Monday, June 30, 2008

शायद आज भी ..[अल्पना ..रंजू ]

शायद आज भी तू दिल के आस पास है
हर पल बस तेरा ही ख्याल है ,अहसास है


नादान दिल है करता है क्या क्या ख्वाइशें
जानती हूँ जर्रे को आसमान की आस है
शायद आज भी ......
मृगतृष्णा सी बसी है मन में तृष्णा कोई
बुझती नही यह कैसी सहरा की प्यास है

शायद आज भी

आंखो में था मेरा कोई अनकहा सा बादल
दिल की ज़मीन का भीगा सा लिबास है

शायद आज भी ..
कैसे कैसे ख्वाब तू दे गया मुझे
न टूटने वाला यह भ्रम ख़ास है !!

शायद आज भी तू दिल के आस पास है
हर पल बस तेरा ही ख्याल है ,अहसास है


मेरी लिखी इस रचना को गाया है अल्पना वर्मा जी ..मुझे उनको आवाज़ में हमेशा ही एक कशिश सी लगी है ..उस से बढ कर लगा है उनका जनून जो गाने के लिए है ..यह सुने और बताये कैसा लिखा गया और कैसा गाया गया है ...ताकि अल्पना और मैं आगे के लिए सुधार कर सके .शुक्रिया :)

19 comments:

कुश said...

वाह जी वाह शब्द आपके और बोल अल्पना जी के.. कमाल की जुगलबंदी है ये तो..

Alpana Verma said...

arrey Wah! aapne post bhi tayyar kar li itni jaldi!!!
aap ki rachna bhi to itni sweet hai---
''dil ki zameen ka bheega libaas hai!!!

bahut khuub likha hai.

Abhishek Ojha said...

रचना और गायन का सुंदर मेल है. ऐसी और प्रस्तुति हो तो ज्यादा अच्छा रहेगा.

समय चक्र said...

khoobasoorat khyaal hai badhaai.

Anonymous said...

aapka gana me jor se baja kar sun rahi thi to aaspas ke logo ne socha ki ye gana me ga rhi hu.
bhut sundar gaya hai aapne. jari rhe.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

badhia rachna

सुशील छौक्कर said...

वाह जी वाह क्या जुगलबंदी है सुन्दर लिखा, प्यारा गया।

आलोक साहिल said...

कमाल की जुगलबंदी है जी,मस्त
जितने खुबसूरत अल्फाज उतना ही सुरीला स्वर.
आलोक सिंह "साहिल"

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

रँजू जी एक टीकट मेँ दो शो !! वाह जी वाह !!
अल्पना जी की आवाज़ सचमेँ बडी मीठी है और आपका गीत सज उठा -
When will you sing one of my poems alpana jee ?
Do please sing it soon
( mujhe up load karna aata nahee :-(
Ranju jee, shayad aap hee help kijiyega. )
दोनोँ को स स्नेह बधाई !! ;)
..ऐसी ही पोस्टेँ लिखती रहीये ..
- लावण्या

डॉ .अनुराग said...

वाह दो खास लोग एक साथ जुड़ जाये तो ...कहना ही क्या .......जिस अहसास में डूबकर आपने लिखा उतनी ही शिद्दत से अल्पना जी ने गाया है ....दो कलाकार लोगो को मेरा सलाम.....

Anonymous said...

bahut hi khubsurat sangam,geet bhi aawaz bhi,awesome

dpkraj said...

आपकी कविता से मेरे मन में कुछ काव्यात्मक सृजन का भाव पैदा होता ही है और उसे आपके ब्लाग पर व्यक्त करने का लोभ संवरण नहीं कर पाता। आपकी कविता बहुत बढि़या है।
दीपक भारतदीप
...................................
कभी तृष्णा तो कभी वितृष्णा
मन चला जाता है वहीं इंसान जाता
जब सिमटता है दायरों में ख्याल
अपनों पर ही होता है मन निहाल
इतनी बड़ी दुनिया के होने बोध नहीं रह जाता
किसी नये की तरह नजर नहीं जाती
पुरानों के आसपास घूमते ही
छोटी कैद में ही रह जाता

अपने पास आते लोगों में
प्यार पाने के ख्वाब देखता
वक्त और काम निकलते ही
सब छोड़ जाते हैं
उम्मीदों का चिराग ऐसे ही बुझ जाता

कई बार जुड़कर फिर टूटकर
अपने अरमानों को यूं हमने बिखरते देखा
चलते है रास्ते पर
मिल जाता है जो
उसे सलाम कहे जाते
बन पड़ता है तो काम करे जाते
अपनी उम्मीदों का चिराग
अपने ही आसरे जलाते हैं जब से
तब से जिंदगी में रौशनी देखी है
बांट लेते हैं उसे भी
कोई अंधेरे से भटकते अगर पास आ जाता

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav said...

रंजना संग अल्पना
क्या गजब की कल्पना
हम तो खो गये दोस्तो
ये गीत हमने जब सुना

मधुर से सब बोल देखो
मधु से मधुर आवाज भी
क्या कशिश आवाज की
फीका पडा सब साज भी

आगाज ऐसा है तो फिर
अंजाम कैसा आयेगा
सोच में हैरान 'राघव'
सुनता ही रह जायेगा

मजा आ गया... अब पैसे मत माँगना जी
स्टाफ है.. :)

रीयली लवली ... ऑल द बेस्ट ..

रश्मि प्रभा... said...

bahut khubsurat dhang se kaha......

आंखो में था मेरा कोई अनकहा सा बादल
दिल की ज़मीन का भीगा सा लिबास है
bahut sundar.

रश्मि प्रभा... said...

alpana ji ki aawaaz ne to jaadu kar diyaa........

Udan Tashtari said...

बढ़िया जुगल बंदी है. आपकी रचना जितनी उम्दा है, अल्पना जी की आवाज भी उतनी ही मधुर है.गीत की धुन में गुंजाईश है, पर शुरुवात के हिसाब से बहुत बढ़िया प्रयास है. जारी रखिये.

Anonymous said...

janju,
kya sangam hai aap dono ka.
aawaj esi ki dil ko chhu jae. bol esee ki dil mai uterte hi chlai jaye.
dil ki zameen ka bheega libaas hai......
behad khoobsurat
Manvinder

Mumukshh Ki Rachanain said...

आदरणीय रंजू जी
मैं आपके अहसास से भरे सुंदर से गीत का तहे दिल से स्वागत करता हूँ.और यह जानकर की इस गीत को अल्पना जी ने अपना मधुर स्वर देकर इसमे जो चार चाँद लगाया है , उससे लगा की कला वास्तव में टीम स्प्रिट से ही सजती और संवारती है . अपने इसी अहसास को मै निम्न गीत के मध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ :

आंखो में था मेरा कोई अनकहा सा बादल
दिल की ज़मीन का भीगा सा लिबास है
कल्पना सी अल्पना की जादुई आवाज है
रंजू का गीत भी तो पूर्ण एक साज है.
शायद आज भी....
कला मिलकर ही चली, पली - बढ़ी
वरना अकेले को अकेलेपन का अहसास है
स्वप्न बुने तो बहुत जा सकते हैं पर
उन्हें सरंजाम दे , ऐसी टीम की तलाश है
शायद आज भी

चन्द्र मोहन गुप्त

Mohinder56 said...

सुन्दर लिखा है आपने और अल्पना जी की आवाज भी कशिश भरी है...

बधाई