Thursday, May 19, 2011

कस्तूरी गंध



अपने ही
भीतर
तलाश
करती रहती हूँ
तेरी वह
कस्तूरी गंध
जो वक़्त के
साथ साथ
तेरे आने की
आस लिए
कहीं
धूमिल सी हो कर
खोने लगी है
अपना अस्तित्व !!!

27 comments:

Udan Tashtari said...

वाह!! क्या बात है!

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर ।

Kailash Sharma said...

बहुत खूब!

udaya veer singh said...

ati sunder rachana ji .badhayi .

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

khoobsurat rachna hai Ranju jee

shikha varshney said...

क्या बात है ..पर कस्तूरी खोती नहीं कभी.हाँ हमें कभी एहसास नहीं होता .
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.

Deepak Saini said...

बहुत खूब
छोटी सी प्यारी सी कविता

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

Mohinder56 said...

वो जिसे स्वंय में समाहित होते हुये भी स्वंय नहीं खोज पाये वही तो कस्तुरी है...और शायद यही कस्तुरी उस कस्तुरी हिरण के अन्त का कारण... आपेक्षायें सभी पीडाओं का कारण

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bahut khoob ..ranju ji .....in kuchh panktiyon me bahut kuchh kah diya aapne...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर.....कमाल की पंक्तियाँ

Arvind Mishra said...

कस्तूरी कुंडल बसे ... :)

सदा said...

वाह ...बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

M VERMA said...

एहसास की यह कस्तूरी गन्ध .. बहुत खूबसूरत है

वाणी गीत said...

खुद से बाहर कहाँ ढूंढ़ लूं तुझे ...
तू है तो मैं हूँ ...
सुन्दर !

स्वाति said...

प्यारी सी कविता....

हमारीवाणी said...

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Maheshwari kaneri said...

बहुत-बहुत धन्यवाद मेरे ब्लांग मे आने के लिये आप की कस्तुरीगंध बहुत मनमोहक है

Shanno Aggarwal said...

आपकी कविता सलोनी खुशबू से महक रही है.

Shanno Aggarwal said...

सुंदर कविता...

रंजना said...

भावपूर्ण...

Braj Kishore Singh - The Writter said...

Bahut Sunder Khayal

Braj Kishore Singh - The Writter said...

Bahut Sunder Khayaal!

कविता रावत said...

अपने ही
भीतर
तलाश
करती रहती हूँ
तेरी वह
कस्तूरी गंध ....
...सबकुछ अपने भीतर ही तो छुपा रहता है......
बहुत बढ़िया रचना..

शरद कोकास said...

सुन्दर प्रेमकविता ।

दिगम्बर नासवा said...

शायद वो गंध तो वहीं होती है ... पर मृग की तरह उसे हम खोज नही पाते ...

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत खूब .....