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Thursday, December 04, 2008
हम गुनाहगार है तुम्हारे नन्हे मोशे ...
हम गुनाहगार है तुम्हारे
नन्हे मोशे ...
तुम कितने विश्वास के साथ
मेहमान बन कर आए थे
भारत की जमीं पर ...
नन्ही किलकारी ने
अभी देश ,भाषा के भेद को
कहाँ समझा था.....
अभी तो नन्हे मोशे
तुम जानते थे सिर्फ़
माँ के आँचल में छिपना
पिता का असीमित दुलार
और इन्हीं में सिमटा था
तुम्हारा नन्हा संसार ....
नही जाना था अभी तो तुमने
ठीक से बोलना और चलना
डगमग क़दमों से सिर्फ़ ......
अभी दुनिया की झलक को
सिर्फ़ खेल और खिलोनों में देखा था ..
अभी तो तुम समझ भी न पाए होगे
बन्दूक से निकलती गोलियों का मतलब
न ही तुम्हे याद रहेगा
अपनी माँ के चेहरे का वह सहमापन
पिता की हर हालत में तुम्हे बचा लेने की कोशिश
और न ही याद रहेगा ,उनका तुम्हे बचाते हुए
चुपचाप ,कभी न उठने के लिए सो जाना
शायद तुमने रो रो कर अपनी माँ को उठाया होगा
दी होगी पिता को आवाज़ भी कुछ खाने के लिए
पर सिर्फ़ शून्य हाथ आया होगा
कैसे तुमने
उन बदूक के साए में गुजारे होंगे
वह पल अकेले...
कैसे ख़ुद को उस
नफरत की आग से बचाया होगा
तुम्हारा मासूम चेहरा..
तुम्हारे बहते आंसू..
तुम्हारी वो तोतली बोली..
माँ -बाबा को पुकारने की आवाज़
उन वहशी दरिंदो को ना ही सुनाई दी
और न ही सहमा पायी
पर .....
हम कभी नही भूलेंगे कि
"अतिथि देवो भव"
कहे जानी वाली धरती पर
तुमने अपने जीवन के सबसे
अनमोल तोहफे और
भविष्य के आने वाले
सब अनमोल पल खो दिए
हम गुनाहगार है तुम्हारे
नन्हे मोशे ...
रंजू भाटिया [रंजना ]
३.१२.०८
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23 comments:
बहुत ही भावभीनीं व बढिया रचना है।बहुत सुन्दर!!
तुम्हारा मासूम चेहरा..
तुम्हारे बहते आंसू..
तुम्हारी वो तोतली बोली..
माँ -बाबा को पुकारने की आवाज़
उन वहशी दरिंदो को ना ही सुनाई दी
और न ही सहमा पायी
शर्म आती है ये सोच कर कि जब-जब मोशे अपने माता-पिता को याद करेगा... तब-तब वो भारत को एक ऐसे देश के रुप में याद करेगा जिसने उसे लावारिस बना दिया। कोई अच्छी याद मोशे के साथ है या नहीं लेकिन इतना तय है कि मोशे को भारत से वो ग़म मिला है जिसे वो ताउम्र नासूर बनकर झेलेगा।
भावविहिल करती रचना..
काश इसे वो आतंकवादी दंरिदे पढ और समझ पाते.
मोशे का दुख आप महसूस कर रही हैं, जी रही हैं। वाकई, बेहद दुखद हालात हैं। कहना चाहिए कि अब हालात दुखद की हद पार कर चुके हैं। कविता अच्छी लगी। बातें रखने का सलिका अच्छा लगा। साथ ही आखिर की लाइन खटकी।
...
और
भविष्य के आने वाले
सब अनमोल पल खो दिए
आखिर की ये पंक्तयां कहना उचित नहीं है। मोशे के सारे अनमोल पल खत्म नहीं हों हम यही कामना करें।
कैसी यादें लेकर जा रहे हो तुम मोशे,
जब भी याद करोगे अपने माता पिता को,
तुम्हे याद आयेगा ये दे्श मोशे,
तुम्हे लगेगा कैसी लाचार, बेबस थे लोग वहाँ के,
बचा न सके तुम्हारी खुशियाँ..
हम लाचार थे,
बेबस थे,
देख रहे थे,
अपनों को मिटता,
समझ रहे थे,
अतिथियों का दर्द..
लेकिन ये प्रण हम करते है मोशे,
जो हुआ तुम्हारे साथ
अब न हो्गा किसी और के साथ..
बस और नहीं..
अब और नहीं..
किसी भी जंग को जीतने के लिये पुरानी पीढी को तैयार होना होगा की वो नयी पीढी के साथ बैठ कर बात करे । हर विचार को सुनना होगा और तैयार करना होगा नयी पीढी को की वो सैनिक बने डरपोक नागरिक ना बने . ताकत और अकल दोनों की जरुँत होती हैं जंग मे . ताकत नवयुवक और नवयुवती मे हैं अगर आप चाहते हैं जंग जीतना तो उस ताकत को जागने वाले बने . जिस दिन हम मे से कोई भी नयी पीढी को अपने साथ लेकर आगे बढेगा जंग ही ख़तम हो जायेगी .अभी तो हर समय हमारा समाज पीढियों और लिंग विभाजन और धर्मं की लड़ाईयां ही लड़ रहा हैं . बच्चो को बड़ा बनाईये उनके हाथ मे "आक्रोश " दीजिये और आप उस आक्रोश को सही दिशा दीजिये . जिन्दगी की हर जंग आप और हम जीतेगे.
@ अनुराग जी मेरी भावना उस बच्चे के उस भविष्य से जुड़ी है जिस को एक बच्चा सिर्फ़ अपने माता पिता से ही ले सकता है ..और उसने अपने माँ पिता (जो हर हर बच्चे के लिए चाहे वह किसी भी उम्र का हो अनमोल होते हैं .).वह अनमोल तोहफे यहाँ इस धरती पर खोये हैं ....उसका आने वाला भविष्य सुखद हो और वह जीवन की हर ऊंचाई को छुए पर यही दुआ है हमारी ....
बहुत ही भावुक कर गई यह रचना। मैं जब भी सोचता हूँ मोशे के बारें में तो कांप सा जाता हूँ यह सोचकर कि अपनी माँ को ना पाकर कैसे रहता होगा। क्योंकि हमारी बेटी तो बहुत रोती थी अपनी माँ को ना पाकर।
पता नही यह दुनिया कहाँ जा रही है।
sach us massom mehman ke hum sab guhegar hai jisne janamdin kedin apne maababa khoye,dua hai wo hamesha khush rahe,bas e na ho ki bharat ke prati nanhe man mein nafrat bhar jaye ke uske maa baba yaha shahid huye.
ना जाने कितने मोशे की जिंदगी कहानी बन गई, इस कांड के बाद।
क्या कहा जाय... गुनहगार to हैं ही हम ! भगवान् उसे सारी खुशियाँ दें.
ओह बहुत ही भाव प्रवण और यादगार रचना ! तारीफ़ करनी होगी आपकी दृष्टि की जो उस मासूम तक जा पहुँची !
सिर्फ़ ये शुक्र है की मोशे के दादा दादी जो उसके जन्मदिन के लिए उस दिन वहाँ आए थे ,कमांडो ने उन्हे बचा लिया वो भी वहां के रहने वाले एक इंसान की मदद से जो अनपढ़ है ओर गरीब भी .....मोशे अब अपने वतन इस्राइल अपने दादा दादी के पास है....पोस्टमार्टम करने वाले डॉ ने बताया था की कुछ विदेशियों को उन्होंने मारने से पहले काफ़ी यातना दी थी.....
यह शेतान का काम है.इस मोशे फ़रिश्ते की ही बद्दुआ लगे इन शेतानो को.
बहुत ही कोमल, मार्मिक, भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. मासूमियत के साथ आक्रोश का शानदार तालमेल...
काश, इस गुनाह का बोझ हमारे सिर पर न होता।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
बस मेरी हिचकियाँ बंध गयीं.......
पर .....
हम कभी नही भूलेंगे कि
"अतिथि देवो भव"
jhakjor dene wali panktiya......ise ik baar darindo ko bhi padha do...
अति मार्मिक,शर्मनाक........और क्या कहा जा सकता है.सार्थक अभिव्यक्ति है आपकी.
अत्यंत मार्मिक रचना...काश मोशे की रुलाई बेगुनाहों की जान लेनेवाले आतंकी भी सुन पाते।
ईश्वर मोशे को दु:ख सहने की शक्ति दे।
हम गुनाहगार है तुम्हारे
नन्हे मोशे ...
दिल को छू लेने वाली रचना!
आपकी संवेदना को नमन
भावनाओं की सही और कोमल अभिव्यक्ती । मोशे और हर उस बच्चे का दर्द जिसने अपने माँ बाप को इन हादसों में खोया एक पीडा के साथ दृढ निश्चय को भी जगाता है ।
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