पिछले भाग में एक सफ़र स्त्री मन का खुद से बात करते हुए पढ़ा ... अब पढ़िए इसका आगे का भाग ज़िन्दगी अभी बाकी है l
ज़िन्दगी अभी बाकी है ........
बंद आँखों में लिए ख्वाब कई
उम्र की हर सीमा से परे
वह भी अब जीना चाहती है
उस लड़की की तरह
जिसको वह छोड़ आई है
कहीं बहुत पीछे
पर आज भी कुछ अधूरा सा
खुद को पाती है
वह
उसी उम्र पर
वापस चाहती है लौट जाना
जहाँ उसको बाँध दिया था
उन बन्धनों में
जब वह समझ भी नहीं पाई थी
अपनी देह के साथ हो रहे
उन बदलाव को
जो कुदरत ने उसके साथ
कर दिए थे तय ....
सृष्टि को रचने के लिए
सही में अगर स्त्री मन को कोई समझ लेता तो वह जाना लेता कि सृष्टि ने जो सहज प्रेम भाव उसको दिया है वह अनमोल है ,अपने सपने को वह कलम के जरिये तो कह देती है ,पर उस लिखे को जीने के लिए उसका रोज़ का नया संघर्ष होता है ,खुद को समझाती हुई वह यही कहती है ज़िन्दगी अभी बाकी है .....
बंद आँखों में लिए ख्वाब कई
उम्र की हर सीमा से परे
वह भी अब जीना चाहती है
उस लड़की की तरह
जिसको वह छोड़ आई है
कहीं बहुत पीछे
पर आज भी कुछ अधूरा सा
खुद को पाती है
वह
उसी उम्र पर
वापस चाहती है लौट जाना
जहाँ उसको बाँध दिया था
उन बन्धनों में
जब वह समझ भी नहीं पाई थी
अपनी देह के साथ हो रहे
उन बदलाव को
जो कुदरत ने उसके साथ
कर दिए थे तय ....
सृष्टि को रचने के लिए
और जो समझती थी
सिर्फ होंठो का छूना भर ही
उसको भर देगा
एक मातर्त्व सुख से
वह उन लम्हों को
छोड़ कर खुद को देखती है
दर्पण के हर उस कोने से
जहाँ उसने जाना था
कि देह की भूख जगने पर
सिर्फ "दर्द "ही नहीं मिलता
मिलता है एक "वो सुख" भी
जिसको यह देह
हर पल आत्मस्त
कर लेती है
और महकती है फिर
अनजानी उस महक से
जिस में ज़िन्दगी को
जीने की वजह
मिलती है
वह छुअन
जो एहसास करवाती है
"एडम और इव" के उस
सिर्फ होंठो का छूना भर ही
उसको भर देगा
एक मातर्त्व सुख से
वह उन लम्हों को
छोड़ कर खुद को देखती है
दर्पण के हर उस कोने से
जहाँ उसने जाना था
कि देह की भूख जगने पर
सिर्फ "दर्द "ही नहीं मिलता
मिलता है एक "वो सुख" भी
जिसको यह देह
हर पल आत्मस्त
कर लेती है
और महकती है फिर
अनजानी उस महक से
जिस में ज़िन्दगी को
जीने की वजह
मिलती है
वह छुअन
जो एहसास करवाती है
"एडम और इव" के उस
अनजाने फल सा
जो "वर्जानाओं" से परे
अनजाने में चख लिया जाता है
थम के रह गयी
उस उम्र से अब तक
बीते समय को
वह फिर से रोक लेना चाहती है
और उसको रोक नहीं
पाती है फिर उम्र की कोई शिकन
जो झलकने लगी है
उसकी उन सफ़ेद होते बालों से
तनहा रातों
में जागे रहने से
पड़े काले घेरों में
रुक गए हैं जो लम्हे
हाँ ---वह उन्हें फिर से
जो "वर्जानाओं" से परे
अनजाने में चख लिया जाता है
थम के रह गयी
उस उम्र से अब तक
बीते समय को
वह फिर से रोक लेना चाहती है
और उसको रोक नहीं
पाती है फिर उम्र की कोई शिकन
जो झलकने लगी है
उसकी उन सफ़ेद होते बालों से
तनहा रातों
में जागे रहने से
पड़े काले घेरों में
रुक गए हैं जो लम्हे
हाँ ---वह उन्हें फिर से
जी लेना चाहती है
सालों से दबा रखा है
अपने उन "फंतासी ख्यालों" को
जो बढती उम्र के साथ साथ
देखे हैं --रचे हैं
अपनी कल्पनाओं में
और उतार लेना चाहती है
अपने को उस अक्स में
जहाँ वह खुद से भी
खुद को नहीं समझ पाती है
बहार से शांत और गंभीर
स्त्री बन जीती हुई
वह अन्दर से
"उस लड़की" को तलाश लेना चाहती है
जो "जंगली जवानी "सी खुद
को कहलवाने पर
हंसती मुस्कराती है
झूमना चाहती है वह
सालों से दबा रखा है
अपने उन "फंतासी ख्यालों" को
जो बढती उम्र के साथ साथ
देखे हैं --रचे हैं
अपनी कल्पनाओं में
और उतार लेना चाहती है
अपने को उस अक्स में
जहाँ वह खुद से भी
खुद को नहीं समझ पाती है
बहार से शांत और गंभीर
स्त्री बन जीती हुई
वह अन्दर से
"उस लड़की" को तलाश लेना चाहती है
जो "जंगली जवानी "सी खुद
को कहलवाने पर
हंसती मुस्कराती है
झूमना चाहती है वह
उस मस्ती में जहाँ
जो इस "सो काल्ड समाज "के
दायरे कानून में बांध कर
उसकी साँसों को तो
लय में जीना सीखा दिया है
पर
कैसे बाँध पाएंगे उस रूह को
जो आज़ाद तितली सी
इधर उधर अपनी ही रो में
बहना चाहती है ..........
जो इस "सो काल्ड समाज "के
दायरे कानून में बांध कर
उसकी साँसों को तो
लय में जीना सीखा दिया है
पर
कैसे बाँध पाएंगे उस रूह को
जो आज़ाद तितली सी
इधर उधर अपनी ही रो में
बहना चाहती है ..........
4 comments:
सुन्दर प्रस्तुति
वाह...बहुत सुंदर!!
धन्यवाद जी
बहुत बहुत शुक्रिया आपका उषा जी
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