हमारी हिन्दी फिल्में गानों के बिना अधूरी है ..कई गाने इतने अच्छे होते हैं कि यह फ़िल्म देखने पर मजबूर कर देते हैं ..किसी भी फ़िल्म की लोकप्रियता संगीत की धुन और उस में आए गानों के बोल भी होते हैं ..हमारी हिन्दी फिल्मों में यह परम्परा पारसी थियटर से आई और इसी परम्परा ने शायरों ,गीतकारों को सबके सामने रखा ।आज के लिखे जाने वाले गीतों से सबको शिकायत है कि पहले के गीत दिल को छूते थे पर आज कल के गीत गुब्बारे की तरह है जो आए और कब चले गए पता ही नही चलता कुछ जुबान पर चढ़ते हैं पर दिल में नही उतरते हैं ..पर आज के इस दौर में कई अच्छे गीतकार हैं जैसे जावेद अख्तर ,गुलजार .निदा फाज़ली आदि ..जिनके लिए लिखना सिर्फ़ तुकबंदी करना नही है ..वह लफ्जों में जान डाल देते हैं उसके अन्दर की गहराई को शिद्दत से महसूस करवाते हैं।
इसी कड़ी में गुलजार जी का नाम बहुत अच्छे से दिलो दिमाग पर असर करता है ।आम बोलचाल के लफ्जों को वह यूं पिरो देते हैं कि कोई भी बिना गुनगुनाए नही रह सकता है ..जैसे कजरारे नयना और ओमकारा के गाने सबके सिर चढ़ के खूब बोले .आज की युवा पीढ़ी खूब थिरकी इन गानों पर ।सच में वह कमाल करते हैं जैसे उनके गाने में आँखे भी कमाल करती है .उस से सबको लगता है कि यह उनके दिल कि बात कही जा रही है ।वह गीत लिखते वक्र जिन बिम्बों को चुनते हैं वह हमारी रोज की ज़िंदगी से जुड़े हुए होते हैं इस लिए हमे अपने से लगते हैं उनके गाने ।ओ साथी रे [ओमकारा] का गाना में तेरी मेरी अट्टी बट्टी ..दांत से काटी कट्टी ..जैसे लफ्ज़ को जादुई एहसास देना गुलजार जैसे गीतकार ही कर सकते हैं
प्यार और रोमांस से जुडा जो जादुई एहसास जो वो पिरोते हैं अपने लफ्जों में वह सबको अपने दिल के करीब सीधा दिल में ही उतरता सा लगता है ,अपने इन गानों से उन्होंने लाखो करोड़ों प्रेम करने वाले दिलो को शब्द दिए हैं। आज की युवा पीढ़ी के भावो को भी गुलजार बखूबी पकड़ कर अपने गीतों में ढाल लेते हैं ।उनके कुछ गीत हमेशा ही हर पीढ़ी में लोकप्रिय रहेंगे जैसे मेरा कुछ समान--- इजाजत ,इस मोड़ से जाते हैं तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नही ..आंधी,तुम पुकार लो .खमोशी ..रोज़ रोज़ आंखो तले फ़िल्म के सभी गाने आदि आदि अनेक गाने .लिस्ट तो बहुत लम्बी है उनके लिखे गानों की ।किस को यहाँ लिखूं किसको न लिखूं .मुझे सब बेहद पसंद है ..
..वह जो शब्द अधिकतर इस्तेमाल करते हैं रात ,चाँद ,पानी आदि उन्होंने इन शब्दों को बहुत से अलग अलग अर्थ दिए हैं ..वह शब्दों से जी ध्वनि पैदा करते हैं वह अर्थ हीन नही होती है रोमांस में डूबी उनकी हर कविता उनके लिखे हुए हर लफ्ज़ को और रोमांटिक एहसास से भर देती है ..हमेशा इनके लिखे का इंतज़ार रहेगा और इनके लिखे गाने सबके दिलों में गूंजते रहेंगे ....!!
अभी उन्ही का लिखा एक गाना सुनिए .मुझे यह बेहद पसंद है ..:)
15 comments:
रंजू जी.. सर्वप्रथम तो हार्दिक धन्यवाद.. गुलज़ार साहब के गाने सुनने के लिए..
सच कहा है आपने ये गुलज़ार साहब का ही जादू है जो साधारण शब्दो में जान डाल देता है.. जैसे जानेमन के गाने की लाइन है.. 'टूटी फूटी शायरी में.. लिख दिया है डाइयरी में' ओर झूम बराबर झूम के गीत की एक लाइन.. 'औना पोना ही सही.. दिल का कोना ही सही' इसी फिल्म का एक ओर सॉंग है.. बोल ना हल्के हल्के.. उसकी चन्द पंक्तिया है... 'आ नींद का सौदा करे.. इक ख्वाब ले इक ख्वाब दे.. इक ख्वाब तो आँखो में है.. इक चाँद के तकिए तले.. कितने दिनो से ये आसमा भी सोया नही है इसको सुला दे'... ओर गुलज़ार साहब द्वारा निर्देशित मेरे अपने का गीत 'हाल चाल ठीक ठाक है' की पंक्तिया.. कितना कुछ कह जाती है... जैसे देखिए '' बाज़ारो के भाव मेरे ताऊ से बड़े, मकानो पे पगड़ी वेल ससुर खड़े.. बुढ्डी भूख मारती नही ज़िंदा है अभी.. कोई इन बुज़ुर्गो से कैसे लड़े.. शब्द कम पद जाते है जब उनके बारे में लिखा जाए
प्रसंगवश- गुलजार साहब के फिल्म मौसम के एक गीत "दिल ढूंढ्ता है फिर वही फुरसत के रात दिन" पर मैने अभी एक ब्लॉग लिखा और उसके तुरंत बाद आपके विचार पढ़े. आपने अच्छा लिखा पर इस कड़ी मे एक नाम छूट गया है- प्रसून जोशी का. ये गुलजार साहब के सच्चे प्रतिनिधि है और हमें एक से एक सम्वेदंशील, अर्थपूर्ण और उच्चस्तरीय कविता रूपी गीत सुनने को मिल रहे है.
सच आपकी ये पोस्ट एकदम मिश्री की पुडिया ही है.
आभार.
गुलज़ार साहब बस गुलज़ार है.....एक बार आर डी बर्मन साहेब ने मजाक मे उनसे कहा था की यार कल को तुम अखबार लेकर आ जायोगे ओर कहोगे .....की इस पर गाना बना ...ये सन्दर्भ इजाज़त के गाने "मेरा कुछ सामान"
के सन्दर्भ मे था ....जितना मुश्किल लिखना था उतना ही मुश्किल उसे स्वरबद्ध करना.....विशाल जी शायद उस कमी को पुरा करे ...सचिन की बात सही है....प्रसून जोशी शायद उनकी विरासत को निभा सके....
'मेरा गोरा अंग लेइले' से 'बीडी जलैले' तक हर प्रकार के गाने लिखे हैं गुलज़ार साब ने... कोई तुलना नहीं है इतनी विवधता और खूबसूरत गानों की.
रंजू जी
सच कहा आप ने गुलज़ार बस गुलज़ार ही हैं...किसी से उनकी तुलना नहीं की जा सकती. उनके पहले गीत"मोरा गोरा अंग लाईले..." से लेकर आज तक के सारे गीत अनमोल हैं. जो इस उम्र में कजरारे और बीडी जलईले लिख कर युवाओं को थिरका सकता है वो शायर कभी दिलों से फना नहीं हो सकता. आप ने उनपर पोस्ट लिख कर हम जैसे उनके कितने ही प्रेमियों का दिल जीत लिया है.
नीरज
गुलजार और उनके गीतों का कोई सानी नही है।
bahut hi behtarin gane sunnane ke liye shukrana
सुँदर गीतोँ से सजी सुँदर पोस्ट और गुलज़ार साहब की तो बात ही क्या कहेँ ?:) शुक्रिया रँजू जी ...
- लावण्या
सुंदर,
आलोक सिंह "साहिल"
गुलज़ार साहब का तो क्या कहने. आपका आलेख बहुत पसंद आया. गाना कहाँ है??
ओह, सॉरी. शायद सर्वर स्लो है तो प्लेयर लोड होने में समय लग रहा है.
रंजू जी आपका आलेख बहुत अच्छा लगा। उसे देखते हुए यह कविता कहने का मन आया। सच तो यह है कि गीत संगीत मुझे प्रिय है। आज मेरे मन में वर्तमान गीत संगीत पर लिखने का विचार था पर आपका लेख देखकर यह लगा कि उसमें आपने बहुत सारी बातें कह दीं हैं। हां, आपका ब्लाग खोलने पर जो संगीत का स्वर आता है वह मुझे अच्छा लगता है।
दीपक भारतदीप
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यूं तो दिल सभी की देह में होता है
पर खुशनसीब होते हैं वह जिनको
जिंदगी में प्यार नसीब होता है
देखकर पर्दे पर चलचित्र का प्यार
नाचते गाते नायक-नायिका
अपनी जिंदगी में वैसा ही सच देखनें के लिए
कई लोग तरस जाते है
पर जमीन पर न कोई नायक होता न नायिका
यहां बगीचों में जाकर घूमते हुए में भी
पहरेदारों के डंडे बरस जाते है
हीरो बूढ़ा भी हो तो
तो कमसिन मिल जाती है प्यार करने के लिए
पर सच में कोई कोई आंख उठाकर भी देख ले
भला ऐसा भी कहां गरीब होता है
प्यार भरे गाने सुनते हुए बीत गये बरसों
दिल की दिल में रह गयी
इंतजार तो इंतजार ही रहा
शायद कोई सच में नहीं प्यार करे
तो दिल्लगी ही कर ले
आज, कल या परसों
परदे के चलचित्र से परे रहकर
जब देखते हैं अपनी जिंदगी तो
उसे ही प्यार करते हैं
जो शरीर के करीब होता है
फिर भी गीतों में झूम लेते हैं
यही ख्याल करते हुए
गीत-संगीत पर झूम सकते हैं
यह भी किसी किसी का नसीब होता है
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रंजूजी,
हम गुलज़ार के समय में हुए हैं ये हमारी ख़ुशक़िस्मती है. सच कहता हूँ हमारे पोते-पोती यह कह कर वाक़ई फ़ख्र करेंगे कि हमारे दादा-दादी,नाना-नानी बड़े प्यार से गुलज़ार साहब को पढ़ते,सुनते थे....जैसे जब मुझे और मेरे बच्चों को यह जानकर होता है कि मेरे पिता और उनके दादा ने दिनकर,बच्चन,शैलेंद्र,कैफ़ी आज़मी,डॉ.सुमन,नीरज,वीरेद्र मिश्र,रमानाथ अवस्थी,देवराज दिनेश,बालकवि बैरागी,गोपालसिंह नेपाली,इंदीवर,काका हाथरसी जैसे अनेक मूर्धन्य कवि-गीतकारों को देखा,सुना और इनमें से कइयों के साथ काव्यपाठ भी किया है.गुलज़ार जीवन,परिवेश,तहज़ीब और इंसानी समवेदनाओं के श्रेष्ठ क़लमकार हैं.आपकी इस पोस्ट से मन गुलज़ार हो गया.
गुलज़ार गुलज़ार है!!!
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