"पाकिस्तान मेल " खुशवंत सिंह की लिखी यह किताब बहुत रोचक ढंग से लिखी गई है ,बंटवारे पर लिखी यह किताब की शुरुआत 1947 की गर्मियों से शुरू होती है और अंत तक अपने लिखे से आंसुओं की बारिश में भिगो कर मानसून पर खत्म हो जाती है।
सम्पूर्ण बंटवारे का लिखा हुआ एक एक करके आंखों के सामने जैसे घटता हुआ महसूस होता है। "मनो माजरा" गांव का चित्रण सजीव हो कर बिल्कुल अपने बचपन का बीता गांव जैसा दिखता है। वही गुरुद्वारे के शब्द कीर्तन ,वही मस्जिद की अज़ान जैसे सब वहीं अटका हुआ है।
इकबाल, जग्गा , हुकमचंद सब चरित्र अपने अपने लिखे पात्र के साथ सम्पूर्ण न्याय करते दिखते हैं। खुशवंत सिंह ने किताब में विभाजन के दर्द को समेटने के साथ अन्य बातों को भी बहुत सुंदर ढंग से लिखा है । लाशों से भरे ट्रेन के डब्बे, हजारों लाशों को एक साथ जलाने वाले वीभत्स दृश्य को शब्द देना हो अथवा अपने बेटी के उम्र की लड़की को छूते हुए हुकुमचंद की मनोदशा का वर्णन हो , सभी लिखा हुआ जैसे दिल को झंझोर जाता है।
पाकिस्तान मेल सिर्फ एक किताब नहीं है बल्कि यह विभाजन के समय का एक पूरा दस्तावेज है । मैने कहीं पढ़ा था कि यह उनकी सर्वाधिक प्रिय रचना थी क्योंकि इसी ने उन्हें लेखक के रूप में स्थापित किया और लोकप्रिय बनाया । स्वयं खुशवंत भी ऐसा ही मानते थे । उन्होंने अपनी सबसे बेहतरीन रचनाएं तब ही लिखी जब वो परेशान रहे । "ट्रेन टू पाकिस्तान" वैसे इंग्लिश में लिखी गई है ,इसका हिंदी अनुवाद "पाकिस्तान मेल", उषा महाजन ने बहुत सुंदर ढंग से लिया है कि कहीं भी पढ़ते हुए अलग सा नहीं दिखता। किताब को लंदन की ग्रोव प्रेस ने उस समय 1 हजार डॉलर का इनाम भी दिया था । बाद में इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ ।
आज जब देश में साम्प्रदायिक सौहार्द अक्सर बिगड़ते रहता है ऐसे में यह किताब पढ़ना जरूरी है कि आपसी वैमनस्य किस तरह से सिर्फ दुख और त्रासदी ही देता है। मुझे तो अब आज कल का वक्त जैसे इसी बंटवारे की याद दिला रहा है।
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4 comments:
बहुत अच्छा पुस्तक परिचय दिया है ।।शुक्रिया ।
शुक्रिया संगीता जी 🙏🙏
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 8 जून 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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पुन: भेंट होगी...
मेरी उन किताबों की लिस्ट में है जिन्हे कम से कम एक बार तो पढ़ने की इच्छा है। अब हिंदी अनुवाद के बारे में पता चला है तो वही पढूँगी।
शुक्रिया रंजू भाटिया जी ।
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