मीना कुमारी के डायरी के पन्ने कभी नही भूल पाती हूँ ..एक बार फ़िर से आज उन्ही के शब्दों में उनको याद करने का दिल हो आया ...
मीनाकुमारी ने जीते जी अपनी डायरी के बिखरे पन्ने प्रसिद्ध लेखक गीतकार गुलजार जी को सौंप दिए थे । सिर्फ़ इसी आशा से कि सारी फिल्मी दुनिया में वही एक ऐसा शख्स है ,जिसने मन में प्यार और लेखन के प्रति आदर भाव थे ।मीना जी को यह पूरा विश्वास था कि गुलजार ही सिर्फ़ ऐसे इन्सान है जो उनके लिखे से बेहद प्यार करते हैं ...उनके लिखे को समझते हैं सो वही उनकी डायरी के सही हकदार हैं जो उनके जाने के बाद भी उनके लिखे को जिंदा रखेंगे और उनका विश्वास झूठा नही निकला उन्ही की डायरी से लिखे कुछ पन्ने यहाँ समेटने की कोशिश कर रही हूँ ...कुछ यह बिखरे हुए से हैं .पर पढ़ कर लगा कि वह ख़ुद से कितनी बातें करती थी ..न जाने क्या क्या उनके दिलो दिमाग में चलता रहता था ।
४ -११ -६४
सच मैं भी कितनी पागल हूँ ,सुबह -सुबह मोटर में बैठ गई और फ़िर कहीं चल भी दी लेकिन तब इस पहाड़ के बस नीचे तक गई थी ऊपर, तीन मील तक तब तो पैदल चलना पड़ता था ।अब सड़क बनी है कच्ची तो है पर मोटर जा सकती है प्रतापगढ़--भवानी का मन्दिरअफजल और बन्दे शाह का मकबरा फ़िर ५०० सीढियाँ ... यह बर्था कहती थी सुबह चलना चाहिए...चलना चाहिए पर इसके लिए दुबले भी तो होना चाहिए इसलिए इतना बहुत सा चला आज ।
फ़िर वही नहाई नहाई सी सुबह ...वही बादल दूर दूर तक घूमती फिरती वादी भी उसी शक्ल में घूमते फिरते थे
ठहरे हुए से कितनी चिडियां देखी कितने कितने सारे फूल, पत्ते चुने पत्थर भी
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रात को नींद ठीक से नही आई वही जो होता है जहाँ जगता रहा इन्तजार करता रहा
लेकिन सच यूं जगाना अच्छा है जबरदस्ती ख़ुद को बेहवास कर देना
यहाँ तो जरुरी नही यहाँ तो खामोशी है चैन है ,सुबह है दोपहर है शाम है
आह .....!!!!
कल सुबह उठ नही सकी थी तो बड़ी शर्म आरही थी सच दरवाज़े के बाहर वह सारी कुदरत वह सारी खूबसूरती खामोशी अकेलापन ..सबको मैं दरवाज़े से बहार कर के ख़ुद जबरदस्ती सोयी रही । क्यों ? क्यों किया ऐसा मैंने
तो रात को जगाना बहुत अच्छा लगता है सर्दी बहुत थी नही तो वह दिन को उठा कर बहार ले जाती कई बार दरवाज़े तक जा कर लौट आई सुबह के करीब आँख लगी इसलिए सुबह जल्दी नही उठ पायी ।
५ -११- ६४
रात भी हवाओं की आंधी दरवाज़े खिड़कियाँ सब पार कर जान चाहती थी शायद इस लिए कल भी मैं जाग गई और सुबह वही शोर हैं फ़िर से । सच में बिल्कुल दिल नही कर रहा है कि यहाँ से जाऊं । यही दिन अगर बम्बई में गुजरते तो बहुत भारी होते और यहाँ हलांकि ज्यादा वक्त होटल में रहे हैं फ़िर भी सच इतनी जल्दी वक्त गुजर गया है कई आज आ गया ।इतनी जल्दी प्यारे से दिन सच जैसे याद ही नही रहा की कल क्या होगा ?
जनवरी -१ -१९६९
रात बारह बजे और गिरजे के मजवर ने आईना घुमा दिया ।कितनी अजीब रस्म है यह फूल और सुखी हुई पत्तियों को चुन चुन कर एक टीकों खाका बनाया
सदियों में हर नुक्ते को
रंगीन बनाना होगा ,
हर खवाब को संगीत बनाना होगा
यह अजम है या कसम मालूम नही
जनवरी -२ -१९६९
आज कुछ नही लिखा सोचा था अब डायरी नही लिखूंगी लेकिन सहेली से इतनी देर नाराज़ भी नही रहा जा सकता न ।आह ....!!!आहिस्ता आहिस्ता सब कह डालो ..आज धीरे धीरे कभी तो इस से जी भरेगा आज नही तो कल....
अप्रैल - २१ -१९६९
अल्लाह मेरा बदन मुझसे ले ले और मेरी रूह उस तक पहुँचा दे चौबीस घंटे हो गए हैं जगाते जागते ....अब कल की तारिख में क्या लिखूं शोर है भीड़ है सब तरफ़ और दर्द --उफ़ यह दर्द
मई- २ -१९६९
तारीखों ने बदलना छोड़ दिया है अब क्या कहूँ अब ?
मई -३ -१९६९
कब सुबह हुई कब शाम कब रात सबका रंग एक जैसा हो गया है तारीखे क्यों बनायी हैं लोगो ने ?
मई -४ -१९६९
यादों के नुकीले पत्थर
लहू लुहान यह मेरे पांव
हवा है जैसे उसकी साँसे
सुलग रही धूप और छावं
उनकी डायरी के यह बिखरे पन्ने जैसे उनकी दास्तान ख़ुद ही बयान कर रहे हैं और कह रहे हैं
अचानक आ गई हो वक्त को मौत जैसे
मुझे ज़िंदगी से हमेशा झूठ ही क्यों मिला ?
क्या मैं किसी सच के काबिल नही थी !""
वह जब तक जिंदा रही धड़कते दिल की तरह जिंदा रही और जब गुजरी तो ऐसा लगा की मानो वक्त को भी मौत आ गई हो उनकी मौत के बाद जैसे दर्द भी अनाथ हो गया क्यूंकि उस को अपनाने वाली मीना जी कहीं नही थी ..
26 comments:
भावुक !
अभी यूनुस जी के ब्लोग से आ रहा हूँ मीना जी की दर्द भरी आवाज सुनकर। और इधर पढ रहा हूँ उनके दर्द के समय को। कभी कभी सोचता हूँ कैसे सहती होगी वो इस दर्द को।
आज कुछ नही लिखा सोचा था अब डायरी नही लिखूंगी लेकिन सहेली से इतनी देर नाराज़ भी नही रहा जा सकता न ।
.......
मर्मस्पर्शी पोस्ट के लिए बधाई।
अचानक आ गई हो वक्त को मौत जैसे
मुझे ज़िंदगी से हमेशा झूठ ही क्यों मिला ?
क्या मैं किसी सच के काबिल नही थी !
ज़िन्दगी की सच्चाइयां वाकई कड़वी होती हैं... मीना कुमारी जी की जयंती पर इतनी भावनात्मक पोस्ट पढ़वाने का आभार.. हैपी ब्लॉगिंग
मुझे ज़िंदगी से हमेशा झूठ ही क्यों मिला ?
क्या मैं किसी सच के काबिल नही थी !""
इन मर्मस्पर्शी लाइनों नें सोचने पर विवश कर दिया.
मैं भी यही कहूँगा.. भावुक !
अचानक आ गई हो वक्त को मौत जैसे
मुझे ज़िंदगी से हमेशा झूठ ही क्यों मिला ?
क्या मैं किसी सच के काबिल नही थी !
बहुत ही भावुकता से लिखी गई यह पंक्तियां दिल को छूती हुई बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आभार्
गहरा भावनात्मक स्तर छू जाती है मीना कुमारी की लेखनी । प्रस्तुति का आभार ।
उनका लिखा हुआ पढ़कर अचानक दिल जैसे भर सा आया...दर्द, खामोशी, तन्हाई...जैसे सबका साथ दिया...और वो भी तो अंत तक साथ देते रहे उनका....
फ़िर वही नहाई नहाई सी सुबह ...वही बादल दूर दूर तक घूमती फिरती वादी भी उसी शक्ल में घूमते फिरते थे!
wah wah...kya kehne....
अत्यंत सुन्दर
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चाँद, बादल और शाम
मीनाकुमारी कि डायरी के पन्नों से गुजरते याद आया....'गम ही दुश्मन है मेरा,गम ही को दिल ढूंढता है,एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है '
उन्हें तो याद कर के ही मन भीग सा जाता है आपने तो उनका पूरा दर्द ही अपनी पोस्ट मे समेट दिया और अपमी लेखक धर्मिता का परिचय उनकी ज्यँति पर याद कर के दिया है आभार्
बहुत बहुत भावुक!
डायरी के पन्नों से जितना भी अंश उद्धृत किया है, बेहतरीन हैं. उनकी एक ग़ज़ल "जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली" बेहद दर्द भरी है. इन पन्नों से मिलती जुलती.
अपनी इसी डिस्टर्ब जिंदगी ओर जज्बाती मिजाज़ के कारण ...उन्होंने जिंदगी में कई उतार चदाव देखे ..इस्तेमाल हुई ...आखिरकार शराब के कारण लीवर ......मेरे अपने में गुलज़ार ने उन्हें एक अलग किरदार में भी दिखा दिया .....
मीना कुमारी की यादों के पन्ने भी पढ़ते हुवे किसी और दुनिया में पहुंचा देते हैं........... कितना दर्द, रूहानियत है उनके लिखे मैं...... और गुलज़ार साहब ने उसको और रूहानी तरीके से पेश किया है .......... अपने भी बहूत ही लाजवाब रंग में उतारा है उनके पन्नों को
gam mai jeene ka bhi alag maja hai....bahut khoob ranju
मीना कुमारी डायरी की ये सतरें बहुमूल्य हैं -साझा अकरने के लिए बधायी !
meena kumari wah..hamesha suna tha inke baare mein, inki lekhni ke baare mein..dhanywaad inse parichay kerwane ke liye..
Meenakumari was a romantic soul. She was a true artist lived in dreams, so the reality always felt like it cheated on her. khoobsurat bhawuk najmen
दिखावों की दुनिया में सच्चा लगाव ढूंढते हर शख़्स की यही नियति है।
उनका दर्द इस अंतर्विरोध को बखूबी उभारता है, और एक नज़ीर छोड़ जाता है।
बहुत ही भावुक कर देने वाली पोस्ट
dard ka doosra naam agar hai to wo hai ............meenakumari.........dard se na jaane kaisa rishta tha unka jab bhi ji chahe chala aata tha unke pass.
aisa lagta hai ki kisi ne dil khol kar rakh diya ho... too sensitive !!
आपके हज़ारो चाहने वालो मे एक हौं भी है
लकिन दीवानो की कतर मे गुम से गये है
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