Tuesday, July 14, 2009

एक ख्वाब ...

बहुत पहले एक कविता लिखी थी जिसके भाव तो यही थे पर वह गजल के स्वरूप में नहीं थी | इसको गजल के रूप में ढाला है गौतम राजरिशी जी ने ..उन्होंने इस कविता के भावों को गजल का एक सुन्दर रूप दे दिया है | और यह कविता "पुरानी डायरी के पन्नो "से निकल कर नए रंग में ढल गई ,पर उसके भाव वही रहे ....उनका कहना सही है कि" ग़ज़ल में भाव पक्ष की प्रधानता के अलावा बहर की तकनीक को ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। ये गज़ल अब बहरे हज़ज पर बैठ गयी है। इस बहर कई सारी लोकप्रिय ग़ज़लें और फिल्मी गाने हैं। जैसे कि "हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले" या फिर "है अपना दिल तो आवारा न जाने किस पे आयेगा"....। इस बहर पे बैठ जाने से अब आपकी ये ग़ज़ल इन धुनों पे आराम से गायी जा सकती है। येही खास बात है बहर में होने की।" मैंने तो गौतम से गुजारिश की थी कि वह इसको अपना स्वर भी दें .मुझे तो उनके स्वर में इसके गाये जाने का इन्तजार रहेगा :).आप में से कोई इसको स्वर देना चाहे तो ख़ुशी होगी .गौतम जी का तहे दिल से शुक्रिया


जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है, ये दिल क्यों फिर तरसता है

मिली जब भी नजर उनसे धड़कता है हमारा दिल
पुकारे वो उधर हमको, इधर दम क्यों निकलता है

बहे ये इश्क की थोड़ी हवा अपने भी जानिब कुछ
जरा
देखें ये तेवर मौसमों का कब बदलता है

बिखेरे मेरे रास्ते पर कभी तो रौशनी थोड़ी
कि देखें प्यार का दीपक ये कब दुनिया में जलता है

खिले हैं फूल कितने बागबाँ में इश्क के यारों मेरी बगिया में भी ये फूल देखें कब महकता है


लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही कर ठहरता है

ख्यालों
की मेरी दुनिया भरी कितने सवालों से
जो तुम पहलु में आओ, ख्वाब आँखों में उतरता है

रंजू भाटिया

44 comments:

Prem Farukhabadi said...

मिली जब भी नजर उनसे धड़कता है हमारा दिल
पुकारे वो उधर हमको, इधर दम क्यों निकलता है

bahut pyari lagi yah ghazal. badhai!

M VERMA said...

बहे ये इश्क की थोड़ी हवा अपने भी जानिब कुछ
जरा देखें ये तेवर मौसमों का कब बदलता है
बहुत खूब सुन्दर शेर

रंजन said...

बहुत खुबसुरत कायातंरण...

सुन्दर.

ताऊ रामपुरिया said...

वाह बहुत खूबसूरत..बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

समयचक्र said...

जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है, ये दिल क्यों फिर तरसता है
सुन्दर शेर.

ओम आर्य said...

जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है, ये दिल क्यों फिर तरसता है
bahut hi sundar bhaw hai aapake ........waise rachana ke har ek panktiyan daad ke kabil hai ......par ye do panktiyan mere karib lagi.....bahut bahut badhai

समयचक्र said...

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है

Bhaut badhiya bhavapoorn sher

अनिल कान्त said...

पढ़कर मजा आ गया ...बेहतरीन ...बेहतरीन

Udan Tashtari said...

अहा!! गौतम जी ने चार चाँद और लगा दि्ये चाँद पर ही..बहुत खूब!! अब देखें...कौन स्वर देता है तब सुनने का आनन्द आये.

रंजना said...

सच्ची कहूँ.......तारीफ को शब्द कहाँ से लाऊं,इतनी देर सर खुजाकर भी समझ नहीं आया.......

बस वाह वाह और वाह !!!!

डॉ. मनोज मिश्र said...

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है
कितनी खूबसूरत लाइनें हैं.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

ati uttam ranju ji....
keep writing...

डॉ .अनुराग said...

बहे ये इश्क की थोड़ी हवा अपने भी जानिब कुछ
जरा देखें ये तेवर मौसमों का कब बदलता है

ये वाला सबसे बेहतरीन लगा....मेजर साहब तो ग्रेट ही जी...

जितेन्द़ भगत said...

कभी कि‍सी को मुकम्‍मल जहॉं नहीं मि‍लता
आपने यही बात खूबसूरती से पि‍रोया है-

जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है, ये दिल क्यों फिर तरसता है

mehek said...

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है

ख्यालों की मेरी दुनिया भरी कितने सवालों से
जो तुम पहलु में आओ, ख्वाब आँखों में उतरता है
waah behtarin,sahi chand pe char chand lage hai.

MANVINDER BHIMBER said...

बहे ये इश्क की थोड़ी हवा अपने भी जानिब कुछ
जरा देखें ये तेवर मौसमों का कब बदलता है
बहुत खूब सुन्दर शेर

अर्चना तिवारी said...

जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
जरा देखें ये तेवर मौसमों का कब बदलता है

सच कब बदलेगा....सुंदर और सामयिक

सुशील छौक्कर said...

बहुत बहुत सुन्दर ग़ज़ल। आनंद आ गया।
जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है, ये दिल क्यों फिर तरसता है

मिली जब भी नजर उनसे धड़कता है हमारा दिल
पुकारे वो उधर हमको, इधर दम क्यों निकलता है

क्या कहें बस पढते रहने का मन। गौतम जी को भी बधाई।

प्रिया said...

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है

Beautiful lines

Vinay said...

ग़ज़ल तो वाक़ई बहुत ख़ूबसूरत है
----------
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

राज भाटिय़ा said...

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है
वाह वाह वाह वाह कि गल है जी बॊत तेई सोनी कविता लिखी हेंगी.
धन्वाद

रश्मि प्रभा... said...

waah, bahut hi badhiyaa

Arvind Mishra said...

वाह वाह यह हुआ न कुछ जोरदार काम ! सर्जक द्वय को बधाई !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है,
ये दिल क्यों फिर तरसता है"

इस नायाब रचना के लिए,
मुबारकवाद!

seema gupta said...

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता
ख़ूबसूरत

regards

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

बहुत सुंदर.. पढ़ने में इतना मज़ा आया तो सुनने में कितना आएगा.. पॉडकास्ट का इंतजार रहेगा.. आभार

कंचन सिंह चौहान said...

मिली जब भी नजर उनसे धड़कता है हमारा दिल
पुकारे वो उधर हमको, इधर दम क्यों निकलता है

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है


बहुत खूब...! भाव के लिये आपको और स्वरूप के लिये गौतम जी को बधाई..!

Alpana Verma said...

'लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है'

Waah!yah to bahut achcha sher hai...

sabhi sher ek se ek hain!

Beshaq!
Guatam ji ne aap ki kavita ko bahut hi sundar gazal bana diya hai....
kal hi unki awaaz suni hai..unhe hi kaheeye...[is gazal ko awaaz dene ke liye....]

is gazal ko audio mein sunne ka intzaar akrenge.

vandana gupta said...

bahut badhiya gazal

दिगम्बर नासवा said...

जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है, ये दिल क्यों फिर तरसता है

khoobsoorat bandish se saji hai ye gazal........ aapoke bhaav aur Goutam ji ka shilp gaab dhaa raha hai...... aawaaz bhi mil jaati unki to chaar chaand lag jate

शेफाली पाण्डे said...

जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है, ये दिल क्यों फिर तरसता है
bahut sundar....

KK Yadav said...

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है ...Apki abhivyaktiyan bahut khubsurat hain...umda gazal !!

deepasingh said...

बहुत अच्छे मनोभाव प्रदर्शित्

गौतम राजऋषि said...

सब आपका जादू है रंजना जी....शब्द-भाव!

और इसको सुर देने के लिये अर्श भाई को कहे, उनकी आवाज का जादू छा जायेगा।

"अर्श" said...

SABSE PAHALE TO RANJU JI ITANI KHUBSURAT GAZAL KAHNE KE LIYE DIL SE KARODO BADHAAYEE AUR SHUBHKAAMANAAYEN.. MAIN TO SAMAJHTATHA KE AAP SIRF AMRITA PRITAM KI RUH HAI MAGAR AAP TO EK KHUBSURAT GAZALKARA BHI HAI ... SABUT KE TAUR PE YE SHE'R APNE AAP ME EK MUKAMMIL GAZAL HAI ...

मिली जब भी नजर उनसे धड़कता है हमारा दिल
पुकारे वो उधर हमको, इधर दम क्यों निकलता है

BAKHUBI APNA HAK ADAA KIYA HAI AAPNE .... GAZAL KE APNE ALAG HI TEWAR AUR MIZAAZ HAI JO PADHATE HI BANTA HAI...
AUR JAB AAPNE ISLAAH GURU BHAEE GAUTAM SE KARAAI HAI TO FIR KYA KAHANE KHUB SAJAAIEE HAI UNHONE ISE .... BAHOT BAHOT BADHAAYEE AAPKO AUR GURU BHAAEE KO BHI...


ARSH

मुकेश कुमार तिवारी said...

रंजना जी,

यह हुई ना बात!

प्यार के दीपक भी जलेंगे और बगिया में फूल भी महकेंगे, इन्हीं उम्मीदों के साथ इस जुगलबंदी को सलाम।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

शोभना चौरे said...

लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता
sbse sundar sher .
abhar

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

रंजना जी.....
कितनी खूबसूरती से आपने पहले प्यार के रिश्ते में रहे प्रेमी की शिकायत दर्ज की है और फिर विरह के प्रेमी की................ ये तो लगता है जैसे दिलो की आवाज को शब्द दे दिए गए हो...................
दिल को भेद गई आपकी पंक्तियाँ और कही-कहीं तो मै खुद को भी खोजने लगा...................

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

रंजना जी.....
कितनी खूबसूरती से आपने पहले प्यार के रिश्ते में रहे प्रेमी की शिकायत दर्ज की है और फिर विरह के प्रेमी की................ ये तो लगता है जैसे दिलो की आवाज को शब्द दे दिए गए हो...................
दिल को भेद गई आपकी पंक्तियाँ और कही-कहीं तो मै खुद को भी खोजने लगा...................

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

उम्दा कोशिश है.

मस्तानों का महक़मा said...

ना ये कोशिश लगी, ना ये उम्दा लिखने की चाह लगी..
लगा जैसे हाथों मे कलम था और मन के भाव पन्नो पर बिखर गयें। आप सोई हुई थी और कुछ था जो, जाग कर अपने आपको बयां कर रहा था।

सिर्फ़ कलम, पन्ने और ?...

Dr. Amarjeet Kaunke said...

bahut piara likhti hain aap....mubark......amarjeet kaunke

www.amarjeetkaunke.blogspot.com

Mohinder56 said...

एक और एक 43 हो गये...कविता का सुन्दर गजल रूपान्तरण

Prakash Jain said...

bahut hi sundar gazal hai...
har ek bhav ati sundar hai...

bada aanand aaya aur bahut sikhne milta hai aap bado se...
dhanyavad...