देखा जो आईना तो ,मुझे सोचना पड़ा
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा
उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा
मुझको था यह गुमान कि मुझी में है एक अदा
देखी तेरी अदा तो मुझे सोचना पड़ा
दुनिया समझ रही थी कि नाराज़ मुझसे हैं
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा
एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा
जगजीत सिंह चित्रा [सुनी जब यह खूबसूरत गजल तो मुझे सोचना पड़ा :) कि आप के साथ इसको शेयर करूँ ..आप किस सोच में डूब गए इसको सुन कर ..कैसी लगी आपको बताये :)]
8 comments:
ham bas sunkar maja le rahe hai...
behad khubsurat gazal,anand aa gaya
आभार इसे शेयर करने का.
इसे पेश करने के लिए आभार.
उम्दा चयन.
वाह
वाह
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है, खूबसूरत आवाज़ ने चार चाँद लगा दिए .....थैंक्स रंजू जी
रंजू जी
इतनी प्यारी गज़ल सुनवाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
बहुत सुंदर !
मुझे भी बेहद पसंद है ये ग़ज़ल..
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