Pages
Tuesday, November 10, 2009
सुनो ...
आसमान की तरह
""खाली आँखे ""
धरती की तरह
"चुप लगते "सब बोल हैं
पर तुम्हारे कहे गए
एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है
कभी लगता है
यह भोर का तारा
कभी सांझ का
गुलाबी आँचल बन
आंखो में बन के
सपना ढल जाता है
लगता है...
कभी यह राग
सुनहरे गीतों का
कभी मुझे ख़ुद में समेटे हुए
अपने में डूबोते हुए
पास से हवा सा गुजरता
यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है !!
रंजना (रंजू ) भाटिया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
41 comments:
बहुत सुन्दर...
यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है !!
भावपूर्ण रचना ,गहरा प्यार
बेहद खूबसूरत रचना लगी। भावपूर्ण
पहले तभी कहा जाता था कि अजी सुनो जी। बहुत ही प्यारा शब्द था लेकिन अब तो आ गया है ऐ सुन। अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई।
एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है....
ati sunder.......... in panktiyon ne dil chhoo liya....
bahut hi sunder kavita hai....
एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है....
ati sunder.......... in panktiyon ne dil chhoo liya....
bahut hi sunder kavita hai....
बेहतरीन!
सुनो में एक सुर है और वो सुर
बडा सुरीला है बस सुनने वाले चाहिये
एक सम्मोहक अनुरोध करती कविता
सुंदर. "सुनो" पुकार भी है, नाम भी और संबन्ध भी.
यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है......
वाह .... किसी के होठों से निकला हुवा एक शब्द ...... सच में जीवन बन जाता है .... जिंदगी भर क साथ दे जाता है ..... कोणाल एहसास में रंगी है रूहानी कविता ....... बेहद सुन्दर .......
बेहद ही खुबसूरत रचना!
लगता है...
कभी यह राग
सुनहरे गीतों का
कभी मुझे ख़ुद में समेटे हुए
बहुत सुन्दर; घना एहसास
अत्यंत भावपूर्ण
अपने में डूबोते हुए
पास से हवा सा गुजरता
यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है !..
uttam rchna..bdhyee
'सुनो ', भावुक मन की बातें . किसे अच्छी नहीं लगती ?
बेहद ही खुबसूरत रचना!
कभी यह राग
सुनहरे गीतों का
कभी मुझे ख़ुद में समेटे हुए
अपने में डूबोते हुए
पास से हवा सा गुजरता
यह" सुनो "लफ्ज़
एक दास्तान बन जाता है !!
वाह.....सुनो ...तुम रोक लेना आज रात चाँद ...हम लिखेंगे मिलकर दास्तान सिलवटों की .....कुछ लफ्ज़ तुम कहना कुछ लिखूंगी मैं तुम्हारी पीठ पर सुनहरे गीतों का राग .....
बदली हुई फ़िज़ा...और भी बढिया लगी .....!!
waah bahut hi acchi abhivyakti hai komal hraday se likhi gai
"सुनो" लफ्ज़ पर शोधपरक रचना के लिए बधाई!
एक शब्द में कितने भाव छुपे हैं ! बस देखने की जरुरत है आपकी नजरों से.
bahut hi badhiyaa..........
‘सुनों’ की क्या खूबसूरत? व्याख्या की है आपने।
हाय यह स्त्रीनामा अभिशाप !!
'Suno'is ek shbd mein kitna jaadu है....
yah aap ki kavita mein badi hi khubsurati se vyakt hua है.
bahut nazuk se ahsaas liye yah kavita pasand aayi.
Is sundar rachna hetu badhaayee.
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
सुन्दर!!
बधाई.
पर तुम्हारे कहे गए
बड़ी प्यारी हृदयाभिव्यक्ति ...बड़ी गहरी बात कहती हुई लगी आपकी यह पंक्तिया...साधू!!
एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है
बड़ी देर से बैठा रहा कुछ अलग-सी तारिफ़ लिखूं इस सुंदर कविता के लिये...
"सुनो"...आह!
लेकिन "सुंदर" से सुंदर क्या हो सकता है?
शब्दों में व्यापक अर्थ छुपे हुआ करते हैं आपने इस कविता के माध्यम से कुछ बिसरा दिए गए अर्थों को याद दिला दिया है.
सुंदर कविता.
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है
रंजू जी निशब्द ही रहना सही रहता है आपकी रचनाओं मे लाजवाब बधाई
क्या बात है रंजू जी, एक 'सुनो' लफ्ज़ को लेकर आपने तो बिन संवाद के कितने भाव रच डाले । सुंदर ।
ये आपकी लेखनी का ही कमाल है जो आप इस अहसास को भी लिख गई। "सुनो" इस शब्द में जो भाव होता है वाकई एक अलग ही अहसास होता है। बहुत बहुत....सुन्दर रचना।
एक लफ्ज़
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
aapne to kayee arth de diye is "सुनो" shabd ko...khubsoorat rachna
वाह!सुन्दर प्रस्तुति....बहुत ही अच्छी लगी ये रचना.....
रंजना जी मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
आपकी कविता सुना अनसुना जाने क्या क्या याद दिला गयी .आपकी कवित छोड़ मैं तो अपनी ही भावनाओं में बह चली बेहतरीन
आभार रचना दीक्षित
bahut sunder hai
sunder hai
"सुनो "में
जैसे वक्त का साया
ठहर सा जाता है
बिना अर्थ ,बिना संवाद
के भी
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है
कभी लगता है
यह भोर का तारा
कभी सांझ का
गुलाबी आँचल बन
आंखो में बन के
सपना ढल जाता है
चिंतनपरक चित्रण , भोर और सांझ की तरह...हल्का गुलाबी..
yah bhavuk pranaygeet to bas apne pratyek shabdon ke saath taral kar baha le jata hai.........bhavbhari bahut hi sundar kavita...
पूरी भंगिमा सम्मुख साकार हो गयी ! सुन्दर कविता !
us ahsaas ko mehsoos karna aur shabdon mein dhalna ........yahi to aapki lekhni ki khoobi hai.
यह लफ्ज़ न जाने
कितनी बातें कह जाता है....
ati sunder.......... in panktiyon ne dil chhoo liya....
bahut hi sunder kavita hai....
waaah...
’सुनो’... :)
badhaai..
Post a Comment