"यह कौन युवतियां है जो मेरी आत्मा को झिन्झोरती
विलाप कर रही है ?" मनुष्य कर्म का लेखा झोखा देखते चित्रगुप्त ने अपने साथ खड़े
द्वारपाल से पूछा
"यह वह महिलायें हैं महाराज जिनके साथ कुछ
मर्दों ने मनुष्य जाति का अपमान करते हुए जानवरों जैसा सलूक किया और फिर
वहां के समाज ने अपने तानों से इनकी आत्मा तक को छलनी कर दिया इतना कि यह
बेबस हो कर अपने जीवन का अंत कर बैठी पर यहाँ भी उनके इस विलाप में वहां
का दिया दर्द ब्यान हो रहा है "
महाराज है तो पर धरती पर आने में इसको शायद लागू करने में वक़्त लगे।
"क्या है बताओ तो जरा ?"
महाराज या तो इस अपराध की सज़ा मौत हो या अंग भंग.… पर इसमें भी सच्चे
झूठे का शायद भेदभाव रहे. दूसरा हल धरती पर रहने वाली महिलाओं को स्वयं में
तलाश करना होगा खुद को इतना सक्षम बनाना होगा कि कोई उनके साथ यह घिनौना
कार्य न कर सके और यदि यह दुखद हादसे न रुक पाये तो समाज के तानो से
व्यथित मौत नहीं जीने का स्वाभिमान तरीका अपनाये समाज को यह बताये की वह
किस तरह की दुनिया को धरती पर कानून व्यवस्था बना रहा है जहाँ धरती को रहने
लायक बनाने वाली स्त्री ही सुरक्षित नहीं।
हाँ यह दूसरा उपाय ही न्याय करेगा ,पर ,क्या ऐसा होगा वाकई ?
"हाँ
महाराज शुरुआत हो चुकी है" ,हर नारी का अपमान अब दूसरी नारी को जाग्रत
होने की चिंगारी दे के जा रहा है ,वक़्त लगेगा पर एक दिन होगा जब इस अपराध
का अंत होगा !
5 comments:
न्याय पथ पर प्रशस्त जगत अब
न्याय जल्दी ही मिलने लगे तो समाज से आशा बंधेने लगेगी ...
ऐसा ही हो!
अब हर नारी जागरूक होने लगी है ,समाज को भी न्याय करना हीं होगा।
जब महिलाये अपने आप को सशक्त बनायेगी तब ही यह संभव होगा।
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