Wednesday, March 21, 2007

एक छोटा सा ख्वाब


रात भर मेह टप-टप टपकता रहा
बूँद-बूँद तुम याद आते रहे
एक गीला सा ख़वाब मेरी आँखो में चलता रहा
काँपती रही मैं एक सूखे पत्ते की तरह
तेरे आगोश कि गर्मी पाने को दिल मचलता रहा
चाँद भी छिप गया कही बदली में जा के
मेरे दिल में तुझे पाने का सपना पलता रहा
था कुछ यह गीली रात का आलम
कि तुम साथ थे मेरे हर पल
फिर भी ना जाने क्यूं तुम्हे यह दिल तलाश करता रहा !!


ranju

8 comments:

Anonymous said...

love is in the air!:)
u hv certainly made me visualise the women's angle of WAIT.feeling of WANT...
cool!

Mohinder56 said...

देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए
दूर तक निगाह में है गुल खिले हुये..
अरे यहां तो हरी हरी घास भी है... हा हा

असर हो दुआ में अगर तो खुदा जमीं पर आयेगा
जिसकी तलाश तुम को है, वो एक दिन मिल जायेगा

Anonymous said...

kaha hai kisi ne
dil diya pyaar ki had thi
jaan di aitbaar ki had thi
mar kar bhi khuli rahi aakhen
yeh mere intezaar ki had thi

Sundar likh hai aapne

Unknown said...

bahut sundar

रंजू भाटिया said...

SHUKRIYA ADITI

MOHINDER..

ANUPAMA AAP AAYI BAHUT ACCHA LAGA ..

RAHUL ....DIL SE AAP SABKA SHUKRIYA

Vasant said...

Althuogh I'm marathi. I like reading hindi poems. Shayad Ranjana ji ki kavitaye padh kar hi, i started loving hindi poems.

Thanks so much. keep writing.

रंजू भाटिया said...

vasant ji bahut bahut shukriya aapka ....aapne jis khusuarti se meri is poem ko naya rang diya hai woh kabile taraef hai ...tahe dil se aapka shukriya !!

Atul Chauhan said...

"तेरे आगोश कि गर्मी पाने को दिल मचलता रहा
चाँद भी छिप गया कही बदली में जा के
मेरे दिल में तुझे पाने का सपना पलता रहा
था कुछ यह गीली रात का आलम"

बहुत गहरी बात कही है,आपने।सपने कभी-कभी पूरे भी हो जाते है…………रंजना जी, जरा संभल कर, कहीं गीली जमीन पर "लावा" न फैल जाये।