यूँ दिल के एहसासों को गीतो में ढाल लूंगी
मिली थी जब तुमसे उस पल को बाँध लूंगी
वक़्त की रफ़्तार थमने ना पाए अब
इन जीवन की उलझनो में कुछ सुलझने सँवार लूंगी
लावे सी पिघल कर बह क्यों नही जाती है यह ख़ामोशी
ख़ुद को ख़ुद में समेटे कब तक यूँ तन्हा मैं चलूंगी
कुछ सवाल हैं सुलगते हुए आज भी हमारे दरमियाँ
कुछ दर्द ,कुछ आहें दे के इनको फिर से दुलार लूंगी
दे दिया अपना सब कुछ तुझे तन भी और मन भी
अब कौन सी कोशिश से अपने बिखरे वजूद को निखार लूंगी
काटता नही यह सफ़र अब यूँ ही बेवजहा गुज़रता हुआ
एक दास्तान फिर से तुझसे ,अपने प्यार की माँग लूंगी!!
मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी
बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!
वक़्त की रफ़्तार थमने ना पाए अब
इन जीवन की उलझनो में कुछ सुलझने सँवार लूंगी
लावे सी पिघल कर बह क्यों नही जाती है यह ख़ामोशी
ख़ुद को ख़ुद में समेटे कब तक यूँ तन्हा मैं चलूंगी
कुछ सवाल हैं सुलगते हुए आज भी हमारे दरमियाँ
कुछ दर्द ,कुछ आहें दे के इनको फिर से दुलार लूंगी
दे दिया अपना सब कुछ तुझे तन भी और मन भी
अब कौन सी कोशिश से अपने बिखरे वजूद को निखार लूंगी
काटता नही यह सफ़र अब यूँ ही बेवजहा गुज़रता हुआ
एक दास्तान फिर से तुझसे ,अपने प्यार की माँग लूंगी!!
मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी
बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!
28 comments:
दिल के अहसासो को बखूबी पिरो दिया…………शानदार दिल को छूती रचना।
स्वप्नों और स्मृतियों से समय की भीषण नदियों में भी पुल बन जाते हैं।
बेजोड़ और दिल को छू लेने वाली रचना ,आभार.
बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!
...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..
लावे सी पिघल कर बह क्यों नही जाती है यह ख़ामोशी
ख़ुद को ख़ुद में समेटे कब तक यूँ तन्हा मैं चलूंगी
कुछ सवाल हैं सुलगते हुए आज भी हमारे दरमियाँ
कुछ दर्द ,कुछ आहें दे के इनको फिर से दुलार लूंगी
गहन भावनाएं .. सुन्दर प्रस्तुति ...
यूँ दिल के एहसासों को गीतो में ढाल लूंगी
मिली थी जब तुमसे उस पल को बाँध लूंगी ....बहुत ही खुबसूरत एहसास को वयक्त किया....
दिल को छू लेने वाली सुन्दर रचना ....
Bahut hi behatareen rachna Bhatiya Ji.. Aabhar...
बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!
आह ये प्यार और ये विरह !
खूबसूरत रचना ।
वक्त की रफ़्तारों में प्यार के रिश्तों की सीमाओं से स्वप्न बुहारने का बेहतरीन काव्यात्मक अभिव्यक्ति ।
रूठने को तो चले रूठ के हम उनसे भले, मुड़ के तकते थे के अभी कोई मनाकर ले जाए।
मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी
बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !!
हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी
पूरी ग़ज़ल अच्छी है ..... भावनाओं से ओतप्रोत......!!!! मार्मिक रचना को प्रस्तुत करने का आभार !!!
मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी
बहुत बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी
बहुत खूब ....!!
sundar...
khoobsurat
रंजना जी आपसे अनुरोध है अपनी १०,१२ क्षणिकायें 'सरस्वती-सुमन' में प्रकाशन के लिए दें ..
अपना संक्षिप्त परिचय और तस्वीर भी ....
harkirathaqeer@gmail.com
बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी .
जज्बातों को शब्द दे दिए हैं ... बहुत कोमल एहसास सिमित आए अहिं इस रचना में ... लाजवाब ...
waah ji kya baat hai...ek jabardast umda gazal jo itne gahre ehsaso se labrez hai....to ji jaldi kariye kuchh to.
वाह...वाह...वाह...
प्रेमपूर्ण कोमल भावों को क्या सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने...
बहुत ही सुन्दर रचना...
एहसास हुआ सच में
मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी
.बहुत सुन्दर, दिल को छूती रचना.....
देर से आये...दुरुस्त आये और भरपूर आनन्द उठाये.
एक-एक शब्द भावपूर्ण ...
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.
हर शेर उम्दा....एक से बढकर एक......
bahut khoob...really a sweet poem
रंजू जी नमस्कार्। बहुत सुन्दर एह्सास हैबहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले--------भावपूर्ण है।
Post a Comment