Thursday, September 01, 2011

यूँ दिल के एहसासो को

 
 
 
 
यूँ  दिल के एहसासों  को गीतो में ढाल लूंगी
मिली थी जब तुमसे उस पल को बाँध लूंगी


वक़्त की रफ़्तार थमने ना पाए अब
इन जीवन की उलझनो में कुछ सुलझने सँवार लूंगी

लावे सी पिघल कर बह क्यों  नही जाती है यह ख़ामोशी
ख़ुद को ख़ुद में समेटे कब तक यूँ तन्हा मैं चलूंगी

कुछ सवाल हैं सुलगते हुए आज भी हमारे दरमियाँ
कुछ दर्द ,कुछ आहें दे के इनको फिर से दुलार लूंगी

दे दिया अपना सब कुछ तुझे तन भी और मन भी
अब कौन सी कोशिश से अपने बिखरे वजूद को निखार लूंगी

काटता नही यह सफ़र अब यूँ ही बेवजहा गुज़रता हुआ
एक दास्तान फिर से तुझसे ,अपने प्यार की माँग लूंगी!!

मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी

बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!
 

28 comments:

vandana gupta said...

दिल के अहसासो को बखूबी पिरो दिया…………शानदार दिल को छूती रचना।

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वप्नों और स्मृतियों से समय की भीषण नदियों में भी पुल बन जाते हैं।

डॉ. मनोज मिश्र said...

बेजोड़ और दिल को छू लेने वाली रचना ,आभार.

Kailash Sharma said...

बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!

...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

लावे सी पिघल कर बह क्यों नही जाती है यह ख़ामोशी
ख़ुद को ख़ुद में समेटे कब तक यूँ तन्हा मैं चलूंगी

कुछ सवाल हैं सुलगते हुए आज भी हमारे दरमियाँ
कुछ दर्द ,कुछ आहें दे के इनको फिर से दुलार लूंगी


गहन भावनाएं .. सुन्दर प्रस्तुति ...

विभूति" said...

यूँ दिल के एहसासों को गीतो में ढाल लूंगी
मिली थी जब तुमसे उस पल को बाँध लूंगी ....बहुत ही खुबसूरत एहसास को वयक्त किया....

Maheshwari kaneri said...

दिल को छू लेने वाली सुन्दर रचना ....

Unknown said...

Bahut hi behatareen rachna Bhatiya Ji.. Aabhar...

Asha Joglekar said...

बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!
आह ये प्यार और ये विरह !
खूबसूरत रचना ।

विवेक रस्तोगी said...

वक्त की रफ़्तारों में प्यार के रिश्तों की सीमाओं से स्वप्न बुहारने का बेहतरीन काव्यात्मक अभिव्यक्ति ।

Pravin Dubey said...

रूठने को तो चले रूठ के हम उनसे भले, मुड़ के तकते थे के अभी कोई मनाकर ले जाए।

सदा said...

मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी

बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!
हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई ... बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Pawan Kumar said...

मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी

पूरी ग़ज़ल अच्छी है ..... भावनाओं से ओतप्रोत......!!!! मार्मिक रचना को प्रस्तुत करने का आभार !!!

Deepak Saini said...

मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी

बहुत बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

हरकीरत ' हीर' said...

मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी

बहुत खूब ....!!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

sundar...

rahil said...

khoobsurat

हरकीरत ' हीर' said...

रंजना जी आपसे अनुरोध है अपनी १०,१२ क्षणिकायें 'सरस्वती-सुमन' में प्रकाशन के लिए दें ..
अपना संक्षिप्त परिचय और तस्वीर भी ....


harkirathaqeer@gmail.com

दिगम्बर नासवा said...

बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी .

जज्बातों को शब्द दे दिए हैं ... बहुत कोमल एहसास सिमित आए अहिं इस रचना में ... लाजवाब ...

अनामिका की सदायें ...... said...

waah ji kya baat hai...ek jabardast umda gazal jo itne gahre ehsaso se labrez hai....to ji jaldi kariye kuchh to.

रंजना said...

वाह...वाह...वाह...

प्रेमपूर्ण कोमल भावों को क्या सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने...

बहुत ही सुन्दर रचना...

Deepak Sharma said...

एहसास हुआ सच में

Sunil Kumar said...

मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी
.बहुत सुन्दर, दिल को छूती रचना.....

Udan Tashtari said...

देर से आये...दुरुस्त आये और भरपूर आनन्द उठाये.

Ankit pandey said...

एक-एक शब्द भावपूर्ण ...
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

हर शेर उम्दा....एक से बढकर एक......

Anonymous said...

bahut khoob...really a sweet poem

Suman Dubey said...

रंजू जी नमस्कार्। बहुत सुन्दर एह्सास हैबहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले--------भावपूर्ण है।