तुम्हे तो अपने का पति का किया भुगतना हो पड़ेगा क्यों कि तुम उसकी पत्नी हो इस लिए इस परिवार से तुम्हारा बायकट किया जाता है तुम अब हमारे परिवार कि किसी ख़ुशी गमी में शामिल नहीं हो सकती ..क्यों कि तुम्हारा पति हमें भला बुरा कहता है.गालियाँ देता है तो क्या हुआ ..तुम ठीक हो , सुसंस्कृत हो तो क्या फर्क पड़ता है उस से बेशक हम ही तुम्हे इस घर कि बहू बना कर लाये थे ...पर हम सिर्फ उसको तुम्हारा पति समझते हैं ..अपना बेटा नहीं .....
ज़िन्दगी ने हैरानी से हवा की  तरफ देखा .और कहा यह तो अभी वही दीवारे हैं परम्परा की दीवारे ,समाज की दीवारें ..अभी तक कुछ नहीं बदला ..क्या औरत खुद ही बदलना नहीं चाहती अब यह सब कुछ ..वाकई सदियाँ घर के बाहर से निकल जाती है ..........
तुम तो दूसरे घर से आई हो ..यहाँ तो घर भरा पूरा है ..तुम्हारे मायके में में तो इतना कुछ है नहीं ..इस लिए तुम हमारे घर से चोरी कर के कपडे अपने मायके में देती हो पर कुछ आवाज़ नहीं उठाना इस बारे में क्यों कि तुम बहू हो ..
..हमारी बेटी कि अभी शादी हुई ..बहुत गंदे है ससुराल वाले ...न ढंग से खाना देते हैं न सही से व्यवहार ..सोच रहे हैं उसको वापस यही बुला ले ...फूल सी हमारी बच्ची कैसे वहां रह पाएगी ...इल्जाम कुछ सोलिड होना चाहिए ..चलो ..पति पर ..इल्जाम लाग देते हैं .. ..और बेटी तो कमाती है सरकारी नौकरी है ..क्यों किसी की इतनी धौंस सहे ..बहू तो रह सकती है हमारा बेटा चाहे जैसा भी हो ..पर बेटी उसको तो हमने वापस लाना ही है ..बहू कहाँ खुद को बदलना चाहती है ...बदलना चाहती तो कुछ सख्त कदम उठाती ...कल की ही तो बात है .जब इसको कहा था हमने की

अरे !!तुम अपने दूर के भाई से क्यों इतना हंसती बोलती हो ..वो यहाँ क्यों आता जाता है ...? हमें तो तुम्हारा चरित्र ही ठीक नहीं लगता ....बुलाओ इसके माँ बाप को ...बताये इसकी यह सब रंग ढंग उन्हें ..कैसे संस्कार दिए हैं उन्होंने अपनी बेटी को ....न कोई ढंग की नौकरी करती है ..न ढंग से घर का काम ..मनहूस कहीं की जब से घर में आई है ..सब बिगड़ गया है ...बेटी घर वापस आ गयी है ...बेटे की नौकरी चली गयी है .पैरे पैरे लक्ष्मी .पैरे पैरे भाग्य ...पर इसने तो कोई रिएक्ट ही नहीं किया ...

सोच रहे हैं की  बेटी अब तलाक ले कर आ गयी है ..अब ज़िन्दगी का कुछ तो सहारा चाहिए ...आगे इसकी भी एक बेटी है ...मकान का एक हिस्सा इसके नाम कर देते हैं ..घर तो बना रहेगा ..दूसरी को भी देना होगा ..बेटे कि आगे दो बेटियाँ है .??सोचना होगा ..क्या सोचूं ..पर बेटा बहुत जिद्दी है जरुर लड़ाई करेगा कुछ अखड बुद्धि का है ..बहू भी अधिक बोलती नहीं ..पर समझती सब कुछ है ...चलो अभी एक के नाम तो करूँ  ..बाकी देखा जाएगा ...आगे क्या होता है ..और लड़ते मरते तो वैसे ही रहते हैं सब ...मेरे बाद क्या करेंगे मैं कौन सा देखने आ रहा हूँ ..बने न बने सब में .मुझे क्या ...

ज़िन्दगी ने हवा से कहा .उफ़ यह तो वही का वही ढंग है वही राग है ....फिर से वही कहानी सुनाओ ..जिसको गुजरे न जाने कितने साल गुजर गए .पर यह स्त्री खुद को कब बदलना सीखेगी कब अपने हक के लिए लड़ना सीखेगी  ....हवा कहने लगी न जाने कितने साल गुजर गए यह तब कि बात है पर वह परी वाली कहानी की परी नजाने कौन सी ग्रह दिशा में इस धरती को बदलने के लिए उतरी .और अपने पंख यही गुम कर बैठी .चुराए गए उन्ही पंखो में औरत के बदलने की इच्छा भी कहीं गुम हो कर रह गयी ...पर औरत की ख़ामोशी से ही जरुर एक दिन क्रांति की चेतना का जन्म होगा . और ज़िन्दगी का सही अर्थ समझ आएगा और हर अपशगुन तब शगुन में बदल जाएगा  .....यह काम खुद औरत को अपने लिए करना होगा ...किसी से डर कर जीना छोड़ना होगा ...समाज की  दुहाई परम्परा की दुहाई से हारना बंद करना होगा ..तभी फिर से स्त्रियों का नाम चेतना वंशी होगा ...
अमृता के लिखे उपन्यास उनके हस्ताक्षर से प्रेरित अपने  आस पास देखे कुछ वाक्यात ..........जो न जाने कब बदलेंगे खुद को ....और सोचेंगे की ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा ......

Thursday, July 22, 2010

तब जिंदगी मेरी तरफ रुख करना .


जिस तरफ़ देखो उस तरफ़ है
भागम भाग .....
हर कोई अपने में मस्त है
कैसी हो चली है यह ज़िन्दगी
एक अजब सी प्यास हर तरफ है
जब कुछ लम्हे लगे खाली
तब ज़िन्दगी
मेरी तरफ़ रुख करना


खाना पकाती माँ
क्यों झुंझला रही है
जलती बुझती चिंगारी सी
ख़ुद को तपा रही है
जब उसके लबों पर
खिले कोई मुस्कराहट
ज़िन्दगी तब तुम भी
गुलाबों सी खिलना


पिता घर को कैसे चलाए
डूबे हैं इसी सोच को ले कर
किस तरह सब को मिले सब कुछ बेहतर
इसी को सोच के घुलते जा रहे हैं
जब दिखे वह कुछ अपने पुराने रंग में
हँसते मुस्कराते जीवन से लड़ते
तब तुम भी खिलखिला के बात करना
ज़िन्दगी तब मेरी तरफ़ रुख करना


बेटी की ज़िन्दगी उलझी हुई है
चुप्पी और किसी दर्द में डूबी हुई है
याद करती है अपनी बचपन की सहेलियां
धागों सी उलझी है यह ज़िन्दगी की पहेलियाँ
उसकी चहक से गूंज उठे जब अंगना
तब तुम भी जिंदगी चहकना
तब मेरी तरफ तुम भी रुख करना

बेटा अपनी नौकरी को ले कर परेशान है
हाथ के साथ है जेब भी है खाली
फ़िर भी आँखों में हैं
एक दुनिया उम्मीद भरी
जब यह उम्मीद
सच बन कर झलके
तब तुम भी दीप सी
दिप -दिप जलना
ज़िन्दगी तुम इधर तब रुख करना

नन्हा सा बच्चा
हैरान है सबको भागता दौड़ता देख कर
जब यह सबकी हैरानी से उभरे
मस्त ज़िन्दगी की राह फ़िर से पकड़े
तब तुम इधर का रुख करना
ज़िन्दगी अपने रंगों से
खूब तुम खिलना...