वाह!! क्या बात है!
बहुत सुन्दर ।
बहुत खूब!
ati sunder rachana ji .badhayi .
khoobsurat rachna hai Ranju jee
क्या बात है ..पर कस्तूरी खोती नहीं कभी.हाँ हमें कभी एहसास नहीं होता .बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.
बहुत खूब छोटी सी प्यारी सी कविता
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
वो जिसे स्वंय में समाहित होते हुये भी स्वंय नहीं खोज पाये वही तो कस्तुरी है...और शायद यही कस्तुरी उस कस्तुरी हिरण के अन्त का कारण... आपेक्षायें सभी पीडाओं का कारण
bahut khoob ..ranju ji .....in kuchh panktiyon me bahut kuchh kah diya aapne...
बहुत सुंदर.....कमाल की पंक्तियाँ
कस्तूरी कुंडल बसे ... :)
वाह ...बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
एहसास की यह कस्तूरी गन्ध .. बहुत खूबसूरत है
खुद से बाहर कहाँ ढूंढ़ लूं तुझे ...तू है तो मैं हूँ ...सुन्दर !
प्यारी सी कविता....
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बहुत-बहुत धन्यवाद मेरे ब्लांग मे आने के लिये आप की कस्तुरीगंध बहुत मनमोहक है
आपकी कविता सलोनी खुशबू से महक रही है.
सुंदर कविता...
भावपूर्ण...
Bahut Sunder Khayal
Bahut Sunder Khayaal!
अपने हीभीतरतलाशकरती रहती हूँतेरी वहकस्तूरी गंध .......सबकुछ अपने भीतर ही तो छुपा रहता है......बहुत बढ़िया रचना..
सुन्दर प्रेमकविता ।
शायद वो गंध तो वहीं होती है ... पर मृग की तरह उसे हम खोज नही पाते ...
बहुत खूब .....
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27 comments:
वाह!! क्या बात है!
बहुत सुन्दर ।
बहुत खूब!
ati sunder rachana ji .badhayi .
khoobsurat rachna hai Ranju jee
क्या बात है ..पर कस्तूरी खोती नहीं कभी.हाँ हमें कभी एहसास नहीं होता .
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.
बहुत खूब
छोटी सी प्यारी सी कविता
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
वो जिसे स्वंय में समाहित होते हुये भी स्वंय नहीं खोज पाये वही तो कस्तुरी है...और शायद यही कस्तुरी उस कस्तुरी हिरण के अन्त का कारण... आपेक्षायें सभी पीडाओं का कारण
bahut khoob ..ranju ji .....in kuchh panktiyon me bahut kuchh kah diya aapne...
बहुत सुंदर.....कमाल की पंक्तियाँ
कस्तूरी कुंडल बसे ... :)
वाह ...बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
एहसास की यह कस्तूरी गन्ध .. बहुत खूबसूरत है
खुद से बाहर कहाँ ढूंढ़ लूं तुझे ...
तू है तो मैं हूँ ...
सुन्दर !
प्यारी सी कविता....
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बहुत-बहुत धन्यवाद मेरे ब्लांग मे आने के लिये आप की कस्तुरीगंध बहुत मनमोहक है
आपकी कविता सलोनी खुशबू से महक रही है.
सुंदर कविता...
भावपूर्ण...
Bahut Sunder Khayal
Bahut Sunder Khayaal!
अपने ही
भीतर
तलाश
करती रहती हूँ
तेरी वह
कस्तूरी गंध ....
...सबकुछ अपने भीतर ही तो छुपा रहता है......
बहुत बढ़िया रचना..
सुन्दर प्रेमकविता ।
शायद वो गंध तो वहीं होती है ... पर मृग की तरह उसे हम खोज नही पाते ...
बहुत खूब .....
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