Wednesday, August 31, 2022

एक मुलाकात अमृता के इमरोज़ से

 



आज ३१ अगस्त है

 ३१ अगस्त है ...अमृता जन्मदिन तुम्हे मुबारक ....हर जन्मदिन पर लगता है क्या लिखूं तुम्हारे लिए ...सब कुछ कह के भी अनकहा है वक़्त बीत रहा है ...तलाश जारी है खुद में तुमको पाने की ..तुम जो .मेरे प्रेरणा रही ..मेरी आत्मा में बसी मुझे हमेशा लगा जैसे जो प्यास .जो रोमांस ,जो इश्क की कशिश तुम में थी वह तुमसे कहीं कहीं बूंद बूंद मुझ में लगातार रिस रही है ...इमरोज़ भी एक ही है और अमृता भी एक थी ..पर ..फिर भी अमृता तुम्हारे लिखे ..को पढ़ के ...अमृता तुम्हारी तरह जीने की आस टूटती नहीं ..जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक अमृता


कुछ वक्त पहले इमरोज़ से हुई बातचीत  कई जगह पब्लिश भी हुई थी  

पूरी बात चीत सुनने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें 

एक मुलाकात अमृता के इमरोज़ से


रंजू भाटिया) जी ने अपने ब्लाग ‘अमृता प्रीतम की याद में…….’  इमरोज से हुयी बातचीत का एक हिस्सा प्रस्तुत किया था जिसमें उन्होंने यह सवाल किया था इस घर में अमृता का कमरा बाहर तथा इमरोज का कमरा अंदर क्यों है? इस पर इमरोज के द्वारा दिया गया उत्तर अमृता के प्रति इमरोज के लगाव का जो चित्र खींचता है वह अद्वितीय हैः-


 ‘मैं एक आर्टिस्ट हूं और वह एक लेखिका पता नहीं कब वो लिखना शुरू कर दे और मैं पेंटिंग बनाना। इतना बडा घर होता है फिर भी पति पत्नी ऐक ही बिस्तर पर क्यों सोते हैं ? क्योंकि उनका मकसद कुछ और होता है। हमारा ऐसा कुछ मकसद नहीं था इसलिये हम अलग सोते थे। सोते वक्त अगर मैं हिलता तो उसे परेशान होती और अगर वह हिलती तो मुझे । हम एक दूसरे को कोई परेशानी नहीं देना चाहते थे। आज शादियां सिर्फ औरत का जिस्म पाने के लिये होती हैं । मर्द के लिये औरत सिर्फ सर्विग वोमेन है कयांेकि वह नौकर से सस्ती होती है। एसे लोगों को औरत का प्यार कभी नहीं मिलता। आम आदमी को औरत सिर्फ जिस्म तक ही मिलती है प्यार तो किसी किसी को ही मिलता है। औरत जिस्म से बहुत आगे है , पूरी औरत उसी को मिलती है जिसे वो चाहती है।’


अमृता के प्रति इमरोज के इस गहरे भावनात्मक लगाव की तह में जाकर उस दिन की पडताल करने पर रंजना (रंजू भाटिया) जी को वह दिन भी दिखलाई पडा जब इमरोज ने अपना जन्मदिवस अमृता जी के साथ मनाया था। इस दिन को याद करते हुये इमरोज ने कहाः-


‘ वो तो बाइ चांस ही मना लिया। उसके और मेरे घर में सिर्फ एक सड़क का फासला था । मै उससे मिलने जाता रहता था। उस दिन हम बैठे बातें कर रहे थे तो मैने उसे उसे बताया कि आज के दिन मैं पैदा भी हुआ था। वो उठकर बाहर गयी और फिर आकर बैठ गई। हमारे गांव में जन्मदिन मनाने का रिवाज नहीं ,अरे पैदा हो गये तो हो गए, ये रिवाज तो अंग्रेजो से आया है। थोडी देर के बाद उसका नौकर केक लेकर आया। उसने केक काटा थोडा मुझे दिया और थोडा ख्ुाद खाया । ना उसने मुझे हैप्पी बर्थडे कहा और ना ही मैने उसे थैक्यू। बस दोनो एक दूसरे को देखते और मुस्कुराते रहे ।’


बस इसी तरह एक दूसरे को देखकर मुस्कुराना और बिना कुछ भी कहे सब कुछ कह जाने वाली भाषा के साथ जीने वाली अमृताजी आज हमारे बीच न हों लेकिन इस बात से इमरोज को कोई फर्क नहीं पडता क्योकि उनका मानना है कि वे उनके साथ तो आज भी हैं ना।

8 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 01 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

विश्वमोहन said...

रूहानी प्लैटोनिक प्यार का यह पैगाम पहुंचाने का हृदय से आभार।

Onkar said...

वाह! बहुत सुंदर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पूरा साक्षात्कार सुना था । कहीं कहीं तो तुम्हारी आवाज़ अमृता से मिलती हुई लगती है ।😄
बढ़िया पोस्ट ।

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद जी🙏🙏

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया यह प्रेम बना रहे इस दुनिया में

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद🙏🙏

रंजू भाटिया said...

इस से बड़ा कॉमेंट मेरे लिए कोई नहीं हो सकता संगीता जी। अमृता मय हो गई लगता मैं।😊🙏❤️