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Thursday, July 22, 2010
तब जिंदगी मेरी तरफ रुख करना .
जिस तरफ़ देखो उस तरफ़ है
भागम भाग .....
हर कोई अपने में मस्त है
कैसी हो चली है यह ज़िन्दगी
एक अजब सी प्यास हर तरफ है
जब कुछ लम्हे लगे खाली
तब ज़िन्दगी
मेरी तरफ़ रुख करना
खाना पकाती माँ
क्यों झुंझला रही है
जलती बुझती चिंगारी सी
ख़ुद को तपा रही है
जब उसके लबों पर
खिले कोई मुस्कराहट
ज़िन्दगी तब तुम भी
गुलाबों सी खिलना
पिता घर को कैसे चलाए
डूबे हैं इसी सोच को ले कर
किस तरह सब को मिले सब कुछ बेहतर
इसी को सोच के घुलते जा रहे हैं
जब दिखे वह कुछ अपने पुराने रंग में
हँसते मुस्कराते जीवन से लड़ते
तब तुम भी खिलखिला के बात करना
ज़िन्दगी तब मेरी तरफ़ रुख करना
बेटी की ज़िन्दगी उलझी हुई है
चुप्पी और किसी दर्द में डूबी हुई है
याद करती है अपनी बचपन की सहेलियां
धागों सी उलझी है यह ज़िन्दगी की पहेलियाँ
उसकी चहक से गूंज उठे जब अंगना
तब तुम भी जिंदगी चहकना
तब मेरी तरफ तुम भी रुख करना
बेटा अपनी नौकरी को ले कर परेशान है
हाथ के साथ है जेब भी है खाली
फ़िर भी आँखों में हैं
एक दुनिया उम्मीद भरी
जब यह उम्मीद
सच बन कर झलके
तब तुम भी दीप सी
दिप -दिप जलना
ज़िन्दगी तुम इधर तब रुख करना
नन्हा सा बच्चा
हैरान है सबको भागता दौड़ता देख कर
जब यह सबकी हैरानी से उभरे
मस्त ज़िन्दगी की राह फ़िर से पकड़े
तब तुम इधर का रुख करना
ज़िन्दगी अपने रंगों से
खूब तुम खिलना...
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28 comments:
हर कोई अपने में मस्त है
कैसी हो चली है यह ज़िन्दगी
बहुत सुन्दर रचना....आभार
जब कुछ लम्हे लगे खाली
तब ज़िन्दगी
मेरी तरफ़ रुख करना...
वाह ... ज़िन्दगी के सभी रंगों को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने .हमेशा की तरह प्यारी सी कविता ..
Beautiful poem. Aruna
ज़िन्दगी को बहुत ही खूबसूरती से बुलाया है……………।वो गाना याद आ गया
मेरे घर आना ,आना ज़िन्दगी
बेहद उम्दा प्रस्तुति……………दर्द को भी खुशियों की चाशनी मे लपेट दिया।
आज कि हकिकात को बयान करती सटीक रचना....
कब कर पायेगी ज़िंदगी आपकी तरफ रुख ?
जब कुछ लम्हे लगे खाली
तब ज़िन्दगी
मेरी तरफ़ रुख करना
बहुत सुन्दर रचना है रंजना जी. जीवन के हर रंग को सहेजे हुए. सच है, आदमी अपनी ज़िम्मेदारियों में कुछ इस कदर मसरूफ़ रहता है, कि ज़िन्दगी कब अन्तिम पड़ाव पर आ गई, पता ही नहीं चलता.
kya baat hai bahut khoob likha aapne
क्या कहूँ आपकी सभी रचनाएँ सुन्दर होती हैं
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तख़लीक़-ए-नज़र
तकनीक-दृष्टा
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati
यही तो है आज की भागती दौड़ती जिंदगी .
-जिन्दगी के रंगों का आशावादी इन्द्रधनुष दिखाई दे रहा है इस कविता में .
-जिंदगी जब भी रुख करेगी उम्मीद के सूरज को साथ लिए ही रुख करेगी.चाहे खाली लम्हों को भरने या फिर किसी की उदासियों को मुस्कराहट में बदलने !
-बहुत अच्छी कविता है.
जीवन के अलग-अलग रंग ...
behad khoobsurat kavita....
जब आपकी कविता रूमान से ज़िंदगी की तरफ़ रुख़ करती है, तो एक सार्थकता पाने लगती है।
शुक्रिया।
जीवन के हर सत्य को लिख दिया है आपने ... हर दर्द के पीछे आशा है ... किसी चलचित्र की तरह आपकी रचना अनुपम है..
मंगलवार 27 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
ज़िन्दगी को बहुत ही खूबसूरती से बुलाया है
बहुत सुन्दर रचना है रंजना जी.
seeing ur blog after long time...very nice poem..
बहुत खूबसूरत एहसासों में ढाला जिंदगी को.
आपने मीना कुमारी के बारे में आगे कुछ नहीं लिखा मई के बाद...अगर लिखा हो तो प्लीस लिंक भेजियेगा. इंतज़ार रहेगा.
इतने प्यार से कोई बुलाए फिर क्या मजाल की जिंदगी न आये !!!!
रंजना जी
नमस्कार !
तब ज़िंदगी मेरी तरफ़ रुख करना
बहुत अच्छी काव्य रचना है
जीवन की गहमागहमी , विवशता , आशा - निराशा सहित विविध भावों को पिरो कर श्रेष्ठ कविता के सृजन के लिए बधाई ! आभार ! स्वागत !
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
रेशानियाँ तोड़ देती है ,जब जिस्म को ,रूह को, तब भी जिन्दगीकिसी बच्चे के चहरे में मुस्कुरा कर जीने की आस जगती है . आपकी रचना प्रभावोत्पादक है रंजना जी .
जिन्दगी को बुलाने का ये तरीका पसंद आया ।
चिंता और भागमभाग का मूल है-पैसा जो सिर्फ उस बच्चे के लिए बेमानी है जो सबको परेशान देखकर हैरान है।
ज़िन्दगी आपकी आवाज़ सुन ले ...आमीन ।
बहुत अच्छा लिखा है आपने।
यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी...
लम्हे...जिंदगी...रुख...क्या कुछ बयां नहीं है...सुन्दर काव्य के लिए आभार....
लम्हे...जिंदगी...रुख...क्या कुछ बयां नहीं है...सुन्दर काव्य के लिए आभार....
देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.... आपकी यह रचना बहुत सुंदर लगी... दिल को छू गयी...
आभार...
बहुत खूब .. लाजबाब लिख है !!
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