अभिनय की हर बारीकी से सम्पन्न मीना कुमारी एक अभिनेत्री के रूप में ३२ साल तक भारतीय सिने जगत पर छाई रहीं फ़िल्म परिणीता की शांत अल्हड़ नवयौवना ,बैजू बावरा की चंचल हसीं प्रेमिका साहब बीबी और गुलाम की की सामंती अत्याचार व रुदिवादी परम्परा की निष्ठुर यातनाएं झेलने वाली बहू और शारदा की ममता मयी माँ और सबसे बेहतरीन पाकीजा की साहब जान इन मीना कुमारी को कौन नही जानता...
१ अगस्त १९३२ को जन्मी और गरीबी में पली इस अभिनेत्री का बचपन भी बहुत अच्छा नही गुजरा मात्र ८ साल की उम्र में यह फिल्मों में आ गई पहले यह गाने गाया करती थी कई गजल और गीत उन्होंने अपनों दर्द भरी आवाज़ में गाए हैं उपनाम नाज से वह लिखा भी करती थी ..कुछ कहानिया भी लिखी थी इन्होने ..यदि यह अभिनेत्री न होती तो एक बहुत अच्छी शायरा होतीं ....सन १९४७ में बनी पिया घर आजा के सभी गीत मीना जी ने गाए थे इन में देश पराए जाने वाले .नयन डोर में बाँध लिया आदि गीत बहुत लोक प्रिय भी हुए थे ...सन १९52 में बेजू बावरा बहुत हिट साबित हुई और इन्हे फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिला ज्यूँ ज्यूँ यह शोहरत की बुलन्दी पर पहुंचती गई उतनी ही अपनी ज़िंदगी में तन्हा होती गई हर वक्त खोयी खोयी उदासियों में जीने वाली मीना के अभिनय भी वह दर्द छल कता ही रहा सन १९७१ में बनी पाकीजा में जैसे उन्होंने अपनी सच्ची पीडा को ही फ़िल्म में उतार दिया उस फ़िल्म का एक संवाद भूले नही भूलता हम तो वह लाश है जिसकी कब्र खुली पड़ी रहती हैं इस को बोलते हुए उन्हें कोई अभिनय नही करना पड़ा क्यूंकि उनकी ज़िंदगी की सारी पीड़ा जैसे उस में सिमट के रह गई थी ...
बच्चो से मीना जो को बहुत लगाव था उन्होंने कई अनाथ बच्चों की मदद की कहते हैं कि कई बार वह सारा सारा दिन उन बच्चो के साथ बिता देती थी ..पर तकदीर ने उन्हें औलाद का सुख नही दिया परदे पर माँ कि ममता रूप जीने वाली सदा माँ बनने के लिए तरसती रहीं .अन्तिम दिनों में सावन कुमार टाक उनके साथ रहे उन्होंने मीना जी की सेवा मैं कभी कोई कमी नही आने दी उन्होंने उनक दिल रखने के लिए उनकी फ़िल्म गोमती के किनारे में भी काम किया उन्होंने पूरी ज़िंदगी में कभी किसी को निराश नही किया लेकिन कोई उनका नही हो सका तब उन्होंने शराब को उन्होंने साथी बना लिया सिर्फ़ ४० साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने इस बेदर्द दुनिया से रुखसत ली यह कहते हुए
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तन्हा है और जां तन्हा
मीना कुमारी का ही लिखा हुआ है
चाँद तन्हा है आसमं तन्हा
दिल मिला हैं कहाँ कहाँ तनहा
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है जां तन्हा
9 comments:
ऐसा अक्सर देखा गया है की परदे पे जीवंत ओर जिंदगी से भरपूर दिखने वाले लोग अपने वास्तविक जीवन मे तनहा ओर दुःख से घिरे रहे ओर गुमनाम मौत के शिकार हुए ..रंगीन परदा वस्तिविक्जीवन मे कितना खोखला है यही सच है....
ये भी ज़िंदगी का एक रूप है
तन्हा जीवन अक्सर छोटे होते हैं। उनकी तन्हाई परदे पर दिखती थी।
हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआँ तन्हा
जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा इक मकाँ तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तन्हा
मीना कुमारी की आवाज मे एक अजब सी खनक और गहराई और दर्द था ।
जिंदगी आंख से टपका हुआ बेरंग कतरा।
मेरे दामन की पनाह पाता तो आंसू होता॥
जिंदगी के रंग निराले होते है।
जीतीं रहीं वो ज़िन्दगी तनहा
पढते रहे हम उनका दर्द ...तनहा
जितनी खूबसूरत वे थीं उससे अधिक खूबसूरत उनका अभिनय था । कमाल अमरोही साहब से उन्हे दर्द ही ज्यादा मिला । और बाकियों से धोखा ।
परवीन बाबी की भी कहानी कुछ मिलती जुलती है । आपके लेख से मीना कुमारी की याद ताजा हो गई ।
काफी सुंदर स्मृतियां मीना कुमारी की भावनाओं को अभिव्यक्ति देती हुईं...
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