ऐसी बानी बोलिए , मन का आपा खोए
औरन को सीतल करे , आपहुँ सीतल होए…।”
कबीर जी का यह दोहा अपन अन्दर बहुत सुन्दर अर्थ समेटे हुए है | बोलना सिर्फ मनुष्य को मिला है और अपनी बोली से ही वह अपने मित्र और अपने दुश्मन बना लेता है
यह दोहा अक्सर लोग तब दोहराया जाता है जब उनके सामने कोई गुस्से में आकर किसी के लिए अपशब्द प्रयोग करने लगता है और वे उसे शान्त करना चाहते हैं । कई बार इसका एक जादुई-सा असर हो भी जाता था और उस व्यक्ति का गुस्सा इतना तो ठण्डा हो ही जाता था , कि वह सही-ग़लत का फ़र्क समझ सके ।
पर आज कल के समय में तो लगता है यही सही है
ऐसी बानी बोलिए, जम कर झगड़ा होए
पर उससे ना बोलिए, जो आप से तगड़ा होए !!
आज कल कोई किसी कि नहीं सुनना चाहता है | वह जो बोल रहा है वही सही है मीठी बोली सिर्फ मतलब हो तो बोली जाती है | आज कल के नेता राजनेता इसी तरह की मतलबी बोली बोलते हैं और जनता को बेवकूफ बनाते हैं |
कबीर जी का यह दोहा बदलते वक़्त के साथ लगता है बदल सा गया है
संत कबीर कह गये हैं : शीतल शब्द उचारिये, अहं आनिये नाहिं।
किसी भी मन को शीतल करने वाले शब्द बोलने का अभ्यास करने से मन में कठोर शब्दों को लाने का भाव कम होता जाता है। वस्तुतः कठोर शब्द अपनाने की आवश्यकता होती नहीं, किंतु मधुर वचन कहने का अभ्यास न होने की वजह से कठोर शब्द आसानी से प्रकट हो जाते हैं।
वाणी का एक स्वरूप बिना कुछ कहे अपनी महत्ता जाताना भी है।इस लिए अपने मन के भाव कोमल रखिये तभी वह जब जुबान से निकेलंगे तो सामने वाले को मीठे लगेंगे |
http://www.parikalpna.com/?p=4811
औरन को सीतल करे , आपहुँ सीतल होए…।”
कबीर जी का यह दोहा अपन अन्दर बहुत सुन्दर अर्थ समेटे हुए है | बोलना सिर्फ मनुष्य को मिला है और अपनी बोली से ही वह अपने मित्र और अपने दुश्मन बना लेता है
यह दोहा अक्सर लोग तब दोहराया जाता है जब उनके सामने कोई गुस्से में आकर किसी के लिए अपशब्द प्रयोग करने लगता है और वे उसे शान्त करना चाहते हैं । कई बार इसका एक जादुई-सा असर हो भी जाता था और उस व्यक्ति का गुस्सा इतना तो ठण्डा हो ही जाता था , कि वह सही-ग़लत का फ़र्क समझ सके ।
पर आज कल के समय में तो लगता है यही सही है
ऐसी बानी बोलिए, जम कर झगड़ा होए
पर उससे ना बोलिए, जो आप से तगड़ा होए !!
आज कल कोई किसी कि नहीं सुनना चाहता है | वह जो बोल रहा है वही सही है मीठी बोली सिर्फ मतलब हो तो बोली जाती है | आज कल के नेता राजनेता इसी तरह की मतलबी बोली बोलते हैं और जनता को बेवकूफ बनाते हैं |
कबीर जी का यह दोहा बदलते वक़्त के साथ लगता है बदल सा गया है
संत कबीर कह गये हैं : शीतल शब्द उचारिये, अहं आनिये नाहिं।
किसी भी मन को शीतल करने वाले शब्द बोलने का अभ्यास करने से मन में कठोर शब्दों को लाने का भाव कम होता जाता है। वस्तुतः कठोर शब्द अपनाने की आवश्यकता होती नहीं, किंतु मधुर वचन कहने का अभ्यास न होने की वजह से कठोर शब्द आसानी से प्रकट हो जाते हैं।
वाणी का एक स्वरूप बिना कुछ कहे अपनी महत्ता जाताना भी है।इस लिए अपने मन के भाव कोमल रखिये तभी वह जब जुबान से निकेलंगे तो सामने वाले को मीठे लगेंगे |
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23 comments:
बहुत सुन्दर बात कही।
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों को लेकर .. ।
सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात।
कबीर जी की वाणी का सही अर्थ पढ़ कर अच्छा लगा ..........आभार
बहुत ही प्यारी बात कही।
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pyara sa sandesh....:)
par kaun isko apna pata hai?
अच्छी व्याख्या की है ..
shayad isiliye bloging ka majatva badh gaya hai.. bolne ka jhanjhat khatm.... Bahut hi acchhi vyakhya ki hai aapne.. badhai..
यह तो सफल जीवन का मूल है,बढ़िया पोस्ट.
समय के साथ- साथ अब तो दोहे /कविताओं के अर्थ भी बदलने लगे हैं.
अच्छे विचार हैं आप के.
Aunty ji bahut badhiya likha hai aapne.
hindusthankiaawaz@googlegroups.com ने एक मेलग्रुप बनाकर आपको मौका दिया है कि आपके मन में जो कुछ है खुलकर बोले, बिना किसी हिचक के चाहे आप ब्लोगर है या नहीं. आप खुलकर कहे मन की बात जो होगी हिंदुस्तान की आवाज़ और आपकी बात यानि आपकी धरोहर को संजोकर रखेंगे हम, बोलिए आप बोलेंगे तो हिंदुस्तान बोलेगा. जय हिंद
यहाँ कोई नियम नहीं, कोई बंदिश नहीं, बस वही बोलिए जो आपके अन्दर है, क्योंकि आपके अन्दर है भारत कि असली तस्वीर, तो छोडिये बनावटीपन, और आज निकाल डालिए मन कि भड़ास, अपनी रचना भेजने, अपनी बात कहने के लिए हमें मेल करें. editor.bhadohinews@gmail.com
http://sachchadil.blogspot.com/
वाणी की मधुरता को समझने वाला केवल मतलब के समय ही मीठा नहीं बोलेगा वरन् हमेशा ही मधुर बोलेगा....
बहुत सुंदर....
बहुत सुन्दर और सही बात कही।....आभार
satye vachan.
आनंद आ गया रंजना जी आपकी मीठी वाणी पढकर.
बहुत अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है आपने.
मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी 'ऐसी वाणी बोलिए'जो मेरी सबसे ज्यादा पढ़ी जानी वाली पोस्टों में से एक है.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ऐसी बानी बोलिए, जम कर झगड़ा होए
पर उससे ना बोलिए, जो आप से तगड़ा होए !!
हा हा हा हा...यह खूब कही....
आज सफल ,समझदार और दुनियादार उसे ही माना जाता है है जो उक्त तथ्य को ध्यान में रख आचरण करता है...
पर फिर भी इस तथ्य को नहीं झुठलाया जा सकता कि मधुर बोल ही टुच्चे जननेता भी राजा बन जाते हैं....
मधुर बोली की महत्ता कभी धूमिल नहीं पड़ सकती..
एक शायर के शब्द याद आते हें ----
' कुदरत को नहीं पसंद है शख्ती वयान मे ,
इसीलिए तो दी नहीं हड्डी जुवान मे .'
वक्त के साथ कुछ नहीं बदलता ,न गुण न दोष .
ऐसा ही तो एक यह भी था न -
जो तुमको काँटा बोये ताहि बोऊ तो भाला
वो भी साला क्या समझेगा किससे पड़ा था पाला :)
आज आप यहां भी ...
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madam, man ka aapa hoye hota hai khoye nhi...lekin aapne likha bahut sunder hai kabil-e-tarif...behtareen..
madam, man ka aapa hoye hai khoye nhi lekin aapne likha bahut sunder hai...behtareen...
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