Tuesday, January 29, 2008

अमृता की ज़िंदगी के कुछ पन्ने ..भाग २

अमृता की ज़िंदगी के कुछ पन्ने ..भाग २

अमृता जी के बारे में जितना लिखा जाए मेरे ख्याल से उतना कम है , जैसा की मैंने अपने पहले लेख में लिखा था की मैंने इनके लिखे को जितनी बार पढ़ा है उतनी बार ही उसको नए अंदाज़ और नए तेवर में पाया है .उनके बारे में जहाँ भी लिखा गया मैंने वह तलाश करके पढ़ा है ...उनकी ज़िंदगी की कुछ और बातें उन पर ही लिखी के किताब से ..एक बार किसी ने इमरोज़ से पूछा की आप जानते थे की अमृता जी साहिर से दिली लगाव रखती हैं और फ़िर साजिद पर भी स्नेह रखती है आपको यह कैसा लगता है ?
इस पर इमरोज़ जोर से हँसे और बोले की एक बार अमृता ने मुझसे कहा था की अगर वह साहिर को पा लेतीं तो मैं उसको नही मिलता .तो मैंने उसको जवाब दिया था की तुम तो मुझे जरुर मिलती चाहे मुझे तुम्हे साहिर के घर से निकाल के लाना पड़ता "" जब हम किसी को प्यार करते हैं तो रास्ते कि मुश्किल को नही गिनते मुझे मालूम था कि अमृता साहिर को कितना चाहती थी लेकिन मुझे यह भी बखूबी मालूम था कि मैं अमृता को कितना चाहता था !""

साहिर के साथ अमृता का रिश्ता मिथ्या व मायावी था जबकि मेरे साथ उसका रिश्ता सच्चा और हकीकी.वह अमृता को बेचैन छोड़ गया और मेरे साथ संतुष्ट रही .

उन्होंने एक किस्से का बयान किया है कि जब गुरुदत्त ने मुझे नौकरी के लिए मुम्बई बुलाया तो मैं अमृता को बताने आया ! अमृता कुछ देर तक तो खामोश रही फ़िर उसने मुझे एक कहानी सुनाई .यह कहानी दो दोस्तों की थी इसमें से एक बहुत खूबसूरत था दूसरा कुछ ख़ास नही था .एक बहुत खूबसूरत लड़की खूबसूरत दोस्त की तरफ़ आकर्षित हो जाती है वह लड़का अपने दोस्त की मदद से उस लड़की का दिल जीतने की कोशिश करता है उस लड़के का दोस्त भी उस लड़की को बहुत प्यार करता है पर अपनी सूरत कि वजह से कभी उसक कुछ कह नही पाता है आखिरकार उस खूबसूरत लड़की और उस खूबसूरत लड़के की शादी हो जाती है इतने में ज़ंग छिड जाती है और दोनों दोस्त लड़ाई के मैदान में भेज दिए जातें हैं

लड़की का पति उसको नियमित रूप से ख़त लिखता है लेकिन वह सारे ख़त अपने दोस्त से लिखवाता है कुछ दिन बाद लड़ाई के मैदान में उसकी मौत हो जाती है और उसके दोस्त को ज़ख्मी हालत में वापस लाया जाता है लड़की अपने पति के दोस्त से मिलने जाती है और अपने पति के ख़त उसको दिखाती है दोनों खतों को पढने लगते हैं तभी बिजली चली जाती है पर उसके पति का दोस्त उन खतों को अंधेरे में भी पढता रहता है क्यूंकि वो लिखे तो उसी ने थे और उसको जबानी याद थे ,लड़की सब समझ जाती है ,पर उस दोस्त कीतबीयत भी बिगड़ जाती है और वह भी दम तोड़ देता है ..लड़की कहती है की मैंने एक आदमी से प्यार किया लेकिन उसको दो बार खो दिया !

एक गहरी साँस ले कर इमरोज़ ने यही कहा कि अमृता ने सोचा था कि मुझे कहानी का मर्म समझ मैं नही आया पर मैं समझ गया था कि वह कहना चाहती थी कि पहले साहिर मुझे छोड़ के चला गया अब तुम मुझे छोड़ के जा रहे हो और जो चले जाते हैं वह आसानी से वापस कहाँ आते हैं ..जब इमरोज़ मुम्बई पहुंचे तो तीसरे दिन ही अमृता को कहत लिख दिया कि मैं वापस आ रहा हूँ उन्होंने कहा कि मैं जानता था कि अगर में वापस नही लौटा तो हमेशा के लिए अमृता को खो दूंगा
इमरोज़ ने बताया कि अमृता ने कभी भी अपने प्यार का खुले शब्दों में इजहार नही किया और न मैंने उसको कभी कहा अमृता जी ने अपनी एक कविता में लिखा था कि .

आज पवन मेरे शहर की बह रही
दिल की हर चिनगारी सुलगा रही है
तेरा शहर शायद छू के आई है
होंठो के हर साँस पर बेचैनी छाई है
मोहब्बत जिस राह से गुजर कर आई है
उसी राह से शायद यह भी आई है

इमरोज़ जी अपने घर की छत पर खड़े उस गाड़ी का इंतज़ार करते रहते थे जिस में अमृता रेडियो स्टेशन से लौटती थीं .गाड़ी के गुजर जाने के बाद भी वह वहीं खड़े रहते और अवाक शून्य में देखते रहते वे यहाँ इंतज़ार करते और वह वहाँ कविता में कुछ लिखती रहती

जिंद तो हमारी
कोयल सुनाती
जबान पर हमारे
वर्जित छाला
और दर्दों का रिश्ता हमारा


अमृता जी की जीवनी पर आधारित एक किताब से यह प्रसंग लिया गया है जिसकी लेखिका हैं उमा त्रिलोक जी ..बाकी अगले अंक में ..अभी अमृता जी की लिखी एक रचना के साथ यही पर विराम लेती हूँ

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वोही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो

मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा

उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,

देखो यह आखरी टुकड़ा है
उन्गलियों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी उंगली ना छू ले

ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!

6 comments:

शोभा said...

रंजना जी
अमृता जी के बारे में बहुत रोचक जानकारी दी है आपने । ऐसे प्रसंग हमेशा ही अच्छे और प्रेरणा से भरे होते हैं ।

आनंद said...

बहुत बढ़ि‍या। बहुत रोचक।

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया लगा यह सब जानना!!
शुक्रिया!!

अजित वडनेरकर said...

बरसों पहले पढ़ी थी ये बातें....आज फिर पढ़ीं। अच्छा लगा । शुक्रिया

पारुल "पुखराज" said...

AUR BHI KAHIYE....ACCHA LAG RAHAA HAI...NICE POST

Anonymous said...

Hindi Sahitya me aap jaisi vyaktittva ko pana apne aap me mahan anubhav hai.

RaajDeep G Sawa
http://www.raajsawa26.blogspot.com/