एक वक्त वह भी था जब सारे भारत वासियों ने अपने सारे भेदभाव मिटा कर भूलकर एक जुट हो कर अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था |ऐसा करने के लिए उन्होंने अहिंसा मार्ग को अपनाया था और सारी दुनिया ने यह देखा था | हम लोगों ने तो सिर्फ़ सुना ही है कैसे उस समय आजादी के मतवाले थे |क्या स्त्री, क्या पुरूष और क्या बच्चे सब अपनी संस्कृति और मानवता को बचाने में लगे थे |हम सब को अपने नैतिक मूल्य और अपने बनाए आहिंसा के नियमों पर नाज़ था| उस वक्त सिर्फ़ एक ही दुश्मन था हमारा अंग्रेजी शासन |
और आज हमारी हालत क्या हो चुकी है ,? हम आज अपना संतुलन क्यूँ खो बैठे हैं ? धर्म ,जातीवाद को लेकर सब तरफ़ तांडव हो रहा है | इस वक्त में याद आते हैं मदर टेरेसा जैसे नाम जिन्होंने कभी हिंदू .मुस्लिम ,सिख इसाई में कोई भेद भाव नही किया | बाहर दूर देश में जन्मी यह सिस्टर ने लोगो के दुःख दर्द को इस तरह से अपनाया कि वह सबकी मदर बन गयीं | उनके जुड़ी के घटना पढ़ी थी वह इस प्रकार है..
एक रात को किसी ने दरवाजे पर दस्तक दे कर कहा कि पास में ही एक आठ बच्चों वाले हिंदू परिवार ने कुछ दिनों से बिल्कुल खाना नही खाया है |मदर ने यह सुना तो थाली में थोड़ा सा चावल ले कर उस घर कि तरफ़ चल पड़ी |जैसे ही उन्होंने घर जा कर वहां औरत को वह चावल दिए उसने उन चावलों को आधा कर के बाहर गयीं और कुछ देर बाद वापिस आ गई |मदर ने पूछा कि क्या हुआ ? कहाँ गई थी ? तो उस औरत ने जवाब दिया कि वह पड़ोस के घर में गई थी वहां भी मुस्लिम परिवार ने बहुत दिन से कुछ नही खाया है |मदर यह सुन कर स्तब्ध रह गई और कुछ क्षण तक कुछ न बोली | मदर का मनाना था कि उस स्त्री ने थाली में उस थोड़े से चावल को अपने पड़ोसी के साथ बाँट कर वास्तव में ईश्वर के असीम प्रेम को दूसरों के साथ बांटा | मदर का उस परिवार के लिए जो प्रेम का प्रगटीकरण था वह भी ईश्वर के प्रेम का प्रतीक था और उस औरत का भी प्रेम यही था | यह थी हमारी प्रेम भावना जो न जाने अब बम के धमाकों में कहाँ गुम हो कर रह गई है |
अगर हम ईश्वर से प्रेम करते हैं विश्वास करते हैं तो उस प्रेम को जरुर हम दूसरो के साथ बाँटेंगे और जब सभी लोग उस ईश्वर के प्रेम को सदा एक दूसरे के साथ बाँटेंगे तो एक प्रेम की कड़ी मानवीय और इश्वरिये प्रेम की कड़ी अपने आप जुड़ती चली जायेगी और फ़िर सब तरफ़ सिर्फ़ शान्ति होगी ..पर सवाल तो वहीँ है अडिग खड़ा हुआ कि कुछ लोगों के स्वार्थ कि खातिर आख़िर कितने निर्दोष लोग यूँ इन बम के धमाकों में मरेंगे और कितने लोग यूँ अपनी घिनोनी हरकत से देश को यूँ दहलाते रहेंगे ??
क्या हुआ है मेरे वतन को
न जाने किस आग में यह
हर पल सुलगता ही रहता है
जब भी लगता है कि ..
सब तरफ़ है अमन के बादल
वो बादल कोई चुरा लेता है
बढ़ते हुए क़दमों को
फ़िर से ...
कोई क्यों थाम लेता है
जी में आता है कि ...
फ़िर से वही एक जुट हो के
लड़ने की मशाल जला दूँ
अमन और शान्ति का पाठ
फ़िर से हर जहन में
चिपका दूँ ......
25 comments:
सही बात है. बैसे आज भी लोग ईश्वर को बाँट रहे हैं. फर्क सिर्फ़ इतना है कि आज वह ईश्वर को अपना कापीराईट बनाकर टुकड़ों में बाँट रहे हैं,
वर्तमान हालत में आपका संदेश बहुत महत्वपूर्ण है।
दीपक भारतदीप
आपके जज़्बात बेशक काबिल-ए-तारीफ़ हैं! आज हर भारतवासी में ऎसे ही जज़्बे की ज़रूरत है!
खलल पड़ी है इबादत में फिर धमाकों से,
खुदा को और शर्मसार कर रहा होगा...
vakai me bilkul sahi likha hai. ranjan ji thik kha rhe hai. bhut badhiya likha hai. jari rhe.
sahi kaha aapne.lekin is baar humara muqabalaa angrezon se nahi,haiwaaon se hai.we kya samjhenge insaaniyat ko.ahinsaa ki baat bhi ki aapne,to ek aandolan mere chhatisgarh me chal raha hai,SalvaJudum,anpadh aadiwaasiyon ka ye naxalvirodhi aandolan hai.unpar naxaliyon ne raham nahi khayaa abodh bachki galaa ret kar hatya kar di gayi.unse kya umeed ki ja sakti hai.khair unka kam we kare aur humara hum ,jaise aap soch rahi uska aadha bhi aadhe log soch le to desh swarg se kam nahi hoga.aapke wichharon ka naman karta hun
बहुत अच्छा लिखा है !
एक दिन अवश्य आएगा जब यह विध्वंसक ग्रुप अपने आप नष्ट होंगे !
जी में आता है कि ...
फ़िर से वही एक जुट हो के
लड़ने की मशाल जला दूँ
अमन और शान्ति का पाठ
फ़िर से हर जहन में
चिपका दूँ ......
"wonderful description with human thoughts"
आपका जज्बा काबिलेतारीफ है। लेकिन मैं अनिल की इस बात से सहमत हूं कि अब हमारा मुकाबला अंग्रेजों से नहीं हैवानों से है। आस्तीन में पल रहे सांपों से है, गद्दारों से है। वो तो चले गए और कह गए ...तुम्हारे हवाले वतन साथियों। क्या इसी दशा के लिए उन्होंने कहा था। नहीं, कतई नहीं।
वैसे आप का ब्लॉग देखा और उसके चांद को भी देखा। अच्छा है...।
aman aur shaanti....
bahut zarurat hai
sashakt shabdon me kaha.......
har bhawnaaon me ek marm hai
बहुत अच्छा लिखा है आपने... भगवान् करे आपका संदेश लोग ग्रहण करें... यही आशा है.
क्या कहूँ?
इतना प्रेरक प्रसंग पढ़ कर आंसू आ गए है.
सच हम लोग प्रेम के ढाई अक्षर को भूलते जा रहे है और अपनी जिंदगी को नर्क बनाते जा रहे हैं.
जागरूक करदेनेवाली बेहद प्रेरणादाई पोस्ट.
यह मशाल हम सबको जलानी होगी जब ही कोई बात बनेगी।
Samajh mein hi nahi aata ki Inka Ilaaj kya hai.. Kab rukega yeh sab. Har dhamake ke baad hum tutege nahi, muhtod jawaab denge aur aisi bahut si batein... kuch hua? kuch bhi nahi.... har baar kuch antaraal pe naye dhamke aur log purane ko bhool kar sochte hai ki ispe kuch hoga.. lekin kuch nahi
hanth kaap rahe hai gusse ke karan ..samajh nahi aaa raha ki kya likh raha hu
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Jaane Tu Ya Jaane Na Rocks
ज़रा थम थम के रफ़्ता रफ़्ता चल ज़िंदगी कि यह समा या फ़िज़ा बदल ना जाए।
अभी तो आई है मेरे दर पर ख़ुशी कही यह तेरी तेज़ रफ़्तार से डर ना जाए!!
वाह-वाह क्या खूब कहा?
सर्व उत्तम।
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विनीत कुमार गुप्ता
क्या हुआ है मेरे वतन को
न जाने किस आग में यह
हर पल सुलगता ही रहता है
जब भी लगता है कि ..
सब तरफ़ है अमन के बादल
वो बादल कोई चुरा लेता है
बढ़ते हुए क़दमों को
फ़िर से ...
कोई क्यों थाम लेता है
सच बात है कि अब हम अपना धैर्य भी खो रहे है ओर एक दूसरे के धर्म के लिए असहिष्णु भी.....आपकी तरह हमें भी उम्मीद है कि शायद हालत सुधरेंगे .....
क्या बात हे , बहुत बडी बात कह दी आप ने,जब तक हम मे इन्सानियत नही आयेगी तब तक यही सब होता रहेगा,जब हमे दुसरे की फ़िक्र होगी तभी हम सुखी भी हो जाये गे.
धन्यवाद
रंजू दी,
इतनी अच्छी लगी आपकी बातें कि क्या कहूँ.ऐसे समय में जब मन इतना आहत है.कभी क्रोध से,कभी घृणा से और कभी करुना से भर जाता है,और कुछ भी नही सूझता कि क्या किया जा सकता है,आपकी बातें करनीय का स्मरण करती हैं.बहुत ही अच्छा लिखा लिखा है.ईश्वर सबको सद्बुद्धि दें और लोग आपकी बातों को ध्यान में रख पायें ,यही कामना है.
सही है ....
एक अच्छा संदेश देती उम्दा रचना, बधाई.
बहुत अच्छा लिखा है। केवल एक बात है कि जो भगवान को नहीं मानते वे ऐसा काम भी नहीं करते। कुछ लोग भगवान के नाम पर ही यह सब कर रहे हैं। भगवान को मानें या न मानें, हमें अपने विवेक और मानवता को नहीं खोना चाहिए।
घुघूती बासूती
अच्छी रचना है। आपका संदेश लोग ग्रहण करें... यही आशा है!
bahut marmik lagi ye post, kaash haqeekat me bhi aise hi milkar rehte log...
वह!!!!!!! क्या खूब कहा है, जैसे मन की बात कह दी हो इसी पर मैं अपनी "श्रद्धा" की कुछ कवितायेँ आपको सादर प्रस्तुत हैं
श्रद्धा
( १ )
प्रिय हो तुम, प्रियवर हो तुम
ईष्ट - देव सद्रश्य हो
औरों हेतु भले ही न हो
पर, मेरे लिए अवश्य हो
करना अलग हमें, तो सब चांहें
पर मैं तो बस इतना ही जानूं
डूबोगे श्रद्धा- सागर में जितना
सानिध्य उतना ही सद्रश्य हो
श्रद्धा
(९)
मेरे देवालय , तेरे मस्जिद
उनके चर्च , गुरद्वारे भी यहाँ
अपनों में ये श्रद्धा भी कैसी
रहते नत-मस्तक सभी यहाँ
कर,विस्तृत कर, स्व-श्रद्धा और
भेद-भाव से तब लेगा मुंह मोड़
भुला सभी धर्मों का उपहास
जोड़े मानव से मानव यही यहाँ
श्रद्धा
(३१)
हे राम ! तुम्हारी रामायण को
कब किसने समझा- जाना है
दिए उदाहरण स्वार्थ हेतु ही
समझा इसको ताना- बाना है
करें कल्पना राम - राज्य की
पर हरकत विपरीत मिले हरदम
आदर्श रचोगे हो श्रद्धा में रत
तभी राम - राज्य को आना है
चंद्र मोहन गुप्त
ईश्वर के नाम पर इन्सानियत का खून कब तक होता रहेगा? रंजना जी एक जागरूक पोस्ट के लिये धन्वाद.मदर का सन्स्मरण पढ के अच्छा लगा.
aapka kahana sahi hai...
jab main chhoti thi to hamari music teacher ne hame 15 august ke liye ek geet sikhaya tha, jiska matlab aaj samajh aata hai
man swatantra tha swatantra tan na tab raha
tan swatantra par na man swatantra ab raha...
aaj desh mein hindu-musalmaan milte hain.. hum bhartiya kahin kho gaye hain
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