Wednesday, July 02, 2008

गूगल बाबा मदद करो

जिंदगी तेज गोल पहिये सी घूमती चलती चली जाती है और हम सब यूँ ही उसके साथ साथ चलते जाते हैं ...बहुत से किरदार जो कभी हमारे साथ हर पल रहते थे वह वक्त के साए में कहीं गुम हो जाते हैं पर उनकी याद दिल में ताजा रहती है ...ख़ास कर बचपन की सहेलियां शरारते और कालेज के दिन ...अक्सर यादो के झरोखों में से झांकने लगते हैं ....और ऐसे मे कोई पुरानी सहेली तलाश कर ले तो .जिंदगी का रंग खुशनुमा हो जाता है ..
कुछ यूँ ही हुआ मेरे साथ भी ...पिछले सन्डे अचानक भाई के फ़ोन से एक आवाज़ कुछ जानी पहचानी सुनाई दी ॥ मेरे हेल्लो कहते ही कहा ओह्ह तो तू जिंदा है अभी ...मैं थोड़ा सा हैरान हो गई की यह कौन है भाई ...फ़िर कई यादो की परते एक साथ खुली कि इस तरह तो सिर्फ़ चंद लोग हैं मेरी लिस्ट में जो इतने आराम और प्यार भरे अपनेपन से दुआ देते हैं ।:) कि जिंदा है तो कहाँ है ? और नही है तो कौन से कब्रिस्तान में है ख़बर दे ...हम भी आते हैं वहां ॥
हाय ओ रब्भा !!!यह तो कविता है ॥पर तू मेरे भाई के फ़ोन पर क्या कर रही है और वहां कैसे पहुँच गई ...और कहते हैं न की दिल से दिल को राह होती है ..उसने १८ साल मुझे तलाश किया और एक दिन अचानक उस को उसकी एक पुरानी डायरी मिल गई जिस में मेरे पापा के घर का पता लिखा था ..क्यूंकि यह परमानेंट पता था तो उसने एक चांस लिया कि जा कर देख लेती हूँ ..और वहां से मुझे फ़ोन किया .. बस फ़िर तो जो बातो का सिलसिला शुरू हुआ वह इस सन्डे मुलाकात होने पर भी खतम होने को नही आ रहा था ..क्या क्या न याद किया हमने ।कॉलेज में हम ५ लड़कियों का गैंग था मैं ,कविता आराधना ,रजनी और शोभना ....जो पढ़ाई तभी करता था जब पेपर सिर पर डांस करते थे ...बाकी समय शरारते और केंटीन ......हमारी शरारते बहुत मासूम हुआ करती थी ..."'न ...न कुछ ग़लत न सोचिये ""बहुत शरीफ थे हम सब ।वैसे भी वूमेन कालेज था और उस पर हम सबको सफ़ेद यूनीफोर्म पहननी होती थी ..बंक तभी होता था जब यूनीफोर्म में नही आना होता था नही तो पहचान लिए जाते कि यह वूमेन कॉलेज की लड़कियां है । अधिकतर शरारते सिर्फ़ कालेज के भीतर ही होती थी बहुत कम मौका मिलता था बंक करने का ..कविता लिखने का शौक तब भी था ।एक बार जब आराधना का हैप्पी वाला जन्मदिन आया तो मेरे खुराफ़ती दिमाग में एक शरारत सूझी ..मैंने उस वक्त तक जितनी रोमांटिक कविताओं की तुकबंदी की थी जैसे कि...


जब भी देखते हैं तुझे तेरी आँखों की मय में डूब से जाते हैं
आराधना हम तो बस तेरी आराधना में गुम हो जाते हैं ..

और यह ..

जब भी दिल ने घबरा कर तलाश सहारा कभी कभी
हमने घबरा कर तुमहो को पुकारा कभी कभी

अब यह न समझना कि हम दीवाने हैं तेरे
हमने तुझको भी अपना दीवाना बनाया है कभी कभी

आदि आदि अभी यही याद आ रही है ...इनको एक कापी में [डायरी लेने की अकल शायद तब आई नही :) ]उसको सजा कर उस में ऐसी ऐसी कोई २५ कविताएं लिख कर बिना किसी नाम के अच्छे से गिफ्ट पैक कर के दे दी ॥ और कहा कि इसको घर जा कर ही खोलना ..बहुत स्पेशल गिफ्ट है तुम्हारे लिए ..मेरी और कविता की तरफ़ से ...घर पहुँच कर उसकी मम्मी ने भी गिफ्ट देखे और फ़िर जो उसकी हालत हुई ..वह उसने हमें अगले दिन खूब मार कर ही बतायी ..बेचारी लाख दुहाई देती रही कि माँ यह लड़की है जिसने लिखी है .....पर उस वक्त सेल फ़ोन या कोई फ़ोन तो ज्यादा थे नही ..और वह तवी नदी के उस पार हमारा घर इस पार ..पर फ़िर बाद में उसकी मम्मी को बता दिया था कि हमने शरारत करी है ..सो बस इतनी ही मासूम शरारते करते थे बस ..:) फ़िर वक्त के साथ सब अलग होते गए कुछ समय तक एक दूसरे से बात चीत होती रही ...आख़िर में सिर्फ़ कविता के साथ ही बात हो पाती थी फ़िर मैं भी अपने घर में उलझ गई और वह भी ..पर शायद कोई याद थी जो एक दूजे को तलाश करती रही ।और उसने मुझे तलाश कर ही लिया .और जब हम दोनों मिले तो बाकी गैंग भी याद आना लाजमी था .

उस दिन मीता की कविता पढ़ रही थी तभी दिमाग में एक घंटी बजी कि शायद गूगल बाबा की मदद से बाकी सब भी मिल जाए ..वैसे भी यह इन्टरनेट की दुनिया है है और यह बहुत छोटी है ...इस लिए सोचा एक कोशिश कर ली जाए क्या पता वह भी यह पढ़े .....मैं प्रोमिस करती हूँ आराधना कि अब जो कविताएं लिखी है वह तेरे पतिदेव को बिना नाम के नही दूंगी ..:) मीता की इसी उम्मीद के साथ अब मेरी उम्मीद भी जुड़ गई है ...कि यह लिखा हुआ सच ही हो जाए कि गूगल सर्च एंजिन मे ढुंढ़ो तो मिल जाता है ......:)

यदि आप मेरे बारे में और जानना चाहते हैं तो सोमवार को काफी विद कुश पढ़े :)

15 comments:

सुशील छौक्कर said...

जी पढेगे भी जानेगे भी। इंतजार है काफी विद कुश का। पुराने दिन जब याद आते है हम ऐसे ही खुश हो जाते है।

Abhishek Ojha said...

जय हो गूगल बाबा की... सोमवार का इंतज़ार है.

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छा लगा आप की आज की यह पोस्ट पढ कर,

कुश said...

चलिए आपको पुरानी सहेली मिल तो गये.. हम तो यादो से ही कम चला रहे है..

meeta said...

are!! wah!!! chalo mere intzaar mein koi shamil to hai....mere lafz kuch is kabil to hai .. achcha laga ki aap ko koi nuskha mila ... aasha hai aapki gang aapko jaldi mil jaye.... :)

महेन said...

ऐसा ही कुछ हम भी अपनी दो महिला मित्रों के साथ कर चुके हैं। शक्ल से ऐसी मासूमियत टपकती है कि मार खाने की नौबत नहीं आयी कभी।
अच्छा लगा आपके पुराने दिनों में गोते लगाना।
शुभम।

mehek said...

aare wah ye to bahut badhiya raha,itni purani dost se milna,wow,badi masum si sharatein thi aap sabhi doston ki:)

Udan Tashtari said...

जय गुगल बाबा की. बढ़िया रहा पुरानी सहेली मिल गई.तो अगली बार आप आ रही है कॉफी विथ कुश पर. बहुत शुभकामनाऐं. निश्चित ही मजेदार रहेगा एपिसोड.

डॉ .अनुराग said...

आहा.............तो ये दीवानी शरारती भी थी जानकर अच्छा लगा...दोस्ती से बड़ा कोई रिश्ता नही....आपकी कोफी जरूर चखेंगे ....चीनी कम डालियेगा....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मज़ेदार किस्सा और आपका ऐपिसोड अवश्य देखेँगे कुश भाई के साथ
- लावण्या

Mohinder56 said...

रोचक किस्सा.. खुदा करे आपको बाकी सब भी मिल जायें जिनकी आपको तलाश है... गुगल बाबा से ऊपर एक साईं बाबा हैं उनसे हम प्रार्थना करेंगे

Jugal Gaur said...

लम्बे अन्तराल के बाद अपनी सहेली मिली............
मुबारक हो ... दुआ करते है आपकी अन्य सहेलियां भी मिल जाए ......
भई जब आपकी सहेली है तो असाधारण होगी ही ........
एक सहेली कि कलम का कमाल तो ......... वाह.... वाह....
इंतजार है काफी विद कुश का। पुराने दिन जब याद आते है हम भी इसी तरह ही खुश हो जाते है।

Jugal Gaur said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

लम्बे अन्तराल के बाद अपनी सहेली मिली............
मुबारक हो ... दुआ करते है आपकी अन्य सहेलियां भी मिल जाए ......
भई जब आपकी सहेली है तो असाधारण होगी ही ........
एक सहेली कि कलम का कमाल तो ......... वाह.... वाह....
इंतजार है काफी विद कुश का। पुराने दिन जब याद आते है हम भी इसी तरह ही खुश हो जाते है।

ramsinghashiya said...

jindgi bahut rang dikhlati hai !
pal aate hai or chale jate hai par unki yade hamesha dil me rah jati hai,kabhi hasha jati hai to kabhi rula deti hai,