एक बहुत रोचक पूरा वाक्या आप इस पोस्ट से जुड़ा इस लिंक पर सुनिए । अमृता जब इमरोज़ के साथ रहने लगी तब उनके बहुत अच्छे जानने वाले ने क्या कहा इमरोज़ के साथ रहने पर ..
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बात कुफ्र की है हमने , अंबर की एक पाक सुराही
१९७५ में अमृता के एक उपन्यास "धरती सागर और सीपियाँ "पर जब "कादम्बरी "फ़िल्म बन रही थी तो उसके उन्हें एक गीत लिखना था ..उस वक्त का सीन था जब चेतना इस उपन्यास की पात्र समाजिक चलन के ख्याल को परे हटा कर अपने प्रिय को अपने मन और तन में हासिल कर कर लेती है ..यह बहुत ही हसीं लम्हा था मिलन और दर्द का ....जब अमृता इसको लिखने लगीं तो अमृता को अचानक से वह अपनी दशा याद आ गई जब वह पहली बार इमरोज़ से मिली थी और उन्होंने उस लम्हे को एक पंजाबी गीत लिखा था ...उन्होंने उसी का हिन्दी अनुवाद किया और जैसे १५ बरस पहले की उस घड़ी को फ़िर से जी लिया ...गाना वह बहुत खुबसूरत था ...आज भी बरबस एक अजब सा समां बाँध जाता है इसको पढने से सुनने से ...
अम्बर की एक पाक सुराही ,बादल का एक जाम उठा कर
घूंट चांदनी की पी है हमने .बात कुफ्र की की है हमने ...
https://youtu.be/flgLWYa_qc8
6 comments:
यहाँ से यू ट्यूब पर लिंक नहीं खुल पा रहा ।।ये दो पंक्तियाँ लाजवाब हैं ।
लिंक को सेलेक्ट करके खुल रहा है 👍👍👍👍
बहुत खूबसूरत ऑडियो ।
हांजी अब सही कर दिया धन्यवाद
संगीता जी आपने हमेशा मेरा होंसला बढ़ाया है , तहे दिल से आपका शुक्रिया
कादम्बरी का यह गीत मुझे भी बहुत अच्छा लगता है, बँधनों से मुक्त हो कर अपने मन की करने के सुखद रस से भरा हुआ
बहुत सुंदर
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