तुम तो कहती थी माँ कि..
रह नही सकती एक पल भी
लाडली मैं बिन तुम्हारे
लगता नही दिल मेरा
मुझे एक पल भी बिना निहारे
जाने कैसे जी पाऊँगी
जब तू अपने पिया के घर चली जायेगी
तेरी पाजेब की यह रुनझुन मुझे
बहुत याद आएगी .....
पर आज लगता है कि
तुम भी झूठी थी
इस दुनिया की तरह
नही तो एक पल को सोचती
यूं हमसे मुहं मोड़ जाते वक्त
न तोड़ती मोह के हर बन्धन को
और जान लेती दिल की तड़प
पर क्या सच में ..
उस दूर गगन में जा कर
बसने वाले तारा कहलाते हैं
और वहाँ जगमगाने की खातिर
यूं सबको अकेला तन्हा छोड़ जाते हैं
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ढल चुकी हो तुम एक तस्वीर में माँ
पर दिल के आज भी उतनी ही करीब हो
जब भी झाँक के देखा है आंखो में तुम्हारी
एक मीठा सा एहसास बन कर आज भी
तुम जैसे मेरी गलती को सुधार देती हो
संवार देती हो आज भी मेरे पथ को
और आज भी इन झाकंती आंखों से
जैसे दिल में एक हूक सी उठ जाती है
आज भी तेरे प्यार की रौशनी
मेरे जीने का एक सहारा बन जाती है !!
रंजू
17 comments:
क्या कहूँ..गला रुंध आया है.
ranju ji wo tara jo upar hai,har pal mamta barsata hai,apni roushni dharti par bhej ta hai,bahut hi marmik kavitayen,bahut sundar.
क्या कहूं ...कुछ लिख नहीं पा रहा हूं. लेकिन अगर रंजना जी आप सामने बैठी होती तो शायद आप को मेरी टिप्पणी मेरी आंखों में दिख जाती । यकीन मानिये आप की बात आप की प्यारी माताश्री के पास फौरन पहुंच गई होगी क्योंकि आपके लिखने में तड़फ ही ऐसी है !!
nishabd hun.....ranjna ji.
माँ की याद दिलाती कविता अच्छी लगी...
मॉं तुझे प्रणाम ... ।
भावनात्मक प्रस्तुति।
माँ के लिए कुछ भी कहा जाय कम है, फिर भी आपकी लेने पढ़ कर आँखे नम हो जाना स्वाभाविक ही है... धन्यवाद!
रंजु जी मुझे आप की कविता पढ कर केसा लगा होगा , जो अपनी मां से बहुत दुर हे, शब्दो मे लिख नही पाऊ गा. धन्यवाद.
बस यही कहुगां बहुत सुन्दर
रंजू जी
माँ की याद में लिखी आपकी यह कविता दिल को छू गई। बधाई स्वीकारें।
रुलाना मना है
कहने को कुछ शेष नहीं है
मां के एक नाम के आगे
" आज फिर, आसमान पे
घनघोर घटाएँ छायीँ हैँ
फिर किसी बेटी को
ओ माँ, याद तुमहारी आयी है"
भावपूर्ण कविता लिखी आपने
रँजू जी...
- लावण्या
जब से गई है माँ मेरी रोया नही ।
सपनों की दुनिया में कभी खोया नही ॥
नि:शब्द कर दिया आपने!
माँ की इस याद के सफर में आप सबका मेरे साथ चलने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ..यूं ही उनकी हर बात याद करते हुए लिखती गई .और पोस्ट करने के बाद भी इसको नही पढ़ा क्यूंकि लिखते वक्त ही दिल बहुत बोझिल सा हो उठा था .उसके बाद आप सबके कमेंट्स पढे ..भावुक कर देने वाले थे .आज ही अपना लिखा हुआ ख़ुद ही पढ़ा ..और लगा की सच में माँ सबकी सांझी होती है ..वह पास हो या दूर बस दिल में बसती है ..शुक्रिया आप सब का एक बार फ़िर से
बेहतरीन मर्म से युक्त रचना,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
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