Wednesday, February 13, 2008

फूल मुरझा गया पर अमृता भाग ५

जब मैं अमृता के घर गई थी तो वहाँ की हवा में जो खुशबू थी वह महक प्यार की एक एक चीज में दिखती थी इमरोज़ की खूबसूरत पेंटिंग्स ,और उस पर लिखी अमृता की कविता की पंक्तियाँ ..देख के ही लगता है जैसे सारा माहोल वहाँ का प्यार के पावन एहसास में डूबा है ..और दिल ख़ुद बा ख़ुद जैसे रूमानी सा हो उठता है ...इमरोज़ ने साहिर के नाम को भी बहुत खूबसूरती से केलीगार्फी में ढाल कर अपने कमरे की दिवार पर सजा रखा है ..उमा जी ने अपनी किताब में लिखा है की ..जब एक बार उन्होंने इमरोज़ से इसके बारे में पूछा तो इमरोज़ जी ने कहा कि जब अमृता कागज़ पर नही लिख रही होती थी तो भी उसके दाए हाथ कीपहली उंगली कुछ लिख रही होती थी कोई शब्द कोई नाम कुछ भी चाहे किसी का भी हो भले ही अपना ही नाम क्यों न हो वह चाँद की परछाई में में भी शब्द ढूँढ़ लेती थी बचपन से उनकी उंगली उन चाँद की परछाई में भी कोई न कोई लफ्ज़ तलाश कर लेती थी ..इमरोज़ बताते हैं की हमारी जान पहचान के सालों में वह उस को स्कूटर में बिठा कर रेडियो स्टेशन ले जाया करते थे ,तब अमृता पीछे बैठी मेरी पीठ पर उंगली से साहिर का नाम लिखती रही थी ,मुझे तभी पता चला था की वह साहिर से कितना प्यार करती थी ..और जिसे अमृता इतना प्यार करती थी उसकी हमारे घर में हमारे दिल में एक ख़ास जगह है इस लिए साहिर का नाम यूं दिख रहा है ..साहिर के साथ अमृता का रिश्ता खमोश रिश्ता था मन के स्तर का ,उनके बीच शारीरिक कुछ नही था जो दोनों को बाँध सकता वह अमृता के लिए एक ऐसा इंसान था जिस के होने के एहसास भर से अमृता को खुसी और जज्बाती सकून मिलता रहा !!

चोदाहा साल तक अमृता उसकी साए में जीती रही . दोनों के बीच एक मूक संवाद था ,वह आता अमृता को अपनी नज्म पकड़ा के चला जाता कई बार अमृता की गली में पान की दूकान तक आता पान खाता और अमृता की खिड़की की तरफ़ देख के चला जाता और अमृता के लिए वह एक हमेशा चमकने वाला सितारा लेकिन पहुँच से बहुत दूर ..अमृता ने ख़ुद भी कई जगह कहा है की साहिर घर आता कुर्सी पर बैठता ,एक के बाद एक सिगरेट पीता और बचे टुकड़े एशट्रे में डाल कर चला जाता .उसके जाने के बाद वह एक एक टुकडा उठाती और उसको पीने लगती ऐसा करते करते उन्हें सिगरेट की आदत लग गई थी !!


अमृता प्यार के एक ऐसे पहलु में यकीन रखती थी जिस में प्रेमी एक दूजे में लीन होने की बात नही करते वह कहती थी की कोई किसी में लीन नही होता है दोनों ही अलग अलग इंसान है एक दूजे से अलग रह कर ही वह एक दूजे को पहचान सकेंगे अगर लीन हो जाए तो फ़िर प्यार कैसे करोगे ?

इमरोज़ जी के लफ्जों में अमृता के लिए कुछ शब्द ..

कैसी है इसकी खुशबु
फूल मुरझा गया ,
पर महक नही मुरझाई
कल होंठो से आई थी
आज आंसुओं से आई है
का यादो से आएगी
सारी धरती हुई वैरागी
कैसी है ये महक जो इसकी
फूल मुरझा गया पर महक नही मुरझाई !!
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6 comments:

Keerti Vaidya said...

Ranju Di, really Amrita series padhne ka maza aa jata hai....sach apke saath mein bhi ghum ati hun....

दिवाकर मिश्र said...

रंजना जी, आपने कहा कि आश्चर्य होता है कि जब कोइ हिन्दी साहित्य पढ़ने वाला अमृता प्रीतम और इमरोज के विषय में नहीं जानता । आपके इस आश्चर्य का एक विषय मैं भी हूँ । मैं अमृता प्रीतम के बारे में तो कुछ कुछ जानता था पर इमरोज के बारे में आपके द्वारा प्रकाशित इस शृंखला के द्वारा ही जाना । पढ़ के आनन्द तो मिलता ही है और साथ ही महत्त्वपूर्ण जानकारी भी । ऐसे शुभ कार्य के लिए बधाई ।

Asha Joglekar said...

रंजना जी बहुत अच्छी लगी आपकी ये सिरीज़ ।
प्यार और दर्द का एक अटूट रिश्ता होता है । इमरोज और अमृता का प्यार कुछ ऐसा ही है ।

Asha Joglekar said...

रंजना जी बहुत अच्छी लगी आपकी ये सिरीज़ ।
प्यार और दर्द का एक अटूट रिश्ता होता है । इमरोज और अमृता का प्यार कुछ ऐसा ही है ।

neelima garg said...

Iam a big fan of AMRITA PRITAM .All her novels n poems r too enjoyable.Ur article is nice n informative.....

Anonymous said...

कमाल है,प्रेम का इतना मजबूत पहलू!बहुत अच्छी सीरिज शुरू करी है आपने मजा आ गया.इसी बहने हम नाचीज भी प्रेम के एक आध पहलुओं से वाकिफ हो जायेंगे.
आलोक सिंह "साहिल"