Tuesday, November 10, 2009

सुनो ...


आसमान की तरह
""खाली आँखे ""
धरती की तरह
"चुप लगते "सब बोल हैं
पर तुम्हारे कहे गए
एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है
कभी लगता है
यह भोर का तारा
कभी सांझ का
गुलाबी आँचल बन
आंखो में बन के
सपना ढल जाता है

लगता है...
कभी यह राग
सुनहरे गीतों का
कभी मुझे ख़ुद में समेटे हुए
अपने में डूबोते हुए
पास से हवा सा गुजरता
यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है !!

रंजना (रंजू ) भाटिया

41 comments:

आभा said...

बहुत सुन्दर...

अजय कुमार said...

यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है !!

भावपूर्ण रचना ,गहरा प्यार

Mithilesh dubey said...

बेहद खूबसूरत रचना लगी। भावपूर्ण

अजित गुप्ता का कोना said...

पहले तभी कहा जाता था कि अजी सुनो जी। बहुत ही प्‍यारा शब्‍द था लेकिन अब तो आ गया है ऐ सुन। अच्‍छी अभिव्‍यक्ति, बधाई।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है....

ati sunder.......... in panktiyon ne dil chhoo liya....

bahut hi sunder kavita hai....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है....

ati sunder.......... in panktiyon ne dil chhoo liya....

bahut hi sunder kavita hai....

Unknown said...

बेहतरीन!

भंगार said...

सुनो में एक सुर है और वो सुर
बडा सुरीला है बस सुनने वाले चाहिये

Arvind Mishra said...

एक सम्मोहक अनुरोध करती कविता

पंकज said...

सुंदर. "सुनो" पुकार भी है, नाम भी और संबन्ध भी.

दिगम्बर नासवा said...

यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है......

वाह .... किसी के होठों से निकला हुवा एक शब्द ...... सच में जीवन बन जाता है .... जिंदगी भर क साथ दे जाता है ..... कोणाल एहसास में रंगी है रूहानी कविता ....... बेहद सुन्दर .......

ओम आर्य said...

बेहद ही खुबसूरत रचना!

M VERMA said...

लगता है...
कभी यह राग
सुनहरे गीतों का
कभी मुझे ख़ुद में समेटे हुए
बहुत सुन्दर; घना एहसास
अत्यंत भावपूर्ण

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

अपने में डूबोते हुए
पास से हवा सा गुजरता
यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है !..
uttam rchna..bdhyee

padmja sharma said...

'सुनो ', भावुक मन की बातें . किसे अच्छी नहीं लगती ?

Manvinder said...

बेहद ही खुबसूरत रचना!

हरकीरत ' हीर' said...

कभी यह राग
सुनहरे गीतों का
कभी मुझे ख़ुद में समेटे हुए
अपने में डूबोते हुए
पास से हवा सा गुजरता
यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है !!

वाह.....सुनो ...तुम रोक लेना आज रात चाँद ...हम लिखेंगे मिलकर दास्तान सिलवटों की .....कुछ लफ्ज़ तुम कहना कुछ लिखूंगी मैं तुम्हारी पीठ पर सुनहरे गीतों का राग .....

बदली हुई फ़िज़ा...और भी बढिया लगी .....!!

!!अक्षय-मन!! said...

waah bahut hi acchi abhivyakti hai komal hraday se likhi gai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"सुनो" लफ्ज़ पर शोधपरक रचना के लिए बधाई!

Abhishek Ojha said...

एक शब्द में कितने भाव छुपे हैं ! बस देखने की जरुरत है आपकी नजरों से.

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi badhiyaa..........

Unknown said...

‘सुनों’ की क्या खूबसूरत? व्याख्या की है आपने।

हाय यह स्त्रीनामा अभिशाप !!

Alpana Verma said...

'Suno'is ek shbd mein kitna jaadu है....
yah aap ki kavita mein badi hi khubsurati se vyakt hua है.

bahut nazuk se ahsaas liye yah kavita pasand aayi.
Is sundar rachna hetu badhaayee.

Udan Tashtari said...

बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!


सुन्दर!!


बधाई.

Sudhir (सुधीर) said...

पर तुम्हारे कहे गए

बड़ी प्यारी हृदयाभिव्यक्ति ...बड़ी गहरी बात कहती हुई लगी आपकी यह पंक्तिया...साधू!!

एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है

गौतम राजऋषि said...

बड़ी देर से बैठा रहा कुछ अलग-सी तारिफ़ लिखूं इस सुंदर कविता के लिये...

"सुनो"...आह!

लेकिन "सुंदर" से सुंदर क्या हो सकता है?

के सी said...

शब्दों में व्यापक अर्थ छुपे हुआ करते हैं आपने इस कविता के माध्यम से कुछ बिसरा दिए गए अर्थों को याद दिला दिया है.
सुंदर कविता.

निर्मला कपिला said...

"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है
रंजू जी निशब्द ही रहना सही रहता है आपकी रचनाओं मे लाजवाब बधाई

Asha Joglekar said...

क्या बात है रंजू जी, एक 'सुनो' लफ्ज़ को लेकर आपने तो बिन संवाद के कितने भाव रच डाले । सुंदर ।

सुशील छौक्कर said...

ये आपकी लेखनी का ही कमाल है जो आप इस अहसास को भी लिख गई। "सुनो" इस शब्द में जो भाव होता है वाकई एक अलग ही अहसास होता है। बहुत बहुत....सुन्दर रचना।

rashmi ravija said...

एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
aapne to kayee arth de diye is "सुनो" shabd ko...khubsoorat rachna

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह!सुन्दर प्रस्तुति....बहुत ही अच्छी लगी ये रचना.....

रचना दीक्षित said...

रंजना जी मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
आपकी कविता सुना अनसुना जाने क्या क्या याद दिला गयी .आपकी कवित छोड़ मैं तो अपनी ही भावनाओं में बह चली बेहतरीन
आभार रचना दीक्षित

Suman said...

bahut sunder hai

Suman said...

sunder hai

Dr.R.Ramkumar said...

"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है
कभी लगता है
यह भोर का तारा
कभी सांझ का
गुलाबी आँचल बन
आंखो में बन के
सपना ढल जाता है

चिंतनपरक चित्रण , भोर और सांझ की तरह...हल्का गुलाबी..

रंजना said...

yah bhavuk pranaygeet to bas apne pratyek shabdon ke saath taral kar baha le jata hai.........bhavbhari bahut hi sundar kavita...

अभिषेक आर्जव said...

पूरी भंगिमा सम्मुख साकार हो गयी ! सुन्दर कविता !

vandana gupta said...

us ahsaas ko mehsoos karna aur shabdon mein dhalna ........yahi to aapki lekhni ki khoobi hai.

संजय भास्‍कर said...

यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है....

ati sunder.......... in panktiyon ne dil chhoo liya....

bahut hi sunder kavita hai....

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

waaah...

’सुनो’... :)

badhaai..