मै नही लिखती...
अब ,इन दिनों कोई कविता
क्योंकि मेरे लिखे लफ्ज़
आज के साहित्य का
आईना "नही बन पाते है.....
मेरे लिखे" शब्द "चलते है
सिर्फ ताल के कदमो पर
गद्य में यह अनगढ़ से नजर आते हैं
न इन लिखे लफ्ज़ो में
कह पाती हूँ ,मै
सेक्स और स्त्री अंगों की बात
न ही इनमे
आज कल के
कहे जाने वाले लफ्ज़ लिखे जाते हैं
ब्रेकअप,लिखने से मिलते है पुरस्कार
"विरह गीत" लिखने पर
शब्द उपहास से नजर आते हैं
सेन्टरी नेपकिन से जो मूल्य भर जाता है
लिखी हुई कविता में
"स्त्री तकलीफ "में वो दर्द कम कर जाते हैं
मेरी लिखी कविता के शब्द
कहलाये जाते है "फूल,पत्ती"
आसान शब्दो के यह भाव
सिर्फ "आम समझ "की ही तो बात बताते है
हाँ ,मेरे लिखे लफ्ज़ नही उलझ पाते
गहरी गूढ़ बातों में
तभी तो वो "सर से पार हो जाने वाली "
रचना गढ़ नहीं पाते हैं
हाँ ,अब इन दिनों
मै ,लिखती नहीं कोई कविता
और सोचती हूँ
सच ही कहते है, प्रकाशक
कि मेरे लिखे यह "संग्रह "
वही पुराने घिसे पीटे भावों में
अब कहाँ बिकते और कहाँ पढ़े जाते है
और साथ ही यह जाना कि यह मेरे लिखे संग्रह ........
,क्यों "काव्यसंग्रह" नहीं कहलाते है !!
#रंजू भाटिया 😊😊
https://youtube.com/shorts/P9s48yUZ20U?feature=share
15 comments:
सच कहा आपने आजकल न कविता लिखना सरल रहा न उसे पढ़ने-समझने वाले।
आज के कवियों की मानसिकता पर अच्छा कटाक्ष है । मैं भी नहीं लिख पाती कविता ।
आपकी लिखी रचना सोमवार 08 अगस्त 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मै नही लिखतीअब ,इन दिनों कोई कविता …, मगर बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने ।अत्यंत सुन्दर सृजन ।
सहजता की जगह विद्वता, का बोलबाला है ! ध्यान आकर्षण में कामयाब है यह रचना!
सटीक सुंदर !
सही कहा आपने बहुत कुछ कहना है पर हूबहू जो आपने कहा है।
अप्रतिम!
एक दर्द रचनाकार का।
मन को छूते मन जैसे भाव।
बेहतरीन अभिव्यक्ति अपनी सी लगी।
सादर।
सचमुच आज की हकीकत यही है
सुंदर प्रस्तुति
हकीकत बयां कर दी आपने। बहुत सुन्दर।
सिर्फ "आम समझ "की ही तो बात बताते है…इसीलिए तो हमें पसन्द आती हैं आपकी कविता😊
सिर्फ "आम समझ "की ही तो बात बताते है…इसीलिए तो हमें पसन्द आती हैं आपकी कविता😊
धन्यवाद🙏😊
धन्यवाद, आपका 😊🙏
धन्यवाद, आपका 😊🙏
शुक्रिया
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