सुबह के शगुन है
जो आते हैं अखबार के साथ
कुछ हत्या .कुछ आत्महत्या
बलात्कार .चोरी और कुछ झगडे
टप से अखबार के साथ टपकते हैं
चाय के साथ गटक लिए जाते हैं
और फ़िर बाकी रह जाता है
बचा हुआ दिन पूरा
जिस में घटती घटनाएँ
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!!
27 comments:
एक दम सत्य
मन खराब हो जाता है सुबह का अखबार पढ़ कर
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बहुत ही गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ..आभार ।
बिल्कुल सही आकलन किया है।
और फ़िर बाकी रह जाता है
बचा हुआ दिन पूरा
जिस में घटती घटनाएँ
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!!
bahut sunder badhai...
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!!
सोचने को विवश करती हुई कविता
किस तरहां से जोड़ा है आपने शब्दों को शब्दों से वोह बयां कर पाना मुश्किल है बहुत ही मार्मिक चित्रण देश के हालात पता चलते हैं इससे...
कई जिस्म और एक आह!!!
लगता है अब यही शगुन बचे हैं ..बहुत गहन और संवेदनशील रचना
अच्छी पोस्ट.
जो पढ़ा लिखा है वह सबसे तनाव में है-देश-विश्व और पडोस -सभी से .
सबसे भले वे मूढ़-जिन्हें न ब्यापहि जगति गति.
kitni aasani se chay ke sath ham sab gatak jate hain na.
gahen abhivyakti.
Kitni gahrai se aap samay ki harek gatividhi ko dekhti hain.. yah rachna usi ki parichayak hai.. aabhar..
देखिये आये दिन मिलने वाले इस शगुन हमें भी कोई असर कहाँ पड़ता है..... सटीक आकलन
गहन सोच..आभार..
और फ़िर बाकी रह जाता है
बचा हुआ दिन पूरा
जिस में घटती घटनाएँ
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!!
क्या बात है रंजना जी. सही है, आपराधिक घटनाएं इतनी अधिक होने लगीं हैं कि उन्होंने असर करना ही छोड़ दिया है. अब ये शगुन की तरह ही हो गई हैं.
या असगुन ?
अब अखबार सुबह नहीं पढ़ते, दोपहर में पढ़ते हैं।
very beautiful
घटनाओं के चक्र जिन में से निकल पाना मुश्किल.
सच को बताती कविता.
और फ़िर बाकी रह जाता है
बचा हुआ दिन पूरा
जिस में घटती घटनाएँ
फ़िर से गवाह बनती है
आगे आने वाले दिन की शगुन!!!
Very true fact of our lives with very nicely composed words.
Regards
Fani Raj
हाँ ये अनचाहे शगुन हमें लेने ही पड़ते हैं पता नहीं कभी इन शगुनों का मुहूर्त का शुक्र अस्त होगा भी या नहीं.
aaj pehli bar aana hua, accha likhti hain aap sahaj saral bhasha men,gahri anubhti ke sath
धन्यवाद
अच्छी पोस्ट.
बिल्कुल सही
सच्चा चिंत्रण... सच्चा चिंतन...
सादर...
यही हर सुबह का सच है...उम्दा रचना.
बहुत ही गहन आकलन ........
वाह ये शगुन तो सही बताये आपने. जोरदार कविता.
आने वाले दिन का शगुन ...
सच में सुबह सुबह ऐसी बातों से मन खराब हो जाता है ... पर क्या करें ... सच भी तो यही है आज का ...
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