यह एक पुरानी कविता है ,जिसको पढने वाले पाठक "वसंत जी " ने इस चित्र के साथ सुन्दर रूप में बदल दिया है ,और
आशीष जी ने इसको पोस्ट करने का तरीका बताया :)...बहुत ही अच्छा लगा यह चित्र इस कविता के साथ मुझे तो ..आपको पसंद आया या नहीं ...जरुर बताये .शुक्रिया
35 comments:
वाह क्या बात है एक नया प्रयोग कर दिया। सच मन झूमने लगा है। और उस पर ये प्यारी सी रचना सोने पे सुहागा है।
भीगे मन और तन दोनों
ताल तलैया डुबो जाए
देख के सब तरफ हरियाली
मयूर सा दिल नाचा जाए।
बहुत ही खूबसूरत।
अत्यन्त सुन्दर
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1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा
भीगा मन भीगी मुंडेर
मजा आ गया पढ कर
हमें कविता भी बहुत पसंद आई और फोटो भी
bahut hi umda abhiwyakti ........ek sundar manbhawan rachana ......bahut hi sundar .....aise hi likhate rahe ....badhaaee
कविता और तरीका दोनों मनभावन.
एक तो कविता लाजवाब और ऊपर से कमाल के चित्र पर ...याने सोने में सुहागा...धन्य हुए हम...
नीरज
फोटो और रचना दोनो बढ़िया है .
दिलचस्प !!!काबिले तारीफ प्रयोग है..
झूम-झूम कर बरस रहा बादल मनभावन है।
रचना पढ़कर, रसना बोली आया सावन है।।
सुन्दर रचना, बढ़िया चित्र।
बधाई।
वाह बहुत सुंदर.
रामराम.
मौसमी रचना के लिये बधाई
saavan के bheegte mousam को नया जीवन दे दिया इस रचना ने............... shabdon को नया arth दिया है इस prayog ने............ लाजवाब, बहुत खूबसूरत
सुन्दर रचनात्मक प्रयोग !
ranju ji..
bahut achha likha hai....
keep inspiring n writing....
all the very best..
have sent u a request on facebook...
सुन्दर वादियों में अति सुन्दर रचना. एक समस्या है. हमारा कंप्यूटर आगाह कर रहा है कीकहीं कोई मालवेर है जो हमारे सिस्टम को नुक्सान पहुंचा सकता है.
एक तो आपकी कविता अतिसुंदर ऊपर से बेहतरीन प्राकृतिक दृश्य जैसे सोने पे सुहागा !
सावन तो बरस नहीं रहा .. नकली सावन ही बनाना होगा .. बहुत सुंदर प्रयोग किया है .. कविता तो बहुत अच्छी लगी .. चित्र से पोस्ट और बढिया बन गया है !!
वाह रंजना जी!..सब से पहले-: यह खिले फूलों का जो हेडर लगाया है..वही मन को मोह रहा है..उस के लिए ढेर सारा धन्यवाद..
[पहले सूखे पत्ते और गहरे रंग वाला हेडर मुझे पसंद बहुत नहीं था मगर हिम्मत नहीं थी की आप से यह बात कहूँ.]
इन्हें देख कर ऐसा लग रहा है जैसे ये फूल मुस्करा कर 'हेल्लो ' कह रहे हों.
--और आज.. आप की इस सामायिक मौसमी कविता की प्रस्तुति भी बहुत अनूठी लगी..मौसम के साथ गुनगुनाती हुई यह कविता और चित्र मन को भा गए...
खूबसूरत... तस्वीर भी और रचना भी...
rang bhi
roop bhi
chhanv bhi
dhoop bhi
____________kitne nazaare hain
ek kavita me kitne ishaare hain
waah
waah
waah
abhibhoot kar diya
___rachnaa nayi puraani kya hoti hai ?
samajhdaar log not ki vailue dekhte hain printing date nahin.....ha ha ha ha
वाह एक तो आपकी कविता ऊपर से ये नया स्टाइल... काफ़ी अच्छा है..
Ranjana ji,
kal ek comment likha tha..abhi dikh nahin raha???
dobara likh rahi hun...
aap ke blog ka naya header ..bahut hi sundar hai...
Kavita bahut achchee lagi...aur is ki prastuti bahut hi manmohak hai...
Basant ji ne aap ki kavita ki chitrmay lajawab prastuti ki hai.
kavita aur chitra dono hi manmohak hain.
sundar prayog,sundar kavita....
मौसम ने चुनरी ओढी तो कविता और तस्वीर और भी खिल उठी बहुत सुन्दर बधाई
chitra or kavita dono bahut sundar he..badhai..
अत्युत्तम कविता - सुन्दर चित्र । आभार ।
बहुत ही खूबसूरत!!
pankaj
ये तो लाजमी है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Nice thoughts..cool presentation.. happy blogging :)
Ye chitramay prastuti man ko bhaa gayi.
कविता के साथ जब प्रकृति की छाव हो तो वो हमेशा ख़ूबसूरत लगाती है..........
कविता, चित्र, प्रस्तुति सब सावन की तरह मनभावन !
रंजना जी,
बहुत सुन्दर शब्दों को एक भावों के साथ पिरो कर एक नया अंदाज दिया है, रचना भले ही पहले लिखी गई हो किंतु प्रस्तुति ने मजा ला दिया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
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