Thursday, August 25, 2022

एक यादगार यात्रा


 एक यादगार यात्रा 


दौड़ने दो खुले मैदानों में,

इन नन्हें कदमों को जनाब

जिंदगी बहुत तेज भगाती है,

बचपन गुजर जाने के बाद

बचपन की वो यादें अब भी आती हैं

रोते में अब भी वो हँसा जाती हैं|

अज्ञात


यह पंक्तियां न जाने किसकी लिखी हैं पर इन पंक्तियों के भाव जैसा मन कई बार बचपने और उन यादों जगह पर ले जाता है जहां पैदा हुई और कुछ बचपन बीता। 

बहुत साल पहले भी ऐसी दिल में हलचल मची थी तो हम बहनें बच्चों को "गर्मी की छुट्टियों" में वो जगह दिखाने के लिए ले गए थे। बदलाव तब भी बहुत था ,पर तब दादी उसी "सोंधी मिट्टी के घर में "रहती थी। बच्चे तब यह सब देख कर बहुत खुश हुए थे। इसी से जुड़ा एक वाक्या याद आता है कि जब दादी के घर से बुआ के घर पहुंचे तो कजन भाई ने सवाल किया "यहां कैसे आए बच्चों के साथ ? कुछ विशेष काम?"


 हमने कहा" बस घूमने ।जो जवाब भाई ने दिया वो आज भी हंसा देता है कि "यह तुम्हारा हिल स्टेशन है जो गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को ले कर यहां आ गई हो " उस वक्त शायद हम मुस्करा कर चुप रह गए , पर जवाब यही था जो ठंडक इस जन्मभूमि और बीते बचपन को बच्चों को दिखाने में दिल को पहुंचती है, वो कोई हिल स्टेशन भी क्या करेगा। सोच विचार तो सबके अपने ही हैं न। गलत वो भी नहीं था ,गलत हम भी नहीं।


   वक्त तेजी से बदलता है और बच्चे अपने अपने घर के हुए। पर कुछ सवाल अपनी जगह कायम रहते हैं ,बस पूछने वाले बदल जाते हैं। जब हमारे बच्चों ने पूछा तो मै उन्हें वो यादें वो जगह दिखा लाई, बहुत सी कहानियों के साथ। उन्होंने भी उसको खूब एंजॉय किया। अब यही सवाल मुझसे मेरी आठ साल की समायरा पूछती है "नानी आप जब छोटे थे तो कहां कैसे रहते थे ? क्या क्या करते थे। उसके इन्ही सवालों ने फिर से सालों बाद उस जन्मभूमि को देखने की हलचल मचा दी और एक बार फिर हम बहनें उस जगह को मिट्टी को मिलने चल दिए। हरे भरे बचे हुए खेत और नए पुलों सड़कों के बीच में से गुजरते हुए। 


   हरियाणा के रोहतक जिले के कस्बे कलानौर में एक बड़े से घर की मिट्टी की कोठरी में मेरा जन्म हुआ था। अब न वो घर रहे ना वो रहने वाले। नए लोगों को साथ ले कर वो जमीन अब नए मकान को समेटे हुए है। यह सब मै जानती थी पर फिर भी उस जगह को देखना था। वहां की हवा ,गलियों बाजारों को महसूस करना था। घर बदल गए थे पर गालियां बाजार और कुछ दुकानें अब भी वैसी ही है। स्पेशल वो दुकान जहां से छोटी बच्ची थी जब मैं तो टाफी लेने भाग जाती थी। बेशक उसके मालिक अगली पीढ़ी हो गई ,दुकान भी पक्की हो गई पर उस वक्त की खुशबू को अभी भी महसूस किया।कच्चे स्कूल अब पक्के बिल्डिंग में तब्दील हो गए हैं। 


 पर गलियों में नालियां वही खुले मुंह वाली है ।हमारे बचपन में पानी दूर कुएं से दादी , बुआ ले कर आती थी , बिजली भी आती जाती रहती थी।

 पानी अब भी वहां लिमिट में आता है पर घरों में नल में आता और कभी कभी गायब भी हो जाता है। बिजली सिर्फ किसी भी वक्त पर छह घंटे रहती है। सिवरेज लाइन हैं अधिकतर अब घरों में जो पहले नहीं होती थी। गालियां उसी तरह तंग हैं। अंदर बाइक के सिवा कोई गाड़ी नहीं जा सकती। इसलिए जो सवाल मेरे मन में पहले भी थे अब भी थे, ई कि इमरजेंसी होने पर इन गलियों से कैसे बाहर रोड पर पहुंचते हैं ? जब कोई दुल्हन विदा हो कर आती तो क्या अब तक वो "पैयां पैया "चल कर आती है सड़क से अंदर गलियों में बसे घर तक ? बाहर कितनी ही चौड़ी सड़कें बन जाएं अंदर तो सिर्फ मकानों का तंग गलियों ,खुली नालियों का जाल बिछा है। वहां सिर्फ कच्चे से मकान पक्के घरों में बदल गए हैं। किंतु सबके अपने अपने पैरामीटर है सुखों को देखने के और अपनी उसी जमीन से जुड़े रहने के। 


बाजार अब आधुनिक समान से भी भरा हुआ था पर पुराने के साथ। मिट्टी के लकड़ी के खिलौनों की जगह अब प्लास्टिक के खिलौनों की थी। किंतु बर्फी की मिठास भी वही थी पुरानी, बूंदी को नमकीन के साथ खाने का हमारा वहां मन हो आया। निशानी के तौर पर एक एक ओढ़नी सब हम बहनों ने ली कि बस अब आगे आना न होगा यहां।


 उन्हीं यादों को अपने दिल में समेटे पुरानी यादों के साथ मिलाते वापस तो आ गए हैं। और यही सोच रहे हैं नया पुराना यूं ही मिल मिला कर यह दुनिया चलती रहेगी । यादें बनती रहेंगी। अभी नीचे के लिंक में देखिए कुछ वहां से समेटी हुई यादें। लाइक और सब्सक्राइब जरुर कीजिए।

My village trip

6 comments:

विश्वमोहन said...

बहुत मीठा संस्मरण।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-08-2022) को  "सभ्यता पर ज़ुल्म ढाती है सुरा"   (चर्चा अंक-4534)  पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

Onkar said...

बहुत सुंदर

Vocal Baba said...

बढ़िया संस्मरण। आपको शुभकामनाएं।

Jyoti Dehliwal said...

सुंदर संस्मरण।

MANOJ KAYAL said...

सुंदर संस्मरण