तुम कहते हो
"यह नहीं होगा "
मैं कहती हूँ
"वो नहीं होगा "
जिदों की दीवारों से टकराते हैं
हम दोनों के "अहम् .."
कब तक खुद को
यूँ ही झुलझाए जलाएं
चलो एक फैसला कर लें
अपने अपने वजूद की तलाश में
इस ज़िन्दगी के
दो जुदा किनारे ढूंढ़ लें !!
आज का आस पास का माहौल बस कुछ यह है कहता दिखता है ..और ज़िन्दगी मिल कर फिर नदी के दो किनारों सी बहती चली जाती है ..
4 comments:
जुदा किनारे बन जाने पे जिंदगी कहाँ जिंदगी रह जाएगी ...
भावपूर्ण ...
चलो, किनारे ही सही, बीच बहता जल तो दोनों का है।
सटीक रचना
किनारे जुदाई के फासले को बयाँ करते हैं ......देखो समंदर की लहरे कितनी बेचैनी से साहिल से टकराती हैं ... जुदाई की तरप ....पानी में रह कर पानी से अलग रहना ......उत्कृष्ट रचना है आपकी
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