मीना जी के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग थी उनकी शायरी ..उन्हें शायरी से इतना प्यार था कि उनका बस चलता तो वह बात बात में शेर कहती ..उनका जीवन ग्रीक ट्रेजडी भाषा में लिखी गई परियों की कहानी थी ..पाकीजा उनकी आखिरी फ़िल्म थी पर उसकी सफलता उनकी मौत के तीन हफ्ते बाद देखने को मिली ..
अकेलपन का एहसास जो एक डूबते सितारे या भूले बिसरी नायिका को होता है वह एहसास और कोई नही महसूस कर सकता ,इस एहसास से पार पाने को क्या क्या कोशिश करनी पड़ती है और जब लाख कोशिश करने पर भी वह अपनी मंजिल नही पाता तो वह अपने दिल से पूछता है कि--' कहाँ खो गए हैं मेरे मन की शान्ति और चैन ."और फ़िर से एक नए सम्बन्ध कि तलाश में निकल पड़ता है मीना कुमारी के साथ भी यही हुआ वह खूबसूरत प्यार भरे शब्दों और भाषा में उलझ कर रह गई थी पर उनके अन्दर सहन करके की ताक़त बहुत थी..
उनके जाने के बाद भी बहुत से लोग उन्हें आज तक भुला नही पाये हैं ..वह सेट पर सबकी मीना दीदी थी ..कभी कोई उन्हें मैडम से नही बुलाता था ..वह भी सबको प्यार से सेट पर सब वर्कर्स को उनके नाम से बुलाती थी ..एक बार उनसे किसी ने पूछा भी था कि आपको सब नाम याद कैसे रह जाते हैं ..उन्होंने जवाब दिया कई फ़िल्म के इतने बड़े डायलाग याद हो जाते हैं तो यह तो सिर्फ़ नाम हैं और उनके बारे में कहा जाता है कि मजाक में लोग उन्हें टेप रिकाडर कहा करते थे वह इस लिए कि उनके सामने एक डायलाग चाहे वह जितना भी लंबा क्यों न हो बोल दो वह बिना रुके वैसा का वैसा दोहरा देतीं थी.
उनकी कुछ आदते बहुत अजीब थी .जिन्ह कारण वह भी नही जानती थी बस पूछो तो कहती थी की माँ ने कुछ ऐसा ही बताया था जैसे कोई पानी का गिलास ले कर आए तो इनकार मत करो पी लो ..क्यों पी लो कारण उनको भी नही पता था बस यही कहती अच्छा नही होता माँ कहती थी ..कोई उनकी नाक छुए तो फौरन उसकी नाक छू लेती थी पूछने पर कहती थी नाक छू लेने से नाक वाले के रोग लग जाते हैं इसलिए कोई आपकी नाक छुए तो फौरन अपने रोग उससे वापस ले लेने चाहिए ..अपनी कंघी किसी को फूंके बगैर इस्तेमाल नही करने देती थी और ख़ुद भी फूंके बगैर किसी की कंघी इस्तेमाल नही करती थी .
सफ़ेद रंग उनका ख़ास रंग था, मोतिया उनका ख़ास फूल ,गरारा कमीज उनका ख़ास लिबास , माथे पर बड़ी सी बिंदी और गाने का बेहद शौक था ..बँटाते रहना उनकी आदत थी .....जो अपने पास रखा वह सिर्फ़ जगह जगह से इकट्ठे किए हुए पत्थर कई तरह के रंग बिरंगे जिनके नाम भी उन्होंने ख़ुद ही रखे हुए थे किसी का मन्दिर किसी का संगमेल किसी का आसमान ..सफ़ेद सा पत्थर उन्हें बहुत पढ़ा लिखा लगता और काला पत्थर उन्हें गुंडा नज़र आता .....यह पत्थर उनके सोने वाले कमरे में सजे रहते .उनकी बहन खुर्शीद ने उनके बाद उनके पत्थरों को संभाल कर रखा .जिन्हें वह आपडी कहती थी ..अब वह पत्थरों को अजीब से नाम क्यों देती थी यह वही जाने या यह राज उनकी किसी डायरी में मिल जाए क्यूंकि उनकी डायरी में सिर्फ़ दिनों और जगह के नाम ही नही बहुत से फूल और पत्तियों और पत्थर के नाम भी लिखे हुए हैं
उनकी सहेलियों में सिर्फ़ दो नाम का जिक्र होता है एक रजिया का जिसे वह रज्जो कहती थी दूसरी उनकी हेयर ड्रेसर बर्था ....हमराज बहुत थे पर हर किसी से उन्होंने कोई न कोई राज अपना छिपाये रखा .....अपने आखरी सफर का राज का पता भी उन्होंने किसी को नही दिया था ..बस शायद जानती थी इस लिए चुपचाप चली गई और फ़िर वापस नही लौटी ....उनकी डायरी में एक जगह लिखा है उन्ही के द्वारा की ...इस जहाँ में मोहब्बत तो न थी ,मुरब्बत का क्या हुआ ...?" शायद यह उन्होंने तब लिखा जब उनकी ज़िंदगी और मौत के बीच कुछ ही महीनों का फासला रह गया था ..वह भीतर ही भीतर टूट चुकी थी ..दवा क्या असर करेगी जब जीने की इच्छा ही बाकी न रह गई हो ..
यूं न ढलक
आँचर पे कजरे की यह झलक
यह तेरी पलक या मेरी पलक
यह राहे जो टेढी मेढ़ी हैं
इस मोड़ से बस उस मोड़
दोस्त है या दुश्मन मेरा
सर पर जो टंगा है नीला फलक
सब लोग ही प्यासे रह जाए
पैमाने कुछ इस तरह झलक
आँख ने कसम दी है आंसू को
गालों पर हरदम यूं न ढलक
6 comments:
आप मीना जी का हर पहलू पेश कर रही है। पढकर सकून सा मिलता है।
कहते है जब इंसान तन्हा होता है तब अपनी श्रेष्ट रचनायो की उत्पत्ति करता है . जगजीत जी की गायी हुई गजल याद आती है ......
"हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फ़िर भी तन्हाइयो का शिकार आदमी"
bahut khub,tanhai ki nazmo ka swad hi sundar hota hai,bahut accha laga ye post.
बहुत अच्छा लगा मीनाकुमारी जी के जीवन के कई पहलूओं को छूता आपका आलेख.
वाह.
मीना कुमारी जी के जीवन के कई अनजाने पलो से, कई बातो से आपने रूबरू करवाया.
धन्यवाद.
बेहतरीन हैँ
ये सारी जानकारियाँ
मीनाजी के बारे मेँ -
इसी तरह लिखते रहेँ
- और हमेँ पढवातीँ रहेँ -
-लावण्या
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