सितारों के बीच में
तन्हा चाँद
और भी उदास कर जाता है
तब शिद्दत से होता है
एहसास ..
कि
विरह का यह रंग
सिर्फ़ मेरे लिए नही है ....
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सही ग़लत की उलझन में
बीता जीवन का मधुर पल,
टूटा न जाने कब कैसे
कसमों ,जन्मो का वह नाता
साथ है तो ..दोनों तरफ़
अब सिर्फ़ तन्हाई
जवाब दे जिंदगी
तू इतनी बेदर्द क्यूँ है ?..
20 comments:
जवाब दे जिंदगी... तू इतनी बेदर्द क्यों है? वाजिब सवाल है !
"some one said to me once that "kee virah ka kya rang hotta hai muje nahe ptta, lakin ye rang heen bhee nahee hotta"
" youir poem touched me"
Regards
virah me hi tap kar man swarnim hota hai.......bahut hi sundar aur sajeeli kavita rahi ye bhi
पहली वाली ज्यादा पसंद आयी .....
Ranju...
har baar ki tarha..is baar bhi
fbrha ke sheds khoobsurat h ai..
badhaae
bahut khoobsurat dono hi...pahli kuch jyada pasand aayi...
badhiya hai, bahut hi touching hai.
प्राणेर व्यथा ......
दोनों कवितायें,छोटी शक्ल में बहुत कुछ कह गए.......
बहुत सुन्दर भाव हैं।
विरह का रंग बहुत शानदार तरीके से उभर कर आया है आपकी रचना में...
नीरज
विरह का रंग बहुत शानदार तरीके से उभर कर आया है आपकी रचना में...
नीरज
बहुत खूबसूरत खयाल!!
kya baat hai. bhut sundar rachana. virah ke do rang. bhut badhiya.
बड़ी खूबसूरती से विरह के रंग दिखाए है शब्दों के माध्यम से।
कुछ प्रश्न हमेशा अनुत्तरित ही रह जाते हैं। भावभरी कविता के लिए बधाई।
दोनों भावपूर्ण कविताएं बहुत सुंदर हैं। जहां प्रेम है, वहां विरह तो होगा ही..
और, यह विरह का रंग तो कभी न कभी सभी के जीवन में दिखता है..
तन्हा चांद उदास तो करता है, लेकिन तन्हाई में साथी बनकर सुकून भी देता है..
बहुत ही उम्दा। अलग अलग रंग लिए हुए।
क्या बात है!आनन्द आ गया.वाह! बहुत सुन्दर.
देखन में छोटन लगैं, पर घाव करैं गंभीर.
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