Thursday, April 27, 2017

इश्क की दरगाह भी तू ... यह सारी कायनात तू ..

नागमणि में कभी कभी कुछ लेखकों की आपस में बातचीत छपती थी इस कॉलम का नाम "गुफ्तगू "था ...कई बार अमृता भी इस बात चीत में शरीक होती थी आज उसी कॉलम के कुछ हिस्से यहाँ पढ़िए ...
हम सभी हुए न हुए जन्म की पीड़ा झेल कर भी मरते हैं ,और अजन्मा होने की हसरत ले कर भी ..लगता है यह स्वाति नक्षत्र का नहीं अस्वाती नक्षत्र का  युग है और हम सब सीपियों में पड़ी हुई स्वाति कि बुँदे नहीं अस्वाती कि बुँदे हैं .मोती बनने की सीमा तक पहुँच कर भी अमोती है और इस लिए हम मौत को सदा एक साँस की दूरी पर भोगते हैं ...
नागमणि ,अगस्त १९६८

शिव कुमार : तुम्हे कौन सी आँखे पसंद है ?
अमृता : मैंने काजानजाकिस को देखा नहीं ,पर जैसी उसकी अनकहे थी ...
शिवकुमार :उसकी आँखों का रंग क्या था ?
अमृता : वह रंग ,जिस से उसे अपने ग्रीक लोगों की गुलामी की पीड़ा दिखाई देती थी
नागमणि अक्तूबर १९६९ 


दिलीप टिवाना: अमृता जी ! आ मुझे इस बात का जवाब दीजिये कि आप लिखती क्यों हैं ?
अमृता :इस बात का जवाब मैं पहले भी दे चुकी हूँ कि यह हमारी कृतियाँ अपने से आगे तक पहुँचाने का हमारा संघर्ष होता है ?
दिलीप :फिर इस में लोगों तक पहुंचाना क्यों जरुरी है ?
अमृता :असली अर्थों में लेखक कभी लोगों तक नहीं पहुँचता ,लोग लेखक तक पहुँचते हैं
दिलीप :चेखव के बारे में कहा जाता है कि उसने लोगों को उनका आपा खोज कर दिया आप इस की व्याख्या  कैसे करती है ?
अमृता :जो बात मैंने अभी कही ,वह उसी का अलग शब्दों में समर्थन है कि चेखव ने अपना आपा खोजा .जिसके कारण लोगों ने अपने आप को पाया 
नागमणि अप्रैल १९७७

आपकी दो पंक्तियाँ हैं
पैर तेरे सुच्चे और होंठ मेरे झूठे आज छुएंगे
पैर तेरे झूठे या होंठ मेरे सुच्चे आज होंगे
यह किस उम्र अवस्था की बात है ...?

अमृता :  इन पंक्तियों की शिद्दत इनको हासिल है ,बाकी सच्चा और झूठे जैसे लफ्ज़ सामाजिक संस्कारों के दिए हुए हैं .अनजान उम्र में स्लेट पर लिखे उल्ट पुलट अक्षरों जैसे और उस अनजान उम्र में इस तरह की  शिद्दत से व्यक्ति मनफ़ी( माइनस )होता है

इमरोज़ को आपने कैसे पहचाना ?पति की तरह ?प्रेमी की तरह ?या दोस्त की तरह ?
अमृता :इमरोज़ को देख कर ही मैंने लिखा था
बाप ,भाई .दोस्त और खावंद
किसी लफ्ज़ से कोई रिश्ता नहीं
वैसे जब मैंने तुम्हे देखा
सारे अक्षर गहरे हो गए ..
खुदा की मुलाक़ात ने दुनिया का दिया हुआ किसी रिश्ते का लफ्ज़ लागू नहीं होता और न कोई लफ्ज़ उस मुलाक़ात से बाहर खड़ा रह जाता है ...उसी तरह से ...
जैसे योग की एक राह भी तू
इश्क की दरगाह भी तू ...
यह सारी कायनात तू ..
खुदा की मुलाक़ात तू ..वाह सजन ..वाह  सजन

अमृता की यह पंक्तियाँ इश्क़ की रूहानी बात कहती है 

1 comment:

Onkar said...

सार्थक संवाद