रंजना जी ,
इस अनोखे अनुभव को आपके पास भेज रही हूं।आफिस में सुबह की मीटिंग में मुझे असाइनमेंट मिला ´जिस लड़की ने सूसाइड किया है, उसके घर का माहौल कवर करना है।`
और मैं निकल पड़ी टीपी नगर की नई बस्ती, ज्वाला नगर की ओर। पूछते पूछते किरण , जिनसे सूसाइड किया था, का घर मिल गया। गेट के बाहर पुलिस की दो गािड़यां खड़ी थीं। मुझे ताज्जुब हुआ , किरण के घर का बाहरी गेट बंद था। तभी गेट खुला और अंदर से पुलिस निकली, उसके पीछे पीछे किरण की डेड बॉडी उठाये उसके पिता भी निकले। अचानक किरण का एक हाथ नीचे की ओर लहर गया, जिस पर लिखा था, मैं नौकरी नहीं मिलने के कारण आत्महत्या कर रही हूं। कुछ भी समझ नहीं आया कि इस दुखी परिवार से कैसे पूछूं, क्या जानूं, क्या कवर करूं । मन में आया कि उनका दुख कम करने के लिये कुछ कहूं लेकिन वो भी न कर सकी, माहौल की वजह से।
किरण की बॉडी ले कर पुलिस चली गई। घर में किरण की मां, उसकी दो बहनें और एक छोटा भाई रह गया। सभी लोग गमजदा थे। समझ नहीं पा रही थी कि मैं कहां से बात 'शुरू 'करूं, पांच मिनट यूं ही गुजर गये, मैंने होले से किरण की बहन प्रीति से पूछा, आखिर हुआ क्या, क्यों बीटेक जैसी डिग्री हासिल करने के बाद भी किरण को आत्महत्या करनी पड़ी।
प्रीति ने बताया, किरण बड़ी सेंसेटिव थी। कल रात को ही वह दिल्ली से लौटी थी, कंपनी देख कर आयी थी जिसने उसे कैंपस से सिलेक्ट किया था। उसने घर आ कर सभी को बताया कि वह दो कमरे में चलने वाली कंपनी में नौकरी नहीं करेगी लेकिन वह भीतर से आहत थी जैसे कोई बात उसे भीतर ही भीतर खाये जा रही हो। अनमने मन से किरण ने खाना खाया और अपने कमरे में चली गई और पीसी पर बैठ गई। आखिरी बार उसने जॉब साइट सर्फ की रात को पौने बारह बजे। यह बात कम्पयूटर की मेमोरी से पता चली।
सुबह जब घर के लोग उठे तो किरण रैलिंग से झूल कर आत्महत्या कर चुकी थी। उसे इस हालत में देख कर सभी रोने पीटने लगे।
मैने प्रीति से कुछ और टटोलने का प्रयास किया तो वह काफी चौकाने वाला था,
किरण दस दिन पहले छत पर गई तो उसका पैर जले हुए कागजों पर पड़ गया। उसी दिन से उसे बुरे बुरे सपने आने लगे। अकसर सपनों में उसे जलते हुए मुर्दे दिखायी देते जो उसे भी आग की ओर खीचने का प्रयास करते। इस का जिक्र उसने अपनी बुआ से किया। उसने दो दिन पहले ही सभी के सामने उसने यह भी कहा , अब सपनों वाले मुर्दे उसे नहीं छोड़ेंगे। अंदर से वह काफी अपसेट भी थी। बात बात पर चिढ़ जाती थी। बेहद डिप्रेशन महसूस कर रही थी।
डाक्टर कहते हैं कि सपनों से सच का कोई वास्ता नहीं होता है। सपने क्यों आते हैं, यह लंबी बहस का मुद्दा हो सकता है।
किरण का सपना था कि वह अच्छी नौकरी करके अपने परिवार के सपने पूरे करे लेकिन उसके सपनों पर कुछ और सपने हावी हो गये। बस कुछ अजीबो गरीब सपने उसे जग से छीन कर ले मनविंदर ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर के एडिटर को जब दी तब उनके सहयोगी ने भी कहा कि , मैडम! ये क्या लिख दिया आज, क्या आज की सदी में ऐसी बातें लिखना क्या उचित है। पर क्या सच था ...?? तो आप वह हिस्सा निकाल दो अगर नहीं उचित लग रहा है। मनविंदर ने कहा .....सुबह अखबार देखा तो पेज थ्री पर थी वह खबर, सपनों ने ले ली किरण की जान...
अब आप बताये कि क्या सपनो ने उसकी जान ली या उस वक्त उस पर बीत रहे हालात ने ....या कोई न कोई कारण बनता है मौत के सफर पर जाने का ...? क्या यह सच होता है ..? क्या सच में कोई संकेत कर जाता है इन बुरे सपनों से ..हम अकसर इन्हे नज़रंदाज़ क्यों कर देते हैं ? बहुत से सवाल है दिल में . ....पर अब यह मानती हूँ की कोई शक्ति हमारे अन्दर की ही हमे सूचना जरुर देती है पर शायद हम उस को पहचान नही पाते ..और लोगो को बताने से भी झिझक जाते हैं कि वह हमारे बारे में क्या सोचेंगे ....जैसे मैं किसी को कह नही पायी कभी भी ..
14 comments:
sapne sach hote hai kuch nahi bhi,magar sapno ki intimation ko hum bhi mante hai,jaise ki kiran ke saath hua ya ranjuji aapke kuch anubhav sa,hamare saath bhi hota,kabhi kisi insaan vishesh keliye kuch intution mil jate hai,aur kuch dino bad wo wakiya sach mein ho jata hai,hamare kuch samajh nahi aata,magar andaruni shakti vaas karti hai ye sach hai.hum ne ab tak teen logon ki maute dekhi haisapne mein aur wo sab sach huyi 6 mah ke andar,isko bhi kya kahun,maut ka sapna kisi se keh b hi sakti thi.
कई सपने मुझे भी रात भर सोने नहीं देते हैं.. मगर मुझे कभी जागते में परेशान नहीं किया है..
हां मगर कुछ बुरा होने वाला होता है तो उससे पहले मन में कुछ खटकने लगता है.. ना जाने क्यों..
मैंने कई लेख पढ़े हैं सपनो के बारे में लेकिन सच तो ये है की आज भी सपने एक रहस्य ही हैं जिसे आज भी समझने के प्रयास जरी हैं...मुझे तो ऐसा कभी अनुभव नहीं हुआ लेकिन कई लोगो से सुना है की उन्हें आभास हो जाता है की कुछ बुरा होने वाला है...कितना सच है,कितना भ्रम, पता नहीं!किरण के केस में ये भी हो सकता है की पहली बार सपना आया हो तो उसने छत पर जलते हुए कागजों से जोड़कर उसे देखा हो और ये बात उसके मन में गहरे बैठ गयी हो इसलिए बार बार वही सपना देख रही हो....और डिप्रेशन मैं चली गयी हो!खैर ये सिर्फ एक कयास है,असलियत कुछ और भी हो सकती है!
bhut sundar or sahi likha hai. jari rhe.
waise jyada mahenat jagti aankhose dekhe sapno ko sach karne mein hoti hai .... nind mein aate sapne aksar hamare ankahi ichaye, khwahishe ya fir dar ko pratibimbit karti hai ...aur kai baar sapna khud hi dara deta hai hame....jaise ki aapke kisse mein kiran ko dara gaya...waise sapno ke arthghatan mein padha tha ki kisi bhi vyakti ko apni maut ka sapna kabhi nahi aata.....accident ya aisa kuch aa sakta hai jise warning kahe sakte hai....
रंजु जी,किसी अन्होनी का अहसास कई बार पहले से हो जाता हे,जेसे मेरे साथ हुआ, लेकिन सपने किसी की जान नही ले सकते, क्यो की सपनो को ज्यादा सोच मत दो, रात गई बात गई,अगर हम सपनो को दिन मे भी सोचते रहेगे तो अपनी जान के खुद दुशमन होगे,हां मेरे साथ कई बार हुआ जेसे एक बार मे जब पहली बार मे पेरिस गया तो मुझे सपने मे कुछ सडके ओर घर दिखे, वहां पहुच कर बिलकुल वेसा ही माहोल दिखाई दिया,ओर मेने वीवी से कहा अगले मोड पर यह होगा ओर सच मे वही था,वीवी मुझे आच्म्भे से देखने लगी, लेकिन यह सब एक वहम हे, क्योकि जब भी हम कही घुमने जाते हे तो अपने आस पास का चित्र दिमाग मे बिठा लेते हे,ओर रात को बेसे ही सपने भी आते हे,ओर कभी कभी वेसा ही आगे मिल जाता हे, बाकी सारा दिन जो हम सोचते हे वही सपने मे भी आता हे, शायाद किरन भी ऎसा ही कुछ सोचती होगी...या फ़िर कुछ पिछले जन्म का चक्कर हो सकता हे इस बारे तो कोई मनोविग्यानिक ही बता पाये गा ???
आत्महत्या का सपनो से कोई सीधा सम्बन्ध नही है ,ये व्यक्ति की मनोदशा ओर उसके हालात के अलावा उसके व्यक्तित्व पर भी डिपेंड करती है .......डिस्कवरी चैनल पर एक पुरी ६ एपिसोड की सीरीज़ आई थी .वैसे चिकत्सा विज्ञानं के अनुसार अधिक सपने से देखने से आपकी याददाश्त ओर आपके कार्य प्रणाली पर असर पड़ता है क्यूंकि सपने वाली नींद को REM स्लीप बोलते है जिसमे मनुष्य चीन के नींद नही ले पाता.... दुर्भाग्य से मुझे भी सपनो की बीमारी है......
रंजू जी
कहते हैं सपने गहरी नींद की निशानी होती है...कभी कोई सपना नींद से जगा देता है और कभी लगता है की नींद टूट क्यूँ गयी इतना सुंदर सपना चल रहा था...सपने भविष्य का आभास देते हैं या नहीं ये बहस का विषय हो सकता है लेकिन सपने हमारी मानसिक दशा का जरूर आभास देते हैं
कंचन-कंचन हो गयी, इस सपने के देह
जब से इसने छू लिया, तेरा पारस नेह
नीरज
रंजू जी,
क्या कहूँ बस इतना समझ पाया कि अभी तक कि कभी कभी कुछ अहसास होता है। किसी घटना का उसके होने से पहले। कई घटनाए घट चुकी मेरे साथ। एक स्कूल का सपना तो मुझे अक्सर आता है। बस उसकी घटनाए बदलती रहती है। स्कूल वही रहता है। इस बार वह जब आया तो हर बार की तरह सोचने लगा कि ये फिर आ गया। पाँच सात मिनट सोचा। फिर एकदम एक लाईन जहन मे आई कि जिंदगी भी तो एक स्कूल हैं। फिर सोचो कि यार इस पर तो एक तुकंबदी भी की जा सकती है। बस सपने को छोड तुंकबदी के बारे मे सोचने लगा। सोचते सोचते कब सो गया पता नही। फिर सुबह बैठा तुंकबदी लिखने तो शब्द निकलते चले गये और वो तुकंबदी पूरी हो गई और पोस्ट कर दी। और बाद में आपका कमेट देखकर स्कूल को पाठशाला मे बदल दिया। और आपको पता ही कि अमृता जी ने तो बहुत लिखा इन सपनो और इन अहसासो के बारें।
सपनों की कहानी तो रोचक होती है और ये टिपण्णी मैंने ज्ञानजी की एक पोस्ट पर लिखा था.: सपनो के सच होने पर कई कहानिया हैं... बेन्जीन के अरोमैटिक रिंग स्ट्रक्चर की खोज केकुले ने किया जो की उनके एक सपने पर आधारित था (उन्होंने देखा किकी एक साँप अपनी पूँछ को मुंह में डाल रहा है) इसी प्रकार सिलाई मशीन के अविष्कार करता ने भी सपने में देखा था की कोई भाला लेकर उन्हें मार रहा है और भाले की नोक में आंखें बनी हुई थी इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने सुई के के नोक की तरफ़ छेद बना दिया...
पर ये घटना सुनकर बहुत दुःख हुआ !
रंजू जी
सपने सच होते हैं यह बात तो सत्य है। और आप जो कह रही हैं वह बहुत कम लोगों के साथ होता है। पूर्वाभास कहते हैं इसे। पर सब कुछ जानकर भी हम कुछ नहीं कर या बदल पाते यही विडम्बना है।
दरअसल आज के बच्चों में में मन माफिक ना होने और असफलता को सहज स्वीकारने की शक्ति कम होती जा रही है। मझे ये केस उसी तरह का लगता है।
कई बार कुछ घटनाएँ ऍसी होती हैं जो लगता है पहले वास्तविक या सपनें में देखी सी लगती हैं। इसका जिक्र मनोविज्ञान कि किताब में हमेशा होता है और इसे deja vu का एक अलग टर्म भी दिया गया है। विकिपीडिया के अनुसार
Déjà vu (already seen"; also called paramnesia, from Greek παρα para, "near" + μνήμη mnēmē, "memory") is the experience of feeling sure that one has witnessed or experienced a new situation previously (an individual feels as though an event has already happened or has repeated itself). . The experience of déjà vu is usually accompanied by a compelling sense of familiarity, and also a sense of "eeriness", "strangeness", or "weirdness". The "previous" experience is most frequently attributed to a dream, although in some cases there is a firm sense that the experience "genuinely happened" in the past
sapne to bahot aate hain...aur bahot alag alag kism ke aate hain...zyadatar yaad bhi reh jaate hain...saanp ke sapne aksar aate hain aur tab mataji kehti hain ki shankar bhagvan ki puja karni chahiye...par in sab mein vishwas nahin...to kuchh karta nahin...baki acche sapne bhi aate hi hain...
aur jaagti aankho ke sapno ko to lafzo mein daalne ki koshish kar leta hoon kayin baar...
सपनों से हमारा भी गहरा रिश्ता है लेकिन कभी इस बारे में ज़िक्र नहीं किया...सपनों की रहस्यमयी दुनिया में हम कई बार जा चुके हैं और असल ज़िन्दगी में उनका अनुभव ले चुके हैं.
बेचैन करने वाले सपने देखने वाले को मेडिकल हैल्प तो चाहिए साथ ही साथ परिवार का भी साथ ज़रूरी है.
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