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Monday, March 16, 2009
कहा -अनकहा
खिले पुष्प सी
गंध की तरह ..
शंख ध्वनि की
गूंज सी ..
पहुँच रही हूँ
मैं ...
तुम तक
अपने ही...
कुछ कहते हुए
लफ्जों में
या.....
अन्तराल की
बहती खामोशी में ....!
******************
चलो इसी पल
सिर्फ़ इसी क्षण
हम उतार दे
हर मुखौटे
और हर
बीते हुए
समय को
और
वर्तमान बन जाए
इसी पल
सिर्फ़ इसी पल .....
रंजना (रंजू ) भाटिया (छोटी कविताएं)
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43 comments:
वाह वाह जी बहुत गहरी बाते कह दी आपने अपनी मिनी रचनाओं के द्वारा
सच है खामोशी भी बहुत कुछ कह देती है
मुखौटे उतारने के बाद शायद वर्तमान को भूतकाल् में दफ़न करने की जरूरत पड जाये
:)
वर्तमान बन जाए
इसी पल
सिर्फ़ इसी पल
बहुत सुन्दर रचना । बधाई
really very nice...u r a very good writer... if like to do so ... visit my blog ...u will like it... i like creative writing very much...
खामोशी के बहाने मन के भावों का सुन्दर प्रगटीकरण।
वाह क्या बात कही आपने......सिमित शब्दों में बहुत ही गहरी बात....
उल्लास के साथ वर्तमान में जीना ही भविष्य को सुखमय बनाता है...
बहुत बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.
दोनों कवितायेँ आपकी विशिष्ठ शैली में कमाल की हैं...माँ सरस्वती आप पर यूँ ही मेहरबान रहें...
नीरज
वर्तमान बन जाए
इसी पल
सिर्फ़ इसी पल
बहुत सुन्दर रचना
maine arz kiya
shabdon ke jangal me koi lipat jata hai ek anjani mehak ki tarah, kuch jaani kuch anjani, khamosh chandani raat me mehak rahi raat ki raani ki tarah, jo vartamaan hai vo kal ban jayega itihaas lekin mehkegi raat ki raani isee tarah
khwaab se sachchai tak ka safar hai in panktiyo me.. bahut khoob
और
वर्तमान बन जाए
इसी पल
सिर्फ़ इसी पल .....
--बहुत सुन्दर रचना!! बधाई हो जी!!
हम उतार दे
हर मुखोटे
और हर
बीते हुए
समय को
और
वर्तमान बन जाए
इसी पल
सिर्फ़ इसी पल .....
bahut bahut sunder hai.
मौन कितना बोलता है
कितना कुछ लिखा हुआ है
दो लिखी पंक्तियों के
बीच की खाली जगह में
इस चुप्पी को समझ लेना
और पढ लेना
अनलिखी इबारत
खाली जगह वाली
बस की नहीं बात
हर किसी के
जौहर की गति
जौहर जाने
कहा था मीरा ने इसीलिए
याद हो आई
वही मीरा,
यह सब पढते हुए
जो लिख कर रख दिया,
बिना लिखी पंक्तियों के
बीचों बीच
लोग पढ रहे हैं
लिखी लकीरों की इबारत
और जी रहे हैं
इस मुगालते को
कि
वे पढ रहे हैं
जो नहीं लिखा गया है
पढने के लिए।
दूसरी कविता सच के बेहद करीब है...पर एक सच ये भी की हम मुखोटा नहीं उतारते ...हमें आदत सी हो गयी है...
रंजना जी नमस्कार,
जहाँ तक मुझे याद है मैं पहली दफा ही आपके ब्लॉग पे टिपण्णी कर रहा हूँ... शुभानाल्लाह क्या कविता कहती है आप... दूसरी कविता तो उफ्फ्फ्फ़... मगर पहली कविता भी कहर बरपा रही है ये कहते हुए के आप कितनी मोहकता से इसे सजाया है कल्पना की अति सुन्दर कथ्यों से .... आभार आपका...
अर्श
मौन में ही पल रहा, संसार है,
मौन से ही चल रहा, घर-बार है।
मौन का हर-पल बड़ा ही कीमती,
मौन ही तो जिन्दगी और प्यार है।
बहुत सुंदर रचना है, लेकिन तीर सी भी है उन्हें जिन्हों ने पहने हैं मुखौटे।
सच आप बहुत गहरी बातें लिखने लगी है। और जितना गहरा होता है उतना ही दिल को छूता है।
चलो इसी पल
सिर्फ़ इसी क्षण
हम उतार दे
हर मुखौटे
पर उतार नही पाते ।
दूसरी वाली बहुत भायी....
आपकी इस विशेष शैली का नायाब तरीका मनभावन है मैम
पहली कविता का मर्म भीतर तक उतरता हुआ
कुछ कहते हुए
लफ्जों में
या.....
अन्तराल की
बहती खामोशी में
man ke bhavon ka bahut hi sundar prastutikaran kiya hai
दोनों ही कवितायेँ सुन्दर रहस्यवाद से भरी लगीं. आभार.
और
वर्तमान बन जाए
इसी पल
सिर्फ़ इसी पल .....
बहुत ही सुंदर भाव, अति सुंदर कविता
धन्यवाद
इंसान के लिए मुखौटे उतारना ही तो सबसे कठिन काम है. ऐसा कोई शख्स है जिसे हमारे बारे में सब-कुछ पता हो? सब-कुछ.
bahut gahri bhawnaaon ko shabd rup diya hai....bahut badhiyaa
दोनों ही कवितायें छोटी पर सार गर्भित हैं!अच्छी लगी....
इतनी सुंदर रचना ... कैसे लिख लेती हैं आप ?
खिले पुष्प सी
गंध की तरह ..
शंख ध्वनि की
गूंज सी ..
पहुँच रही हूँ
मैं ...
तुम तक
... बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति !!!!!
वर्तमान बन जाए
इसी पल
सिर्फ़ इसी पल
कम शब्दों में गहरी बात। वाह। कहते हैं कि-
जो बीता कल, क्या होगा कल?
है इस कारण तू व्यर्थ विकल।
आज अगर तू सफल बना ले,
आज सफल तो जन्म सफल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
भावों की गहनता या गहन भाव ?
मौन की अपनी एक भाषा होती है, जिसे समझना हर किसी के बस की बात नहीं.
इसी लिए मौन ब्रत का अपने देश में कभी बहुत मान था, जैसे आज झूठ, लोलुपता सहज हो गई वैसे ही वाचलता मौन की उपेक्षा कर रही है...............
सुन्दर भावाव्यक्ति.
चन्द्र मोहन गुप्त
कम शब्द...गहरी बातें
डूब कर नहा लिए भाव में.. ये शैली मेरी बहुत प्रिय है..
सहज, सरल और सुन्दर भाव पूर्ण आभिव्यक्ति!
bahut hi gahri abhivyakti............har shabd ek khamosh pukar ko bayan karta hua.
doosari kavita mujhe bhi adhik pasand aai...kshano ko jeene me mai bhi vishwaas rakhti hun
चलो इसी पल
सिर्फ़ इसी क्षण
हम उतार दे
हर मुखौटे
पर उतार नही पाते ।
बहुत सुन्दर।
इस कही अनकही में खामोशी जुबां बन जाती है.
दोनों कवितायों में अभिव्यक्ति का अंदाज़ पसंद आया.
बहुत खुबसूरत!बधाई!
मोहक...जितनी छोटी उतनी ही प्यारी कवितायें है. एक पल का वर्त्तमान बिन मुखौटे के जीने की ख्वाहिश...दिल के बेहद करीब लगी.
ranjana ji , main kya kahun .. shabd nahi hai ..
aap aajkal itna accha likhti hai ,ki main aata hoon , aapke blog par , padhta hoon .. sochta hoon ,kuhc likhu, phir himaat nahi hoti..ki shabd kahan se chun kar laaun...
ab bhi tareef ke liye kuch bacha hai kya.....
mera salaam kabul karen apni lekhani ke liye ..
vijay
बहुत सुंदर !
बहुत-२ बधाई...
दिल को छूती हुई रचना.....बहूत गहरी, संवेदनशील रचना दिल के करीब........सच कहा खामोशी बहूत कुछ कह जाती है
हम उतार दे
हर मुखोटे
और हर
बीते हुए
समय को
Vaah
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है। आपकी अभिव्यक्ति लाजबाव है। भुत-भुत आभार..
बहुत सुंदर लिखा आपने ...
बहुत खुबसूरत पल ! और साथ में कुछ अपने बारे में:
मैं मनमोजी हूँ ... मेरे व्यवहार और आदतों से सभी लोग आकर्षित होते हैं साथ ही इन्हें पसंद भी करते हैं ...मैं व्यवाहरिक रूप से रचनात्मक प्रवति वाला भी हूँ. अब तो आप समझ ही गयी होंगी की मुझे कौन सा आइस क्रीम पसंद है :-)
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