जिस को देखूं साथ तुम्हारे
मुझ को राधा दिखती है
दूर कहीं इक मीरा बैठी
गीत तुम्हारे लिखती है
तुम को सोचा करती है
आँखों में पानी भरती है
उन्ही अश्रु की स्याही से
लिख के खुद ही पढ़ती है
यूँ ही पूजा करते करते
कितने ही युग बीत गये
बंद पलकों में ही न जाने
कितने जीवन रीत गये
खोलो नयन अब अपने कान्हा
पलकों में तुम को भरना है
पूजा जिस भाव से तुम्हे
उसी से प्रेम अब तुमसे करना है
आडा तिरछा भाग्य है युगों से
तुम इसको सीधा साधा कर दो
अब तो सुधि लो मेरे कान्हा
मीरा को "राधा "कर दो
हाथ थाम लो
अब तो कृष्णा
इस भव सागर से
पार तुम कर दो ।
6 comments:
सुंदर प्रस्तुति । लेकिन मीरा को राधा कर दिया तो राधा कहाँ जाएगी ? 😄
वैसे कृष्ण तो सबके हैं ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 अगस्त 2022 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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वाह वाह! मार्मिक अभिव्यक्ति।
वाह बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत ही सुंदर सृजन।
हृदयस्पर्श भाव।
कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ एवं बधाई ।
बहुत बढियां सृजन
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