Saturday, August 13, 2022

मुसाफिर मन

इबादत




 मुसाफ़िर है मन बवाला

जाने कहाँ कहाँ ले जाता है

कभी छेडता राग मिलन के

कभी विरह में डूब जाता है


बिखरेता कभी रंग स्नेह के

कभी वात्सलय हो जाता है 

भटकता ना जाने किस खोज में

कभी शांत नही यह हो पाता है


सांसों की गति पर थिरकता

यह निरन्तर चलता जाता है

कभी ना उबता ,ना रुकता

बस हवा सा उड़ता जाता है


शाश्वत सच को यह मन

जिस पल पा जाएगा

चंचल चपल यह मुसाफ़िर

स्वयम् ही तब मंज़िल पा जाएगा !!  

https://youtube.com/shorts/erx0kjwwHxk?feature=share

#रंजूभाटिया

4 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यह मुसाफिर मन कभी तो मंज़िल पा ही जायेगा ।
फलसफा ज़िन्दगी का ।।

Nitish Tiwary said...

सुंदर प्रस्तुति।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार 15 अगस्त, 2022 को    "स्वतन्तन्त्रा दिवस का अमृत महोत्सव"   (चर्चा अंक-4522) 
   
पर भी होगी।
--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

Abhilasha said...

सुन्दर प्रस्तुति