प्रेम के ढाई आखर
कभी लिखे कविता में
कभी आँखों से कहे गए
कभी सिमट के कह गए
बात अपनी धडकनों से
तो कभी पलकों के कोरों से
आंसू बन पिघल गए
यूँ ही हाथ में लिए हाथ
कहते हुए अपनी बात
फूल की तरह ज़िन्दगी जी कर
यह किताबो के कोरे सफहों में
दम तोड़ गए ..
और जो रह गया
कहाँ तलाश करे उसको
उसको अब किस किताब के
लफ्जों में तलाश करे
प्यार हो जो उम्र भर का
उन लम्हों की कहाँ बात करे ?
डायरी के पुराने पन्नो से
7 comments:
कहाँ बात करें , कहाँ तलाश करें .... ढाई अक्षरों ने भटका रखा है 😆
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ सितंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ सितंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
कहां तलाश करें
प्रेम को समझ पाने की पड़ताल करती बहुत सुंदर रचना
बधाई
हृदय को कोमलता से छू गई आपकी रचना।
सस्नेह साधुवाद।
सुंदर सृजन।
प्रेम बहुत सुंदर रचना
सुंदर रचना
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