Thursday, December 31, 2009

झूमता हुआ नया साल फ़िर आया....


नया साल
एक नई आशा
नई उम्मीद जगाता हुआ
कलेंडर के पन्नों पर
उतर आता है
और कुछ दिन तो
अपने नयेपन के एहसास से
कुछ तो अलग रंग दिखाता है....

फिर ढलने लगते हैं लम्हे
वक़्त यूँ ही गुजरता जाता है ....
कुछ नया होने की आस में
यह जीवन यूँ ही बीतता जाता है

नए साल की सबको बहुत बहुत बधाई ......इस नए साल की शुरू आत इस बार एक बाल पत्रिका में पब्लिश हुई बाल कविता से ...आने वाला नया साल यूँ ही किसी बच्चे सा मासूम हो ,सबके लिए मंगलमय हो ..इसी दुआ के साथ ...

झूमता हुआ फ़िर से नया साल आया
खुशियों की नई सौगात यह लाया


बीते पल को दे अब हम विदाई
नए पलों को यह दिखाने को लाया
झूमता हुआ नया साल फ़िर आया


सब तरफ़ अब हटे
अन्धकार का अँधेरा
बिखरें किरणे दिनकर की
नया हो सवेरा ..
कुदरत ने भी गीत नया गया
झूमता हुआ नया साल फ़िर से आया

नव बीज से नया भारत हम बनाएं
जाति धर्म का हर भेद मिटायें
मानव धर्म को सब अपनाएँ
यही संदेश दिल ने फिर दोहराया
झूमता हुआ नया साल फ़िर से आया

रंजना (रंजू ) भाटिया

Monday, December 28, 2009

कुछ बिखरे लफ्ज़ (क्षणिकाएँ...)


वक़्त.

क्यों तुम्हारे साथ बिताई
हर शाम मुझे
आखिरी-सी लगती है
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!

हरसिंगार


लरजते अमलतास ने
खिलते हरसिंगार से
ना जाने क्या कह दिया
बिखर गया है ज़मीन पर
उसका एक-एक फूल
जैसे किसी गोरी का
मुखड़ा सफ़ेद हो के
गुलाबी-सा हो गया !!

तस्वीर


तेरी आँखो में
चमकते हुए
अपने ही चेहरे के अक़्स॥

नदी का पानी

एक बहता हुआ सन्नाटा
धीरे धीरे तेरी यादो का

समझौता


तू सही
मैं ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं !!

रंजना (रंजू ) भाटिया

Tuesday, December 22, 2009

लफ्ज़ ,कुछ कहे -कुछ अनकहे ("क्षणिकाएँ..")


तेरे मेरे बीच

तेरे मेरे बीच
एक दुआ
एक सदा
मेरी बेखुदी
तेरी बेरूख़ी
चटका हुआ आईना
काँपता पीले पत्ते सा
फिर भी यह रिश्ता
जन्म तक
यूँ ही चलता रहेगा !!

साथ
जब मैं उसके साथ नही होती
तो वह मुझे
हर श्ये में तलाश करता है
पहरों सोचता है मेरे बारे में
और मिलने की आस करता है
पर जब मैं मिलती हूँ उस से
तो वह तब भी कुछ
खोया सा उदास सा
जाने क्यों रहता है !!

इन्द्रधनुष


सात रंगो से सज़ा
कोई नशीला गीत
दिखता हर रंग में
बस एक ही लफ़्ज़
प्रीत

रिश्ता

रूह से रूह का
एक बेनाम सा
पर दिल की अन्तस
गहराई में डूबा
क्या ज़रूरी है
इस को कोई नाम देना

प्यार


क्यों आज हवा
हर साँस लगती है अपनी
हर फूल ख़ुद का
चेहरा-सा लगता है
मन उड़ रहा है
कुछ यूँ ख़ुश हो के
जैसे इच्छाओं ने
पर लगा लिए हैं
और रूह आज़ाद हो के
तितली हो गई है

एक बोल


दुनिया के इस शोर में
बस चुपके कह देना
प्यार का एक बोल
पी लूंगी मैं
बंद आँखों से
जो कहा तेरी आंखों ने !!

मेरा वजूद

तेरे अस्तित्व से लिपटा
यूं घुट सा रहा है
कि एक दिन
तुझे ..
मैं तन्हा
छोड़ जाऊंगी !!



रंजना (रंजू )भाटिया

Tuesday, December 15, 2009

क्षणिकाएँ...


१)उलझन

बनो तुम चाहे
मेरी कविता
चाहे बनो अर्थ
चाहे बनो संवाद,
पर मत बनो
ऐसी उलझन
जिसे में कभी
सुलझा सकूं!
२)तन्हा

चाँद भी तन्हा
तारे भी हैं अकेले
और हम भी उदास से
उनकी राह तकते हैं
तीनो हैं तन्हा एक साथ
फ़िर भी क्यों इस कदर
अकेले से दिखते हैं ?


३)चुपके से

आओ बेठो ,
मेरे पास
और कुछ चुपके
से कह जाओ
पर जगाना
उन उलझनों को
जिनको थपथपा
के मैंने सुलाया है अभी !

४)दर्द


यह दर्द भी अजीब शै है
जिद्दी मेहमान सा..
दिल में बस जाता है
फ़िर चाहे इसको
पुचकारो ,संभालो जितना
यह उतना ही नयनों से
छलक जाता है!

५)समय

यूँ फिसला जैसे
हाथ धोते वक़्त
साबुन बेसिन में ॥


६)स्पर्श

कांपती साँसें
लरजते होंठ
आँखों में है
एक दबी सी ख़ामोशी
क्या वो तुम नहीं थे?
जिसने अभी छुआ था
मुझे संग बहती हवा के !!


७)अस्तित्व

रिश्तों से बंधी
पर कई खंडों में खंडित
""हाय ओ रब्बा!""
कहीं तो मुझे मेरे
अस्तित्व के साथ जीने दे!!


कुछ पुरानी क्षणिकाएँ रंजना (रंजू ) भाटिया

Friday, December 04, 2009

तरक्की की कीमत..

बचपन के दिन कैसे फुदक के उड़ जाते हैं ,स्कूल की शिक्षा खत्म हुई और आँखो में बड़े बड़े सपने खिलने लगते हैं जैसे ही उमंगें जवान होती है कुछ करने का जोश और आगे ऊँचे बढ़ने का सपना आंखो में सजने लगता है !ठीक ऐसा ही शिवानी की आँखो में था एक सपना कुछ बनने का , कुछ पाने का जिन्दगी के सब खूबसूरत रंगो को जीने का! वह मेघावी थी और सब गुण भी थे उस में , पर वह एक बहुत छोटे से शहर की लड़की थी !अपने सपनो को पूरा करने के लिए उसको शहर जाना पड़ता और घर की हालत ऐसी थी नही की वह आगे पढने जा पाती ..पिता का साया बचपन में ही उठ गया था ,घर में सिर्फ़ माँ थी ...वैसे माँ भी उसके सपनो को पूरा होते देखना चाहती थी पर एक तो पैसे की कमी दूसरा लड़की जात कैसे बाहर जाने दे! ,शिवानी माँ को भरोसा दिलाती कि उस पर विश्वास रखे वह उनको जरुर कुछ बन के दिखायेगी .! बस अब उसको इंतज़ार था अपने रिजल्ट का जिसके अच्छा आने पर उसको स्कालरशिप मिल सकती थी .. और वह अपने सब सपनो को अपनी माँ के सपनो को पूरा कर सकती थी ! और आखिर रिजल्ट आ गया .वह जो उम्मीद कर रही थी वही हुआ ,वह न केवल फर्स्ट क्लास से पास हुई बल्कि उसको स्कालरशिप भी मिल गया था ..अब उसके सपनो को पंख मिल गए और उसने सोच लिया कि वह आगे पढने शहर जायेगी !


अपने सपनो के साथ बड़े शहर मुंबई आ गयी, यहाँ की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी और महंगाई के साथ उस यहाँ रहना बहुत मुश्किल सा लगाने लगा ! इसी शहर में उसके एक दूर की आंटी रहती थी जो शहर की मानी हुई डाक्टर थी ...बहुत मुश्किल से उसको कॉलेज के होस्टल में ही रहने की जगह मिल गयी तो उसने कुछ राहत की साँस ली ...सोचा की चलो पढ़ाई के साथ रहने का बदोबस्त हो गया है अब कोई पार्ट टाइम काम करके अपना ख़र्चा ख़ुद ही निकल लूंगी और अपनी माँ को ज्यादा तकलीफ़ नही दूँगी ....उसकी साथ कमरे में रहने वाली लड़की बड़े शहर से थी और बहुत अमीर परिवार से थी ..ख़ूब शान शौकत से रहती ..पैसे उड़ाना उसका शौक भी था और जनून भी ..रोज़ नये कपड़े मेकअप और ऊपर से सिगरेट और नशे की भी आदत ...शिवानी देख के डरी डरी सी रहती ...पर क्या करती ,रहना तो था ही ना .. !

बला की सुंदर और खूबसूरत शिवानी को जो देखता वो देखता रहा जाता ,हँसती तो गालो के गड्ढे जैसे अपनी और बुलाते थे ,...कालेज के कई लड़के उसको बस देखते ही रह जाते पर एक समान्य सा दिखने वाला लड़का रोहित तो जैसे उस पर अपनी जान देता था !..शिवानी शुरू शुरू में अपनी आंटी के घर चली जाती ..और उनसे कहती की कोई काम साथ साथ मिल जाए तो उसकी पैसों की परेशानी कम हो जाएगी!

परिस्थितियाँ या तो इंसान को बहुत ताक़तवर बना देती हैं या बहुत कमज़ोर! कुछ ऐसा ही शिवानी के साथ हुआ पहले उसके साथ उसके कमरे में रहने वाली लड़की सीमा उसके साथ बहुत प्यार से पेश आई फिर उसने उसका मज़ाक बनाना शुरू कर दिया ,कभी उसके कपड़ों का कभी उसके रहने के ढंग का कि वो यहाँ आ कर भी के कस्बे की लड़की ही बना रहना चाहती है ,,धीरे धीरे शिवानी भी उसके रंग में रंगने लगी , पर उस के पैसे कहाँ से आए... कोई नौकरी अभी मिल नही रही थी ,पहले सीमा के साथ सिगरेट फिर नशा और फिर गए देर रात तक पार्टी ..और उसके बाद सिर्फ़ अंधेरा था जहाँ वो लगातार गिरती चली गयी .. धीरे धीरे उसको वो जीने का ढंग रास आने लगा !
अब वो भी नये महंगे कपड़ों में घूमती ..महंगी कारो में घूमना उसका शौक बन गया .होस्टल उसको बंदिश लगने लगा तो उसने एक नया घर किराए पर ले लिया !रोहित यह सब देख के उसको समझाने की कोशिश करता ..कभी कभी उसकी अन्तरात्मा भी उसको कचोटती पर वो ख़ुद को यह कह कर चुप करा देती कि जीने के लिए सब जायज़ है.. क्या हुआ जो दो घंटे किसी के साथ गुज़ार लिए हँस बोल लिया , ज़िंदगी तो अब जीने लायक लगने लगी है ,उसके सारे सपने हवा में उड़ गये जो वो अपनी आँखो में बसा के आई थी ..रोहित उसको वापस बुला बुला के थक गया पर उसने पीछे मुड़ के उसकी तरफ़ देखा भी नही ....बस एक ही नशा की पैसा कमाना है किसी भी तरीक़े से और सुख से जीना है !

उधर उसकी आंटी भी हैरान परेशान थी की जो लड़की हर सप्ताह के अंत में उस से मिलने को उतावाली रहती थी अब वो महीनो-महीनो अपनी शक्ल नही दिखाती हैं उन्होने जब उसके बारे में सब पता लगाया तो उनके पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन सरक गयी ..बहुत समझाने की कोशिश की ...यह भी कहा कि वो उसके घर में ख़बर कर देंगी पर शिवानी जैसे कुछ सुनने की तैयार ही नही थी !
हार कर उसकी आंटी ने उसकी माँ को फ़ोन पर सब बात बता दी कि मेरे समझाने से वह कुछ नही समझ रही है शायद आपका डर और कुछ शर्म उसको वापस राह पर ले आए ! शिवानी की माँ सुन कर जैसे सुन्न सी हो गई एक अकेली विधवा औरत जिसका बुढापा शिवानी के सहारे गुजरना था आज यह सब सुनते ही शिवानी के साथ सजाये सब सपनों के साथ सब मिटटी में मिल गया ...

कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि अब कौन समझाए उस को जो ख़ुद ही ना समझना चाहे सो थक हार के उसकी माँ आंसू बहा के रह गई और उसकी आंटी ने उसको उसके हाल पर छोड़ दिया !


वक़्त का पहिया चलता रहा ...एक दिन आंटी अपने क्लीनिक से घर जा रही थी कि सड़क के एक और उन्हें शिवानी दिखी उसके साथ उसका दोस्त रोहित था ..शिवानी की हालत बहुत बुरी हो रही थी .. सुंदर शिवानी के गाल पिचक चुके थे बाल उलझे हुए कंघी मांग रहे थे और गोरा खिला हुआ रंग काला पड़ चुका था .कमज़ोर इतनी थी कि बोला भी नही जा रहा था .हर चीज की अति बुरी होती है और शिवानी कि हालत उसकी बर्बादी की कहानी सुना रहे थे !
आंटी उसकी यह हालत देख के घबरा गयी और पूछने लगी कि हुआ क्या है ??.. शिवानी अब क्या बोलती ..तब रोहित ने आंटी को बताया कि वो जिस रास्ते पर चल पड़ी थी वहाँ जाने के लिए कितनी बार मना किया पर शायद उस वक़्त यह मेरी बात नही समझ पाई मुझे तो इसका पता अपने एक दोस्त से चला मैं इसको डाक्टर के पास चेकअप के लिए ले के गया था ..इसको एड्स हो गया है और अब वह आखरी स्टेज पर है! यह सुन कर आंटी जैसे स्तब्ध रह गयीं! रोहित ने उसकी रिपोर्ट्स की फाइल आंटी को दिखा दी ..जिसके पन्ने बर्बादी की दास्तान सुना रहे थे ..उन्होंने उसको अपने नर्सिंग होम में एडमिट होने को कहा .वह उसकी सब रिपोर्ट्स देख चुकी थी, कही कोई उम्मीद की किरण नज़र नही आ रही थी !.शिवानी अपनी आंटी से नज़रें नही मिला पा रही थी ,उसने रोहित को कहा कि वह वहाँ से जाए वह अपने आप घर चली जायेगी उसको आंटी से कुछ बात करनी है !रोहित उसको वहाँ छोड़ के चला गया ! उसका दर्द उसके चेहरे से छलक रहा था ,और वो जैसे हर पल अपने इस किए से मुक्ति पाना चाहती थी .पर उसके लिए वह हिम्मत नही संजो पा रही थी .उसने अपनी आंटी से कहा कि मुझे प्लीज नींद की गोलियां दे दो ..मैं जीना नही चाहती ख़ुद मरने का साहस मुझ में है नही और मैं तिल तिल के नही मारना चाहती!

आंटी ने यह सुनते ही उसको डांट लगाई कि बेवकूफी की बातें न करे ..वो उसकी आखरी साँस तक उसको बचाने कि कोशिश करेंगी!जो होना था वो हो गया अब हिम्मत से काम ले ! उन्होंने उसको कुछ खिला के दवा दे दी और सोने के लिए कहा ..अपने कमरे में आ कर आंटी सोचने लगी . कि हमारी यह आने वाली पीढी किस दिशा की और चल -पड़ी है ..इनका अंत इतना भयानक क्यों है ? क्यों आज पैसों कि भूख शोहरत की भूख इतनी बढ़ गई है कि हम अपना सब कुछ गंवाने को तैयार हो गए हैं ...ऐसे कई सवाल शायद जिसका जवाब वक़्त के पास भी नही है ......और कहाँ अब उसकी माँ को तलाश करे जो दुनिया के तानों से घबरा कर न जाने कहाँ गुम हो गई थी !!
उधर शिवानी कि आंखो में नींद कहाँ ? उसका रोम रोम उसको दर्द के साथ साथ गुनाह का एहसास करवा रहा था ,थोडी रात और बीतने पर वह चुपके से नर्सिंग होम से निकल कर वापस अपने घर आ गई रात धीरे धीरे ढल गई !सुबह आते ही आंटी ने जब देखा कि वो कमरे में नही हैं तो रोहित को फ़ोन किया ॥सिर्फ़ रोहित ही उसके नए घर का पता जानता था ,रोहित सुनते ही शिवानी के घर भागा ,और जब वहाँ पहुँचा तो शिवानी अब अपने हर दर्द से छुटकारा पा चुकी थी और घर में फैला सन्नाटा किसी गहरे दर्द में डूब चुका था !!

रंजना (रंजू भाटिया )