Friday, August 08, 2008

फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!


कल कमरे की खुली खिड़की से
चाँद मुस्कराता नज़र आया
खुल गई भूली बिसरी
यादो की पिटारी...
हवा ने जब गालों को सहलाया,
उतरा नयनो में फ़िर कोई लम्हा
जीवन के उदास तपते पल को
मिली जैसे तरुवर की छाया..

कांटे बने फूल फ़िर राह के ..
दिल फ़िर से क्यों भरमाया..
हुई यह पदचाप फ़िर किसकी..
दिल के आँगन में गुलमोहर खिल आया..

कहा दिल ने कुछ तड़प कर
जो चाहा था ,वही तो पाया
वक्त ने कहा मुस्करा कर...
कहाँ परिणाम तुम्हे समझ में आया?
तब तो रखा बंद मन का हर झरोंखा
आज फ़िर क्यों गीत प्रीत का गुनगुनाया
भरे नैनों की बदरी बोली छलक कर
खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

21 comments:

रश्मि प्रभा... said...

कहा दिल ने कुछ तड़प कर
जो चाहा था ,वही तो पाया
वक्त ने कहा मुस्करा कर...
कहाँ परिणाम तुम्हे समझ में आया?
...... इन पंक्तियों में गहरा रहस्य है,
बहुत सी बातें एक जगह सिमट आई हैं.........
बहुत अच्छी

मीनाक्षी said...

बहुत प्यारी कविता... प्रीत की छाया तो चाहिए... क्योकि उससे प्रीत मे सुलगे मन को ठंडक मिलती है...

रंजन गोरखपुरी said...

भरे नैनों की बदरी बोली छलक कर
खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

विरह पर ये नज़रिया बेहद अनोखा लगा!! दिल को जैसे तसल्ली मिल गई!
बहुत सुंदर खयाल है!!

Shiv said...

आज फ़िर क्यों गीत प्रीत का गुनगुनाया
भरे नैनों की बदरी बोली छलक कर
खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

बहुत सुंदर कविता है.

art said...

बहुत ही सुन्दर शव्दो से आप ने अपने मन के भाव कविता मे पिरोये हे

vipinkizindagi said...

बहुत ......अच्छी........ सुंदर

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर ,धन्यवाद

बालकिशन said...

"कांटे बने फूल फ़िर राह के ..
दिल फ़िर से क्यों भरमाया..
हुई यह पदचाप फ़िर किसकी..
दिल के आँगन में गुलमोहर खिल आया.."

वाह.
सुंदर!
अति सुंदर!

रंजना said...

bahut hi sundar.....man ko choo gayi.aabhaar.

पारुल "पुखराज" said...

दिल के आँगन में गुलमोहर खिल आया..yun hi sadaa gulmohar khiltey rahen...sundar bhaav, di

Manvinder said...

ranjana ....
kya baat hai...
kaha pahuch gae ho....
कहा दिल ने कुछ तड़प कर
जो चाहा था ,वही तो पाया
वक्त ने कहा मुस्करा कर...
कहाँ परिणाम तुम्हे समझ में आया?
bahut sunder

सुशील छौक्कर said...

भरे नैनों की बदरी बोली छलक कर
खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

अति सुन्दर। कभी कभी शब्द नही मिलते कुछ कहने को।

शोभा said...

कांटे बने फूल फ़िर राह के ..
दिल फ़िर से क्यों भरमाया..
हुई यह पदचाप फ़िर किसकी..
दिल के आँगन में गुलमोहर खिल आया
वाह क्या बात है। मस्त लिखा है।

अमिताभ मीत said...

बहुत सुंदर.

admin said...

खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

ये वह सवाल है जिसका जवाब हर एक को पता है, पर मासूमियत तो देखिए कि हर बार माशूक बडी मासूमियत से यही सवाल पूछता है।

श्रद्धा जैन said...

खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया

Ranjna ji bhaut ghari kavita masoom se sawal aur preet ka bhaut gahra lekhan

Smart Indian said...

फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

आदि से अंत तक - बहुत सुंदर!

नीरज गोस्वामी said...

वाह...शब्द संयोजन की कला कोई आप से सीखे...दिल के भाव एक दम सामने आ जाते हैं...बेहद खूबसूरत रचना.
नीरज

डॉ .अनुराग said...

भरे नैनों की बदरी बोली छलक कर
खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

vazib savaal hai mohtarma.....

योगेन्द्र मौदगिल said...

वास्तव में बहुत प्यारी अभिव्यक्ति
बधाई आपको

Abhishek Ojha said...

भरे नैनों की बदरी बोली छलक कर
खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

सही मासूम सवाल है !