धुंधला सा दिखता
उस में अक्स
और ,"एक आहट "
किसी नाम की भी
सुनाई देती रही
पर घना था शायद
वक़्त का कोहरा
हर अक्स उस धुंधलके में
अपना वजूद खोता रहा
कोहरे की ओट में
कहराता दर्द
बदलते मौसम की आस में
रंग बदलता रहा !!
#रंजू
जी नमस्ते ,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (०७-११-२०२२ ) को 'नई- नई अनुभूतियों का उन्मेष हो रहा है'(चर्चा अंक-४६०५) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है। सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत ही सुन्दर रचना
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3 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (०७-११-२०२२ ) को 'नई- नई अनुभूतियों का उन्मेष हो रहा है'(चर्चा अंक-४६०५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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