Saturday, March 17, 2007

मेरे जीवन का दिन ना बीते बिन तुम्हारे


उड़ जाउं दूर कही आसमा में.
पंख फैलाए अपने साथ तुम्हारे,
देखे चाँद को छूकर ,बदलो पर चलकर..
और गोदी में भर लू सारे सितारे''

साथ सदाए हो खुदा की
ना कोई बंदिश हो ना ही हो कोई पहरा
और सामने रहे मेरे सिर्फ़ तुम्हारा चेहरा

देखती रहूं उसे में यूँ ही ,जब तक जब तक ना हो मौत का सवेरा
तेरी बाहों में मरने को इस मौसम में दिल चाहता है अब यह मेरा

गुलो से एह महका सा समा करता है क्या इशारे
अब कोई भी मेरे जीवन का दिन ना बीते बिन तुम्हारे

8 comments:

योगेश समदर्शी said...

ना कोई बंदिश हो ना ही हो कोई पहरा
और सामने रहे मेरे सिर्फ़ तुम्हारा चेहरा

देखती रहूं उसे में यूँ ही ,जब तक जब तक ना हो मौत का सवेरा
तेरी बाहों में मरने को इस मौसम में दिल चाहता है अब यह मेरा

क्यों भला मरने की क्या जरूरत जीते रहो, और खुश रहो.

सारी जिंदगी एक ही चेहरे को देखने में बिताने से क्या फायदा क्यों न जीवन का रस लिया जाए, भगवान की सारी कायनात का भरपूर दर्शन किया जाए.

Soliloquy said...

Ranju Ji,

Great rachna...especially,

देखती रहूं उसे में यूँ ही ,जब तक जब तक ना हो मौत का सवेरा
तेरी बाहों में मरने को इस मौसम में दिल चाहता है अब यह मेरा

Mohinder56 said...

तुम्हें अपना कहने की चाह में.. कभी हो सके न किसी के हम...बस दर्द यही मेरे जिगर में है.. मुझे मार डालेग बस यही गम

Udan Tashtari said...

सुंदर भाव हैं, बधाई!

Monika (Manya) said...

bahut kashish hai aapki is chaah mein.... too good!!!!!!!

रंजू भाटिया said...

shukriya yogesh...

shukriya gulshan...

shukriya mohinder ...

shukriya samir..

shukriya manya...

aap sabka tahe dil se

Anonymous said...

Bahut Khoob likha hai aap nay
kaha say aata hai itna dard app Ki kalam main
plzz ek guzarish hai isi tarah Likhtay rahian humko sukoon milta hai sub phad K
Khuda aap Ko Salamat rahkhay
"Ahmeen"

Mukesh Garg said...

mere jiwan ke din na bitte bin tumhare.

bahut khab kya bhaw hai jisme sirf pyar or sirf pyar hi dikhai de raha ahai