जन्म लेने से पहले ...
साँसों के तन से ,
जुड़ने से पहले ...
न जाने कितने रिश्ते
खुद बा खुद जुड़ जाते हैं
और बन्ध जाते हैं
कितने बंधन
इन अनजान रिश्तों से ,
और फिर विश्वास की डोर से
बंधे यह रिश्ते
लम्हा -लम्हा
पनपने लगते हैं
होता है फिर न जाने ..
अचानक से कुछ ऐसा ,
कि अपने ही कहे जाने वाले
अजनबी से हो जाते हैं
रस्मी बातें ...
रस्मी मुलाकातें ...
एक "लाइफ सपोर्ट सिस्टम "
से बन जाते हैं
बोझ बने यह रिश्ते
आखिर कब तक यूँ ही
निभाते जायेंगे
सोचती हूँ कई बार
आखिर क्यों नहीं
इन बोझिल रिश्तों को
हम खत्म हो जाने देते
आखिर क्यों नहीं ....
हम अपनी "स्व मौत" मर जाने देते ??
साँसों के तन से ,
जुड़ने से पहले ...
न जाने कितने रिश्ते
खुद बा खुद जुड़ जाते हैं
और बन्ध जाते हैं
कितने बंधन
इन अनजान रिश्तों से ,
और फिर विश्वास की डोर से
बंधे यह रिश्ते
लम्हा -लम्हा
पनपने लगते हैं
होता है फिर न जाने ..
अचानक से कुछ ऐसा ,
कि अपने ही कहे जाने वाले
अजनबी से हो जाते हैं
रस्मी बातें ...
रस्मी मुलाकातें ...
एक "लाइफ सपोर्ट सिस्टम "
से बन जाते हैं
बोझ बने यह रिश्ते
आखिर कब तक यूँ ही
निभाते जायेंगे
सोचती हूँ कई बार
आखिर क्यों नहीं
इन बोझिल रिश्तों को
हम खत्म हो जाने देते
आखिर क्यों नहीं ....
हम अपनी "स्व मौत" मर जाने देते ??
37 comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
कई बार इस बंधन में ही खुशी मिलती है..शायद..इसलिए..
सुन्दर अभिव्यक्ति.
और फिर विश्वास की डोर से
बंधे यह रिश्ते
लम्हा -लम्हा
पनपने लगते हैं
बेहतरीन शब्द रचना ।
उन्हें हम अपनी मौत मर जाने देते ? यही न ?
कई बार ये सवाल उठता है मन में !
स्वमौत कैसे मर जाने दें..बोझ बने रिश्ते भी अपने ही बनाए हुए होते हैं..हमारे साथ ही मरते हैं...
भावप्रधान कविता..
स्व मौत का अभी क़ानून नहीं बना ...
रचना में गंभीर बात कही है ..बिना बंधन ( रिश्तों ) के जीवन नहीं और कभी कभी यही रिश्ते जीने भी नहीं देते ...गहन सोच ..
बहुत उम्दा!
bahut sundar.....
bahut sundar.....
bahut sundar.....
और फिर विश्वास की डोर से
बंधे यह रिश्ते
लम्हा -लम्हा
पनपने लगते हैं
बहुत सुंदर ....होता यही है....
न निभाये जाँय तो ख़ुद ब ख़ुद मर जाते हैं
आप कोशिश की ज़हमत क्यों उठाते हैं
gahri soch....
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 19 - 04 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
adbhut aur bemishal kvita bdhai
bahut bahtui sarthak abhivyakti!
badhai kabule!
और फिर विश्वास की डोर से
बंधे यह रिश्ते
लम्हा -लम्हा
पनपने लगते हैं
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
शायद इन्सान होने की मजबूरी है उन रिश्तों को जीवित रखना .....
रिश्तों की कशमकश और संबंधों के दर्द को सार्थक एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति दे रही है आप की कविता ....
pahali bar aapki rachana ko padha , aisa laga kisi darvesh ya sufi ki aanandmayi rahsyapurn geet ko bina dhwani ke sun raha hun . riste to bas jode jate hain ,tutane ki kya garantee.
bahut sunder kavy aur bhav . badhayi .
ham khud me itni himmat nahi bator pate aur dusre ke prati itne kathor faisla nahi le pate aur apne bhavuk dil ko yah kah kar samjhate rahte hain ki jo chot tune khayi vo tu dusro ko na de....yahi soch in rishto ko maut nahi de pate.
dil ko chhoo gayi apki rachna.
साथ चलने वालों का अचानक अजनबी बन जाना , दिल तो दुखता है ..
किस किस रिश्ते को ख़त्म करेंगे , भौतिकवादी दुनिया में हर रिश्ता औपचारिक बनता जा रहा है ...
nice expression!!!!!!!!
वो तो स्व: मौत मर जाते लेकिन हम उन्हें मरने भी कहाँ देते हैं पल पल याद करते हैं। सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
Life support hote hain na tabhee to hum nibahte hai.
शिद्दत से गुंथा है आपने विचारों को....
ये रिश्ते जिलाए रखने की ज़द्दोजहद में ही तो हम हर रोज जीते हैं और हर रोज मरते हैं ! इन्हें कैसे स्व मौत मरने दें ! ये मर गये तो हमारे जीने का क्या अर्थ रह जायेगा ! सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें ! !
excellent...
achchi kavita hai
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
प्रश्न यह मन को कचोटता तो है ...पर चाहकर भी मन इन बंधनों से उबर नहीं पाता...तोड़ नहीं पाता...
सहज मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति...
bahut achchhi kavita hai
sanchmuch rishton ki kimat ko samjhne ki aawshykata hai. aapki kavita bahut achchhi lagi.
bahut khubsurat.
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